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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 130

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 7
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुषी बृहती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    यवा॑नो यति॒ष्वभिः॑ कुभिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यवा॑न: । यति॒ष्वभि॑: । कुभि: ॥१३०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यवानो यतिष्वभिः कुभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यवान: । यतिष्वभि: । कुभि: ॥१३०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 7

    भाषार्थ -
    এবং এমন সদ্গুরুর প্রতি প্রার্থনা করো যে, হে সদ্গুরু! (কুভিঃ) পার্থিব (যতিস্বভিঃ) যত প্রকারের ধন আছে, তা থেকে (নঃ) আমাদের/আমাকে (যবা=যব, যবয়) মুক্ত করুন।

    - [যব=যু অমিশ্রণে। কু=পৃথিবী; Earth (আপ্টে), বা কু=কুৎসিক ধন। অথবা “যবানঃ”=যু+শানচ্। যবানঃ ভব।]

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