यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 16
तस्मा॒ऽ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ।आपो॑ ज॒नय॑था च नः॥१६॥
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑। अर॑म्। ग॒मा॒म॒। वः॒। यस्य॑। क्षया॑य। जिन्व॑थ ॥ आपः॑। ज॒नय॑थ। च॒। नः॒ ॥१६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माऽअरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥
स्वर रहित पद पाठ
तस्मै। अरम्। गमाम। वः। यस्य। क्षयाय। जिन्वथ॥ आपः। जनयथ। च। नः॥१६॥
मन्त्रार्थ -
(आप:-यस्य क्षयाय जिन्वथ) हे जल धाराओं! जिस रस के हमारे शरीर में निवास के लिए स्थिर करने के लिए पीए हुए तृप्त करते हो (जनयथा च नः) और हमें उत्पन्न करते हो (तस्मै वः-अरङ्गमाम) उस रस के लिए उस रस की प्राप्ति के लिए तुम्हें पूर्णरूप से हम प्राप्त होवें ॥१६॥
विशेष - ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥
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