Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 36

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 16
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    281

    तस्मा॒ऽ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ।आपो॑ ज॒नय॑था च नः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मै॑। अर॑म्। ग॒मा॒म॒। वः॒। यस्य॑। क्षया॑य। जिन्व॑थ ॥ आपः॑। ज॒नय॑थ। च॒। नः॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्माऽअरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मै। अरम्। गमाम। वः। यस्य। क्षयाय। जिन्वथ॥ आपः। जनयथ। च। नः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे स्त्रियो! यथा यूयं नोऽस्मानाप इव शान्ताञ्जनयथ, तथा वो युष्मान् च शान्ता वयं जनयेम यूयं यस्य क्षयाय जिन्वथ तस्मै वयमरंगमाम॥१६॥

    पदार्थः

    (तस्मै) (अरम्) अलम् (गमाम) प्राप्नुयाम (वः) युष्मान् (यस्य) (क्षयाय) निवासाय (जिन्वथ) प्रीणयथ (आपः) जलानीव (जनयथ) अत्र संहितायाम् [अ॰६.३.११४] इति दीर्घः। (च) (नः) अस्मान्॥१६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। स्त्रीपुरुषैः परस्परस्याऽऽनन्दाय जलवत्सरलतया वर्त्तितव्यं शुभाचरणैः परस्परमलंकृतैरेव भवितव्यम्॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे स्त्रियो! जैसे तुम लोग (नः) हमको (आपः) जलों के तुल्य शान्त (जनयथ) प्रकट करो, वैसे (वः) तुमको हम लोग शान्त प्रकट करें (च) और तुम लोग (यस्य) जिस पति के (क्षयाय) निवास के लिये (जिन्वथ) उसको तृप्त करो (तस्मै) उस के लिये हम लोग (अरम्) पूर्ण सामर्थ्ययुक्त (गमाम) प्राप्त होवें॥१६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। स्त्री-पुरुषों को योग्य है कि परस्पर आनन्द के लिये जल के तुल्य सरलता से वर्तें और शुभ आचरणों के साथ परस्पर सुशोभित ही रहें॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शान्तिकरण ।

    भावार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या [अ० ११ । ५२]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विकास व बन्ध्यत्व-निवृत्ति

    पदार्थ

    रस १. (वः तस्मा) [तस्मै] = हे जलो! आपके उस रस को हम (अरम्) = पर्याप्त रूप से गमाम प्राप्त हों, (यस्य) = जिस रस के कारण [यस्य हेतोः] आप हमें (क्षयाय) = [क्षि-निवासगत्योः] निवास व गति के लिए (जिन्वथ) = प्रीणित करते हो, बढ़ाते हो। जलों में एक रस है, ही जलों का गुण है। यह रस रोगों को नष्ट कर शरीर में हमारे निवास को उत्तम बनाता है और हममें स्फूर्ति का सञ्चार करता है। हम नीरोग व बड़े क्रियाशील बने रहते हैं । २. (आपः) = हे जलो! आप (नः) = हमें (जनयथा च) = सब प्रकार से आविर्भूत, विकसित करते हो । आपके प्रयोग से हमारी सब शक्तियों का ठीक विकास होता है। 'जनयथा' शब्द का संकुचित अर्थ यह है कि जननशक्ति से युक्त करते हो। ये जल बन्ध्या को अबन्ध्या बना देते हैं। जैसे ये मरुभूमि को उर्वरा बना देते हैं, उसी प्रकार ये पुरुष व नारी को भी अबन्ध्यता प्राप्त कराते हैं। इनके शास्त्र - विहित प्रयोग से बन्ध्यात्व नष्ट हो जाता है। ये जल अन्य सब शक्तियों का विकास करते हुए बन्ध्यापन को भी दूर करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - इस जल-रस सेवन से हम उत्तम निवासवाले हों, गतिशील हों और हमारी सब शक्तियों का विकास होकर हमारा बन्ध्यापन दूर हो।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (आप:-यस्य क्षयाय जिन्वथ) हे जल धाराओं! जिस रस के हमारे शरीर में निवास के लिए स्थिर करने के लिए पीए हुए तृप्त करते हो (जनयथा च नः) और हमें उत्पन्न करते हो (तस्मै वः-अरङ्गमाम) उस रस के लिए उस रस की प्राप्ति के लिए तुम्हें पूर्णरूप से हम प्राप्त होवें ॥१६॥

    विशेष

    ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. स्री-पुरुषांनी परस्पर आनंदासाठी जलाप्रमाणे शांत राहावे व चांगल्या वर्तनाने परस्पर शोभून दिसावे.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुनश्‍च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे श्रेष्ठ गृहिणीनो, ज्या प्रमाणे तुम्ही (नः) आम्हाला (आपापल्या पतीला) (आपः) जलाप्रमाणे शांत व शीतल (जनपथ) करता (पतीच्या क्रोध शांत करता हृदयातील शांतभाव जागृत करता) (वः) त्याप्रमाणे आम्हीही तुमच्याशी शांतीने वागू) (च) आणि तुम्ही (यस्य) ज्या पतीच्या (क्षयाय) निवासस्थानात राहून (जिन्वय) त्याला आपल्या स्नेहमय व्यवहाराने तृप्त वा करावे (तस्मै) त्यासाठी आम्ही (घरातील अन्यजन) (अरम्) पूर्ण सामर्थ्याने (गमाम) प्रयन्त करू. ॥16॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. पति-पत्नीला हे उचित आहे की त्या दोघांना आनंद प्राप्त करावयाचा असेल, तर एकमेकाशी पाण्याप्रमाणे शीतलत्वाने वागावे आणि शुभ आचरण करीत एकमेकाशी सानंद असावे. ॥16॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O wives, just as ye make us calm like water, so should we make ye peaceful. As each of ye satisfies her husband for decent living for him, so may we acquire power and wealth for him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Women, cool and blessed like heavenly waters, as you arise for the peace and bliss of the home of the man you love, we would provide for the joy and comfort of him and for you too. And you too create and generate joy and bliss for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May we have enough of your that sap to our full satisfaction, with which you nourish the whole world. And may we be born for this again. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে স্ত্রীগণ ! যেমন তোমরা (নঃ) আমাদিগকে (আপঃ) জলের তুল্য শান্ত (জনয়থ) প্রকাশ কর, সেইরূপ (বঃ) তোমাদিগকে আমরা শান্ত প্রকাশ করি (চ) এবং তোমরা (য়স্য) যে পতির (ক্ষয়ায়) নিবাস হেতু (জিন্বথ) তাহাকে তৃপ্ত কর (তস্মৈ) তাহার জন্য আমরা (অরম্) পূর্ণ সামর্থ্যযুক্ত (গমাম) প্রাপ্ত হইব ॥ ১৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । স্ত্রী-পুরুষদিগের উচিত যে, পরস্পর আনন্দহেতু জলের সমান সারল্যপূর্বক আচরণ করিবে এবং শুভ আচরণ সহ পরস্পর সুশোভিতই থাকবে ॥ ১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তস্মা॒ऽ অরং॑ গমাম বো॒ য়স্য॒ ক্ষয়া॑য়॒ জিন্ব॑থ ।
    আপো॑ জ॒নয়॑থা চ নঃ ॥ ১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তস্মা ইত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top