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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 1
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    वी॒डु चि॑दारुज॒त्नुभि॒र्गुहा॑ चिदिन्द्र॒ वह्नि॑भिः। अवि॑न्द उ॒स्रिया॒ अनु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वीलु । चि॒त् । आ॒रु॒ज॒त्नुऽभि॑: । गुहा॑ । चि॒त् । इ॒न्द्र॒ । वह्नि॑भि: ॥ अवि॑न्द: । उ॒स्रिया॑: । अनु॑ ॥७०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वीडु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्निभिः। अविन्द उस्रिया अनु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वीलु । चित् । आरुजत्नुऽभि: । गुहा । चित् । इन्द्र । वह्निभि: ॥ अविन्द: । उस्रिया: । अनु ॥७०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 1

    Translation -
    O soul, thou mayst speedily visualise rays of spiritual light through the sustaining capacity of the vital breaths, tamed through the hard process of Pranayam. Or O mighty king, thou canst capture the most fertile lands, after speedily destroying the secret forts of the enemies with thy forces of smashing fire power.

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