अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अनुमतिः
छन्दः - अतिशाक्वरगर्भा जगती
सूक्तम् - अनुमति सूक्त
अनु॑मतिः॒ सर्व॑मि॒दं ब॑भूव॒ यत्तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यदु॑ च॒ विश्व॒मेज॑ति। तस्या॑स्ते देवि सुम॒तौ स्या॒मानु॑मते॒ अनु॒ हि मंस॑से नः ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ऽमति: । सर्व॑म् । इ॒दम् । ब॒भू॒व॒ । यत् । तिष्ठ॑ति । चर॑ति । यत् । ऊं॒ इति॑ । च॒ । विश्व॑म् । एज॑ति । तस्या॑: । ते॒ । दे॒वि॒ । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ । अनु॑ऽमते । अनु॑ । हि । मंस॑से । न॒: ॥२१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अनुमतिः सर्वमिदं बभूव यत्तिष्ठति चरति यदु च विश्वमेजति। तस्यास्ते देवि सुमतौ स्यामानुमते अनु हि मंससे नः ॥
स्वर रहित पद पाठअनुऽमति: । सर्वम् । इदम् । बभूव । यत् । तिष्ठति । चरति । यत् । ऊं इति । च । विश्वम् । एजति । तस्या: । ते । देवि । सुऽमतौ । स्याम । अनुऽमते । अनु । हि । मंससे । न: ॥२१.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(यत् तिष्ठति) जो स्थित है, (चरति) चलता है, (यद्, उ, च) और जो (विश्वम्) सब ब्रह्माण्ड (एजति) प्रदीप्त हो रहा है, या कुम्पित हो रहा है, (इदम्, सर्वम्) यह सब (अनुमतिः) अनुमति परमेश्वर मातारूप (बभूव) है। (देवि) हे परमेश्वर-मातृदेव! (ते) तेरी (तस्याः) उस (सुमतौ) सुमति में (स्याम) हम हों, या रहें। (अनुमते) हे अनुमति मातः ! (नः) हमें (अनु मंससे) अपनी अनुकूता में मान।
टिप्पणी -
[अनुमति है, समग्र ब्रह्माण्ड में अनुकूलरूप में वर्तमान परमेश्वर माता। वह किसी के प्रतिकूल नहीं है, अपितु सब के प्रति अनुकूलरूप में वर्तमान है, सब की उन्नत्ति चाहती अभिप्राय यह है कि जैसे माता पुत्र१ में प्रकट होती है, यथा “आत्मा वै पुत्रनामासि" (निरुक्त ३।१।४), वैसे परमेश्वर माता भी ब्रह्माण्ड-रूप में प्रकट हो रही है। प्रलय काल में ब्रह्म, प्रकृति और जीवात्मा निष्क्रिय थे। ब्रह्म की सक्रियता में ब्रह्माण्ड पैदा हुआ। अतः मानो ब्रह्म, ब्रह्माण्डरूप में प्रकट हुआ। उस परमेश्वर-माता की सुमति में रहने की प्रार्थना हुई है, या इच्छा प्रकट हुई है। साथ ही यह कहा है कि हम तेरी अनुकूलता में वर्तमान हैं-यह तू मान, अतः हमारी सदा उन्नति कर। एजति= एजृ दीप्तौ, तथा एजृ कम्पने, दोनों धातुएं (भ्वादिः)। कम्पित होना= गतिशील होना। मंससे= लेट् लकार “सिप्’’]। [१. माता के गुण जैसे सन्तति में प्रकट होते हैं, वैसे परमेश्वर-माता के गुण सृष्टिकर्तृत्व, न्यायकारित्व, अनुग्रह आदि ब्रह्माण्ड में प्रकट हो रहे हैं।]