अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
स्रु॒चा हस्ते॑न प्रा॒णे यूपे॑ स्रुक्का॒रेण॑ वषट्का॒रेण॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्रु॒चा । हस्ते॑न । प्रा॒णे । यूपे॑ । स्रु॒क्ऽका॒रेण॑ । व॒ष॒ट्ऽका॒रेण॑ ॥७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
स्रुचा हस्तेन प्राणे यूपे स्रुक्कारेण वषट्कारेण ॥
स्वर रहित पद पाठस्रुचा । हस्तेन । प्राणे । यूपे । स्रुक्ऽकारेण । वषट्ऽकारेण ॥७.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 2;
मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(स्रुचा हस्तेन) हाथ रूपी स्रुच् द्वारा, (प्राणे यूपे) प्राण रूपी यूप१ में, (स्रुक्कारेण वषट्कारेण) खाते हुए जो स्रुक् शब्द होता है तद्रूपी, वषट्कार२ द्वारा।
टिप्पणी -
[१. यूप, यज्ञियखम्भा होता है जिस के साथ यज्ञियपशु बान्धा जाता है। (अथर्व० ६।६ (१)।६)। २. अग्निहोत्र में आहुति "स्वाहा" के उच्चारण द्वारा दी जाती है। अन्य यज्ञों में याज्यामन्त्रों के अन्त में "वषट्" के उच्चारण द्वारा आहुति दी जाती है।]