यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 7
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - वर्द्धमाना गायत्री
स्वरः - षड्जः
233
कया॒ त्वं न॑ऽ ऊ॒त्याभि प्र म॑न्दसे वृषन्।कया॑ स्तो॒तृभ्य॒ऽ आ भ॑र॥७॥
स्वर सहित पद पाठकया॑। त्वम्। नः॒। ऊ॒त्या। अ॒भि। प्र। म॒न्द॒से॒। वृ॒ष॒न् ॥ कया॑। स्तो॒तृभ्य॒ इति॑ स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कया त्वम्नऽऊत्याभि प्र मन्दसे वृषन् । कया स्तोतृभ्य आ भर ॥
स्वर रहित पद पाठ
कया। त्वम्। नः। ऊत्या। अभि। प्र। मन्दसे। वृषन्॥ कया। स्तोतृभ्य इति स्तोतृऽभ्यः। आ। भर॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे वृषन्नीश्वर! त्वं कयोत्या नोऽभिप्रमन्दसे, कया स्तोतृभ्यः सुखमाभर॥७॥
पदार्थः
(कया) (त्वम्) (नः) अस्मान् (ऊत्या) रक्षणाद्यया क्रियया (अभि) (प्र) (मन्दसे) सर्वत्र आनन्दयसि (वृषन्) सुखाभिवर्षक (कया) रीत्या (स्तोतृभ्यः) प्रशंसकेभ्यो मनुष्येभ्यः (आ) (भर)॥७॥
भावार्थः
हे भगवन् परमात्मन्! यया युक्त्या त्वं धार्मिकानानन्दयसि, तान् सर्वतः पालयसि, तां युक्तिमस्मान् बोधय॥७॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (वृषन्) सब ओर से सुखों को वर्षानेवाले ईश्वर (त्वम्) आप (कया) किस (ऊत्या) रक्षण आदि क्रिया से (नः) हमको (अभि, प्र, मन्दसे) सब ओर से आनन्दित करते और (कया) किस रीति से (स्तोतृभ्यः) आपकी प्रशंसा करनेवाले मनुष्यों के लिये सुख को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये॥७॥
भावार्थ
हे भगवन् परमात्मन्! जिस युक्ति से आप धर्मात्माओं को आनन्दित करते, उनकी सब ओर से रक्षा करते हैं, उस युक्ति को हमको जताइये॥७॥
पदार्थ
पदार्थ = हे (वृषन् ) = सब सुख और ऐश्वर्य के वर्षक परमात्मन् ! ( त्वम् ) = आप ( कया ) = किस अचिन्तनीय सुखदायक ( ऊत्या ) = रक्षण आदि क्रिया से ( न: ) = हमको ( अभि प्र मन्दसे ) = सब ओर से आनन्दित करते और ( कया ) = किस रीति से ( स्तोतृभ्यः ) = आपकी प्रशंसा करनेवाले मनुष्यों के लिए सुख को ( आभर ) = सब प्रकार से प्राप्त कराते हो ?
भावार्थ
भावार्थ = हे परम दयालु परमात्मन्! जिस बुद्धि और युक्ति से आप धर्मात्मा ज्ञानी पुरुषों को सुखी करते और उनकी सब और से रक्षा करते हैं, उस बुद्धि और युक्ति को हमको भी जताइये।
विषय
शान्तिकरण ।
भावार्थ
हे (वृषन् ) सुखों और ऐश्वर्यों के वर्षक परमेश्वर एवं राजन् ! (त्वम्) तू (कया ऊत्या) किस प्रकार की रक्षाविधि से (अभि प्र मन्दसे) प्रजाओं को प्रसन्न करता है और (स्तोतृभ्यः) स्तुतिशील विद्वानों के (कया )किस पालन क्रिया से (आ भर) सब प्रकार से समृद्धि प्राप्त करता है ? उससे हमें भी समृद्ध कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रः । वर्धमाना गायत्री । षड्जः ॥
विषय
प्रभु का प्रवेश व प्रसाद
पदार्थ
१. (वृषन्) = हे शक्तिशालिन् ! हे सब सुखों के वर्षक प्रभो! जो निर्बल है वह तो दूसरे का कल्याण कर ही नहीं सकता। सबल होते हुए भी जिसे हमसे प्रेम नहीं वह हमारी सहायता नहीं करता। आप सबल भी हैं, जीव के प्रिय मित्र होने से सुखों की वर्षा करनेवाले भी । हे वृषन् प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमें (कया ऊत्या) = [अव् = प्रवेश] कल्याणकारक प्रवेश से (अभिप्रमन्दसे) = आनन्दित व हर्षित करते हो। जैसे एक छोटा बच्चा पिताजी के घर आने पर प्रसन्न होता है, इसी प्रकार प्रभुभक्त प्रभु के हृदय में प्रवेश करने पर आह्लाद का अनुभव करता है। २. प्रभु के प्रवेश से हममें दिव्यता का पोषण होता है, अतः मन्त्र में कहते हैं कि कया [ऊत्या] = इस आनन्ददायक प्रवेश से और इसके द्वारा दिव्यांश के दोहन से (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिए आभर दिव्यता को धारण कीजिए। आपके स्तोताओं का जीवन दिव्यता से भर जाए । स्तोता 'दध्यङ' है, प्रभु का ध्यान करनेवाला है। यह सांसारिक विषयों के प्रति डाँवाँडोल मनोवृत्तिवाला न होने के कारण 'अथर्वण' है। यह 'दध्यङ्-आथर्वण' स्थिर मनोवृत्ति के कारण प्रकृति के पीछे नहीं भटकता, अतः प्रभु का ध्यान कर पाता है। इस ध्यान के परिणामरूप ही उसका जीवन अधिकाधिक दिव्यतावाला होता है। यह दिव्य जीवन वास्तविक प्रसाद व उल्लास को जन्म देता है। में भरकर सदा
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के स्तोता बनें, जिससे प्रभु की दिव्यता को अपने उल्लासमय जीवनवाले हों।
मन्त्रार्थ
(वृषन् त्वं कचा-ऊत्या) हे सुखवर्षक परमात्मन् ! तू किसी भी विशेषरक्षा से (न: प्रमन्द से) हमको आनन्दित करते हो तथा (कया स्तोतृभ्यः-आ भर) किसी भी विशेषरक्षा से स्तोताओं हम उपासको का भरण पोषण करते हो जब हम साधारण अवस्था में होते हैं तो हमें आनन्दित करने का प्रकार आपका और है और जब हम तेरे स्तोता उपासक हो जाते है तो हमारे भरण का प्रकार और होता है ॥७॥
विशेष
ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
हे परमेश्वरा ! ज्या रीतीने (युक्तीने) तू धर्मात्म्यांना आनंदी करतोस व त्यांचे सगळ्या प्रकारे रक्षण करतोस ती रीत (युक्ती) आम्हालाही कळू दे.
