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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 21
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    244

    नम॑स्तेऽअस्तु वि॒द्युते॒ नम॑स्ते स्तनयि॒त्नवे॑।नम॑स्ते भगवन्नस्तु॒ यतः॒ स्वः स॒मीह॑से॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑ ते। अ॒स्तु॒। वि॒द्युत॒ इति॑ वि॒ऽद्युते॑। नमः॑। ते॒। स्त॒न॒यि॒त्नवे॑ ॥ नमः॑। ते॒। भ॒ग॒व॒न्निति॑ भगऽवन्। अ॒स्तु॒। यतः॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। स॒मीह॑स॒ इति॑ स॒म्ऽईह॑से। ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते अस्तु विद्युते नमस्ते स्तनयित्नवे । नमस्ते भगवन्नस्तु यतः स्वः समीहसे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः ते। अस्तु। विद्युत इति विऽद्युते। नमः। ते। स्तनयित्नवे॥ नमः। ते। भगवन्निति भगऽवन्। अस्तु। यतः। स्वरिति स्वः। समीहस इति सम्ऽईहसे। ॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे भगवन्! यतस्त्वमस्मभ्यं स्वः समीहसे तस्माद्विद्युते ते नमोऽस्तु, स्तनयित्नवे ते नमोऽस्तु, सर्वाभिरक्षकाय ते नमश्च सततं कुर्य्याम॥२१॥

    पदार्थः

    (नमः) (ते) तुभ्यं परमेश्वराय (अस्तु) (विद्युते) विद्युदिवाऽभिव्याप्ताय (नमः) (ते) (स्तनयित्नवे) स्तनयित्नुरिव दुष्टानां भयङ्कराय (नमः) (ते) (भगवन्) अत्यन्तैश्वर्य्यसम्पन्न (अस्तु) (यतः) (स्वः) सुखदानाय (समीहसे) सम्यक् चेष्टसे॥२१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! यस्मादीश्वरोऽस्मभ्यं सदाऽऽनन्दाय सर्वाणि साधनोपसाधनानि प्रयच्छति, तस्मादयमस्माभिः सेव्योऽस्ति॥२१॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (भगवन्) अनन्त ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! (यतः) जिस कारण आप हमारे लिये (स्वः) सुख देने के अर्थ (समीहसे) सम्यक् चेष्टा करते हैं, इससे (विद्युते) बिजुली के समान अभिव्याप्त (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो, (स्तनयित्नवे) अधिकतर गर्जनेवाले विद्युत् के तुल्य दुष्टों को भय देनेवाले (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो और सबकी सब प्रकार रक्षा करनेहारे (ते) तेरे लिये (नमः) निरन्तर नमस्कार करें॥२१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यो! जिस कारण ईश्वर हमारे लिये सदा आनन्द के अर्थ सब साधन-उपसाधनों को देता है, इससे हमको सेवा करने योग्य है॥२१॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( विद्युते ) = विशेष प्रकाश  तेज: स्वरूप  ( ते ) = आपके लिए  ( नमः अस्तु ) = नमस्कार हो ।  ( स्तनयित्नवे ) =  शब्द करनेवाले  ( ते नमः ) = आपको नमस्कार हो। हे  ( भगवन् ) = ऐश्वर्यसम्पन्न जगन्नियन्तः !  ( ते नमः अस्तु ) = आपको प्रणाम हो, ( यतः ) = जिससे  ( स्व: ) = सबको आनन्द करने के लिए  ( समीहसे ) = आप सम्यक् चेष्टा करते हैं । 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे सकल ऐश्वर्ययुक्त समर्थ प्रभो ! आप विशेष प्रकाशस्वरूप और किसी से भी न दबनेवाले महातेजस्वी हो, आपको हमारा नमस्कार हो। आप शब्द करनेवाले अर्थात् वेदवाणी के दाता हो, आप सदा आनन्द में रहते हो अपने प्रेमी भक्तों को सदा आनन्द में रखते हो। आपकी जो-जो चेष्टाएँ हैं वे सबको आनन्द देने के लिए ही हैं, अतएव हम आपको बारम्बार नमस्कार करते हैं ।

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    भावार्थ

    ( विद्यते ते नमः ) विद्यत् के समान तेजस्वी तुझे नमस्कार है । (स्तनयित्नवे ते नम:) मेघ के समान गर्जन करने वाले तुझे नमस्कार है । हे ( भगवन् ) ऐश्वर्यवन् राजन् एवं परमेश्वर ! ( यत: स्व: समीह से ) क्योंकि तू ही समस्त प्राणियों को सुख देने के लिये समस्त व्यापार कर रहा है अतः (ते नमः अस्तु) तुझे सदा नमस्कार हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भगवान् ईश्वरः । निचृदनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    'विद्युत्, स्तनयित्नु व भगवान्'

