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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - शाला सूक्त

    या द्विप॑क्षा॒ चतु॑ष्पक्षा॒ षट्प॑क्षा॒ या नि॑मी॒यते॑। अ॒ष्टाप॑क्षां॒ दश॑पक्षां॒ शालां॒ मान॑स्य॒ पत्नी॑म॒ग्निर्गर्भ॑ इ॒वा श॑ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । द्विऽप॑क्षा । चतु॑:ऽपक्षा । षट्ऽप॑क्षा । या । नि॒ऽमी॒यते॑ । अ॒ष्टाऽप॑क्षाम् । दश॑ऽपक्षाम् । शाला॑म् । मान॑स्य । पत्नी॑म् । अ॒ग्नि: । गर्भ॑:ऽइव । आ । श॒ये॒ ॥३.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या द्विपक्षा चतुष्पक्षा षट्पक्षा या निमीयते। अष्टापक्षां दशपक्षां शालां मानस्य पत्नीमग्निर्गर्भ इवा शये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । द्विऽपक्षा । चतु:ऽपक्षा । षट्ऽपक्षा । या । निऽमीयते । अष्टाऽपक्षाम् । दशऽपक्षाम् । शालाम् । मानस्य । पत्नीम् । अग्नि: । गर्भ:ऽइव । आ । शये ॥३.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 21

    भाषार्थ -
    (या) जो शाला (द्विपक्षा) दो पक्षों वाली, (चतुष्पक्षा) चार पक्षों वाली, (या) जो (षट्पक्ष) छः पक्षों वाली (निमीयते) निर्मित की जाती है, तथा (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षों वाली (दशपक्षाम्) दश पक्षों वाली, (मानस्य पत्नीम्) मान की रक्षा करने वाली (शालाम्) शाला में, (अग्निः) गार्हपत्य-यज्ञियाग्नि (आशये) सोती है, (इव) जैसे कि (गर्भः) गर्भस्थशिशु माता के गर्भ में सोता है।

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