विषय
पुन्हा त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (वृषन्) सर्व दिशांकडून आमच्या वर सुखांची वृष्टी करणार्या परमेश्वरा, (त्वम्) तूच (कया) कोणत्या व कशाप्रकारे (ऊत्य) आपल्या रक्षण-पालन आदी क्रियांनी (नः) आम्हा (उपासकांना) (अभि, प्र, मन्दसे) सर्वतः) आनंदित करतोस (हे आम्ही जाणू शकत नाही. (ते जाणतोस) तसेच (स्तोतृभ्यः) स्तूति-उपासना करणार्या मनुष्यांसाठी तू सुख, आनंद व प्रेरणा यांचे दान (कया) कोणत्या रीतीने करतोस (ते आम्ही जाणू शकत नाहीत तुझे तूच जाणतो) ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ - हे भगवान्, परमात्मन्, ज्या उपायांद्वारे आपण धर्मात्माजनांना आनंदी करता आणि त्यांची रक्षा करता, ती युक्ती वा रीती आम्हास कळू द्या. (परमेश्वर दयाळू व सर्वरक्षक आहे. तो दया व रक्षा करतो, पण कसे? हे तोच जाणतो.) ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, the Showerer of joys from all sides, with what aid dost Thou delight us, in what way dost Thou bestow happiness on thy worshippers.
Meaning
Lord of abundant showers, let us know by which ways of protection you save and bless your worshippers with joy, and by which forms of generosity you raise your devotees.
Translation
O resplendent Lord, being pleased, with what protective measures do you delight us? What are the riches that you grant to your worshippers? (1)
Notes
Kayā, is interrogative; with what? Also, it may mean: with pleasant. क = pleasing. Vṛṣan, O showerer; or being pleased; or desirous.
बंगाली (2)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (বৃষন্) সব দিক দিয়া সুখবর্ষণকারী ঈশ্বর (ত্বম্) আপনি (কয়া) কোন্ (ঊত্যা) রক্ষণাদি ক্রিয়া দ্বারা (নঃ) আমাদেরকে (অভি, প্র, মন্দসে) সব দিক দিয়া আনন্দিত করেন এবং (কয়া) কোন্ রীতি দ্বারা (্তোতৃভ্যঃ) আপনার প্রশংসাকারী মনুষ্যদিগের জন্য সুখকে (আ, ভর) উত্তম প্রকার ধারণ করেন ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে ভগবন্ পরমাত্মন্ ! যে যুক্তি দ্বারা আপনি ধর্মাত্মাদিগকে আনন্দিত করেন, তাহাদিগকে সব দিক দিয়া রক্ষা করেন, সেই যুক্তি আমাদিগকে বোধ উৎপন্ন করুক ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
কয়া॒ ত্বং ন॑ऽ ঊ॒ত্যাভি প্র ম॑ন্দসে বৃষন্ ।
কয়া॑ স্তো॒তৃভ্য॒ऽ আ ভ॑র ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
কয়া ত্বমিত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । বর্দ্ধমানা গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জ স্বরঃ ॥
পদার্থ
কয়া ত্বং নঽঊত্যাভিপ্রমন্দসে বৃষন্ । কয়া স্তোতৃভ্যঽআভর।।৫৮।।
(যজু ৩৬।৭)
পদার্থঃ হে (বৃষন্) সকল সুখ এবং ঐশ্বর্য্যের বর্ষণকারী পরমাত্মা! (ত্বম্) তুমি (কয়া) কোন (ঊত্যা) রক্ষণ সহ সকল ক্রিয়া দ্বারা (নঃ) আমাদের (অভিপ্রমন্দসে) সকল দিক হতে আনন্দিত করে থাক এবং (কয়া) কোন রীতিতে (স্তোতৃভ্যঃ) তোমার প্রশংসাকারী মনুষ্যের জন্য সুখ (আভর) সকল প্রকারে প্রাপ্ত করাও?
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরম দয়ালু পরমাত্মা! যেই যুক্তি এবং বুদ্ধি দ্বারা তুমি ধর্মাত্মা জ্ঞানী ব্যক্তিদের সুখী কর এবং সকল দিক হতে রক্ষা করো। ঐ বুদ্ধি এবং যুক্তি আমাদেরকেও জ্ঞাত করাও।।৫৮।।
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