    पदार्थ

    १. (विद्युते) = विशेषरूप से चमकनेवाले (ते) = तेरे लिए (नमः अस्तु) = नमस्कार हो । वे प्रभु सर्वतो देदीप्यमान हैं, वे तो ज्योतिर्मय ही - ज्योतिर्मय हैं। ('ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः') = [यजुः] वे प्रभु सूर्य के समान चमकते हैं। हज़ारों सूर्यों के सामन उस प्रभु की आभा है। जीव की चमक सूर्य की चमक की भाँति अपनी चमक नहीं है। जीव का ज्ञान तो नैमित्तिक है। सूर्य के प्रकाश से चन्द्रमा भी प्रकाशवाला होता है, इसी प्रकार प्रकार प्रभु की ज्योति प्राप्त करके जीव भी ज्योर्तिमय होता है। जब कभी सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथिवी आ जाती है तब चन्द्रग्रहण हो जाता है, चन्द्रमा का उतना भाग चमकता नहीं। जीव को भी यह ब्रह्मज्योति इन पार्थिव भोगों के बीच में आ पड़ने से प्राप्त नहीं होती। पार्थिव भोग हटे, और जीव ज्ञानज्योति से जगमगा उठा। २. (स्तनयित्नवे ते नमः) = मेघ के समान गर्जना करनेवाले आपके लिए नमस्कार हो । प्रभु ज्ञान की ज्योति से परिपूर्ण तो हैं ही। वे उस ज्ञान का शब्दों में उच्चारण भी कर रहे हैं। धीमे-धीमे नहीं, मेघ की गर्जना के समान, परन्तु उस गर्जना को भी हम नहीं सुन पाते, क्योंकि हमारे मानस पटल के द्वार ही बन्द हो रहे हैं। मौज-मस्ती में, संसार के आमोद-प्रमोद में प्रभु की आवाज़ सुनाई नहीं देती। हम मौजों "से उपर उठेंगे, तो प्रभुदर्शन करेंगे, उनकी आवाज़ को सुनेंगे। भोज (Feast) में उसकी आवाज़ दब जाती है, भूख ( fast) में स्पष्ट सुनाई पड़ती है। सुख-सम्पत्ति में "God is nowhere" लगता है, तो विपत्ति में 'God is now here' हो जाता है। सुख में हम प्रभु को भूल जाते हैं- दुःख में ही स्मरण होता है। ३. बीच के आवरण के हटते ही हम कह उठते हैं कि हे (भगवन्) = भगवाले प्रभो । (ते) = तेरे लिए (नमः अस्तु) = नमस्कार हो । 'भग' की इच्छा से हमें उस भगवान् के पास ही जाना होगा। भग का अभिप्राय 'ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान तथा वैराग्य' है। मनुष्य अपनी प्रारम्भिक स्थिति में 'ऐश्वर्य व वीर्य' धन व शक्ति चाहता है, ज़रा ऊँचा उठने पर उसका ध्येय यश व श्री हो जाते हैं और अन्त में उसका झुकाव ज्ञान व वैराग्य की ओर जो जाता है। मनुष्य उन्नति की किसी भी स्थिति में हो वह इन ऐश्वर्यादि की प्राप्ति के लिए उस 'भगवान्' के पास ही जाएगा। ४. हे प्रभो! यह 'भग' वह है (यतः) = जिसके द्वारा (स्वः) = हमारे सुख को (समीहसे) = आप सम्यक्तया करना चाहते हैं। प्रारम्भ में ऐश्वर्य व वीर्य से ही जीवन-यात्रा चलती है। इनमें से किसी एक के भी आभाव में जीवन यात्रा चलना सम्भव नहीं । मनुष्य इन्हें प्राप्त करके यश व श्री की कामनावाला होता है और अन्त में ज्ञान व वैराग्य में शान्ति-लाभ करता है। इस प्रकार मनुष्य का जीवन सुख से व्यतीत हो पाता है। वैराग्य की - अनासक्ति की अन्तिम सीढ़ी पर पहुँचकर जीव सचमुच (दध्यङ् आथर्वण) = प्रभु का ध्यान करनेवाला निश्चल मनोवृत्तिवाला बन जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु विद्युत् है, स्तनयित्नु हैं, भगवान् हैं। भग को प्राप्त कराके वे प्रभु हमारा कल्याण करते हैं।

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    मन्त्रार्थ

    (भगवन् ते विद्युते नमः) हे परमात्मन् ! तेरे रचे मेघों में वर्तमान विद्युत् के लिये स्वागत है (ते स्तनयित्नवे नमः) तेरे रचे मेघों में वर्तमान स्तनयित्नु नामक गर्जन करने वाले पदार्थ के लिए स्वागत हो (यतः स्वः समीहसे) जिससे कि इन विद्युत् और स्तनयित्नु के द्वारा तू मेघजल को हम तक प्रेरित करता है (ते नमः-अस्तु) अतः तेरे लिए स्वागत है ॥२१॥

