अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अनुमतिः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - अनुमति सूक्त
यत्ते॒ नाम॑ सु॒हवं॑ सुप्रणी॒तेऽनु॑मते॒ अनु॑मतं सु॒दानु॑। तेना॑ नो य॒ज्ञं पि॑पृहि विश्ववारे र॒यिं नो॑ धेहि सुभगे सु॒वीर॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । नाम॑ । सु॒ऽहव॑म् । सु॒ऽप्र॒नी॒ते॒ । अनु॑ऽमते । अनु॑ऽमतम् । सु॒ऽदानु॑ । तेन॑ । न॒: । य॒ज्ञम् । पि॒पृ॒हि॒ । वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒ । र॒यिम् । न॒: । धे॒हि॒ । सु॒ऽभ॒गे॒ । सु॒ऽवीर॑म् ॥२१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते नाम सुहवं सुप्रणीतेऽनुमते अनुमतं सुदानु। तेना नो यज्ञं पिपृहि विश्ववारे रयिं नो धेहि सुभगे सुवीरम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । नाम । सुऽहवम् । सुऽप्रनीते । अनुऽमते । अनुऽमतम् । सुऽदानु । तेन । न: । यज्ञम् । पिपृहि । विश्वऽवारे । रयिम् । न: । धेहि । सुऽभगे । सुऽवीरम् ॥२१.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(सुप्रणीते) उत्तम प्रणय वाली ! (अनुमते) तथा अनुकूलमति वाली हे पत्नी! (यत्) जो (ते) तेरा (नाम) “अनुमति" रूप नाम है, जो कि (सुहवम्) सुखपूर्वक आह्वान योग्य, (अनुमतम्) सब द्वारा अनुमत अर्थात् अभिमत है, (सुदानु) और सुखदायी है, (तेन) उस नाम द्वारा (न यज्ञम्) हमारे गृहस्थ यज्ञ को (पिपृहि) तू पालित कर (विश्ववारे) हे सब द्वारा वरणीया (सुभगे) उत्तम भगों वाली अनुमति ! (नः) हमें (सुवीरम्, रयिम्) उत्तम वीर सन्तानरूपी घन (धेहि) प्रदान कर।
टिप्पणी -
[पत्नी का नाम है अनुमति। वह पति के अनुकूला है। पति के साथ वैमनस्या नहीं होती। यह नाम सुगमता पूर्वक आह्वान योग्य है। अनुमति प्रणय वाली है, प्रेममयी है यह नाम सर्वानुमत है, और सुखदायक है, तथा सब गृहस्थियों द्वारा वरणीय है, ग्रहण योग्य है सभी चाहते हैं कि उन की पत्नियाँ अनुमतिवाली हों, पतियों के अनुकूल मतियों वाली हों। ऐसी पत्नियां उत्तम सन्तानरूपी धन प्रदान करती हैं।