अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 26
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - शाला
छन्दः - एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शाला सूक्त
दक्षि॑णाया दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्येभ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठदक्षि॑णाया: । दि॒श: । शाला॑या: । नम॑: । म॒हि॒म्ने । स्वाहा॑ । दे॒वेभ्य॑: । स्वा॒ह्ये᳡भ्य:॥३.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
दक्षिणाया दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठदक्षिणाया: । दिश: । शालाया: । नम: । महिम्ने । स्वाहा । देवेभ्य: । स्वाह्येभ्य:॥३.२६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 26
भाषार्थ -
दक्षिण दिशा से, शाला के महत्व१ या महिमा के लिये हम अन्नाहुतियां देते हैं, अर्थात् स्वाहा२ योग्य देवों के प्रति, स्वाहा पद के उच्चारणपूर्वक अन्नाहुतियां देते है।
टिप्पणी -
[१. शाला के परिमाण की दृष्टि से। २. शाला प्रवेश संस्कार में जिस-जिस दिशा के जो-जो देव हैं उनके प्रति।]