    विशेष

    ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो ईश्वर सर्वत्र व्याप्त असतो (विद्युतप्रमाणे आपल्या गर्जनेने दुष्टांना भयभीत करतो) व सर्व माणसांच्या सुखासाठी साधने व उपसाधने देतो तोच नमस्कार करण्यायोग्य आहे.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (भगवन्) अनंत ऐश्वर्यवान परमेश्‍वर, (यतः) ज्या अर्थी आपण आम्हास (स्वः) सुख देर्‍यासाठी (समीहसे) उचित प्रकारे यत्न करता, त्यामुळे (विद्युत) विद्युतप्रमाणे सर्वत्र व्याप्त (ते) आपणासाठी आमचे (नमः) नमस्कार (अस्तु) असोत. तसेच (स्तनयित्नवे) कडाडणार्‍या विजेप्रमाणे दुष्टांना भयभीत करणार्‍या (ते) अशा आपणासाठी (नः) आमचे (नमः) नमस्कार (अस्तु) असोत. सर्वांची रक्षा करणार्‍या (ते) आपणास (नमः) आम्ही (आपले उपासक) सदा-सर्वदा नमस्कार करतो व करीत आहोत. ॥२१॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. हे मनुष्यानो, ईश्‍वर आमच्या सुख-समाधानासाठी सदा सर्व साधनें-उपसाधनें यांची व्यवस्था करतो. यामुळे आम्ही त्याची सेवा-उपासना अवश्य करावी. ॥२१॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Homage to Thee God pervading like lightning, Homage to Thee God, the Inspirer of awe for the sinners. Homage, O Bounteous Lord to thee, as Thou desirest to give us happiness.

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    Meaning

    Homage to the lord of lightning! Homage to the lord of thunder! Salutation to you, lord of omnipotence, since you alone love, inspire and gather us into light and bliss!

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    Translation

    Our homage be to you, the lightning bright; homage to you, the thundering loud. O bounteous Lord, our homage be to you as you strive to lead us to the world of light. (1)

    Notes

    Vidyute, विद्युद् रूपाय, one in the lightning form. Stanayitnave,स्तनयित्नुर्गर्जितं, thunder; thundering loud. Svaḥ, light; world of light and bliss; heavan.

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    बंगाली (2)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (ভগবন্) অনন্ত ঐশ্বর্য্যযুক্ত পরমেশ্বর (য়তঃ) যে কারণে আপনি আমাদের জন্য (স্বঃ) সুখ দেওয়ার জন্য (সমীহসে) সম্যক্ চেষ্টা করেন, এইজন্য (বিদ্যুতে) বিদ্যুতের সমান অভিব্যাপ্ত (তে) আপনার জন্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক, (স্তনয়িত্নবে) অধিকতর গর্জনকারী বিদ্যুৎ তুল্য দুষ্টদিগকে ভয়দাতা (তে) আপনার জন্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক এবং সকলের সব প্রকার রক্ষাকারী (তে) আপনার জন্য (নমঃ) নিরন্তর নমস্কার করি ॥ ২১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে, হে মনুষ্যগণ ! যে কারণে ঈশ্বর আমাদের জন্য সর্বদা আনন্দের জন্য সব সাধন-উপসাধন সমূহকে প্রদান করে, এইজন্য তিনি আমাদের দ্বারা সেবা করিবার যোগ্য ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নম॑স্তেऽঅস্তু বি॒দ্যুতে॒ নম॑স্তে স্তনয়ি॒ত্নবে॑ ।
    নম॑স্তে ভগবন্নস্তু॒ য়তঃ॒ স্বঃ᳖ স॒মীহ॑সে ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নমস্ত ইত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । ঈশ্বরো দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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    পদার্থ

    নমস্তে অস্তু বিদ্যুতে নমস্তে স্তনয়িত্নবে ।

    নমস্তে ভগবন্নস্তু যতঃ স্বঃ সমীহসে।।৩।।

    (যজু ৩৬।২১)

    পদার্থঃ (বিদ্যুতে) বিশেষ প্রকাশ তেজঃ স্বরূপ! (তে) তোমাকে (নমঃ অস্তু) নমস্কার, (স্তনয়িত্নবে) শব্দকারী (তে নমঃ) তোমাকে নমস্কার। হে (ভগবন্) ঐশ্বর্য সম্পন্ন জগৎ নিয়ন্তা! (তে নমঃ অস্তু) তোমাকে নমস্কার, (যতঃ) যেহেতু (স্বঃ) সবাইকে আনন্দিত করার জন্য (সমীহসে) তুমি সম্যক চেষ্টা করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সকল ঐশ্বর্যযুক্ত সমর্থ পরমেশ্বর! তুমি বিশেষ প্রকাশস্বরূপ, কারো দ্বারা বশীভূত নও এবং মহাতেজস্বী। তোমাকে নমস্কার। তুমি শব্দকারী অর্থাৎ বেদবাণী দানকারী। তুমি সচ্চিদানন্দ এবং নিজের প্রেমী ভক্তদের সদা আনন্দে রাখ। তোমার চেষ্টাসমূহ   সবাইকে আনন্দ দানের জন্যই। অতএব আমরা তোমাকে বারবার নমস্কার করি।।৩।।

     

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