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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - बृहस्पतिर्देवता छन्दः - निचृत्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    292

    यन्मे॑ छि॒द्रं चक्षु॑षो॒ हृद॑यस्य॒ मन॑सो॒ वाति॑तृण्णं॒ बृह॒स्पति॑र्मे॒ तद्द॑धातु। शं नो॑ भवतु॒ भुव॑नस्य॒ यस्पतिः॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। मे॒। छि॒द्रम्। चक्षु॑षः। हृद॑यस्य। मन॑सः। वा॒। अति॑तृण्ण॒मित्यति॑तृण्णम्। बृह॒स्पतिः॑। मे॒। तत्। द॒धा॒तु॒ ॥ शम्। नः॒। भ॒व॒तु॒। भुव॑नस्य। यः। पतिः॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्मे च्छिद्रञ्चक्षुषो हृदयस्य मनसो वातितृणम्बृहस्पतिर्मे तद्दधातु । शन्नो भवतु भुवनस्य यस्पतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। मे। छिद्रम्। चक्षुषः। हृदयस्य। मनसः। वा। अतितृण्णमित्यतितृण्णम्। बृहस्पतिः। मे। तत्। दधातु॥ शम्। नः। भवतु। भुवनस्य। यः। पतिः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरप्रार्थनाविषयमाह॥

    अन्वयः

    यन्मे चक्षुषो हृदयस्य छिद्रं मनसो वातितृण्णमस्ति तद्बृहस्पतिर्मे दधातु, यो भुवनस्य पतिरस्ति स नः शम्भवतु॥२॥

    पदार्थः

    (यत्) (मे) मम (छिद्रम्) न्यूनत्वम् (चक्षुषः) नेत्रस्य (हृदयस्य) (मनसः) अन्तःकरणस्य (वा) (अतितृण्णम्) अतिहिंसितं व्याकुलत्वम् (बृहस्पतिः) बृहतामाकाशादीनां पालक ईश्वरः (मे) मह्यम् (तत्) (दधातु) पुष्णातु (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (भवतु) (भुवनस्य) भवन्ति भूतानि यस्मिँस्तस्य (यः) (पतिः) पालकः स्वामीश्वरः॥३॥

    भावार्थः

    सर्वैर्मनुष्यैः परमेश्वरस्योपासनयाऽऽज्ञापालने चाऽहिंसाधर्मं स्वीकृत्य जितेन्द्रियत्वं सम्पादनीयम्॥२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब ईश्वर प्रार्थना विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (यत्) जो (मे) मेरे (चक्षुषः) नेत्र की वा (हृदयस्य) अन्तःकरण की (छिद्रम्) न्यूनता (वा) वा (मनसः) मन की (अतितृण्णम्) व्याकुलता है (तत्) उसको (बृहस्पतिः) बड़े आकाशादि का पालक परमेश्वर (मे) मेरे लिये (दधातु) पुष्ट वा पूर्ण करे (यः) जो (भुवनस्य) सब संसार का (पतिः) रक्षक है वह (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याणकारी (भवतु) होवे॥२॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की उपासना और आज्ञापालन से अहिंसा धर्म्म को स्वीकार कर जितेन्द्रियता को सिद्ध करें॥२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व माणसांनी त्या महान परमेश्वराची उपासना व आज्ञा पालन करून अहिंसा धर्माचे पालन करावे व जितेंद्रिय बनावे.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Whatever defect I have of eye or heart, or perplexity of mind, that may God amend. Gracious to us be He, Protector of the world.

    Meaning

    Whatever the weakness of my eye, of my heart, and of my mind, whatever the loop-holes anywhere, may the Lord of Infinity make up and re-fill. May the lord who is father and guardian of the universe, we pray, be good and gracious to us.

    बंगाली (1)

    विषय

    অথেশ্বরপ্রার্থনাবিষয়মাহ ॥
    এখন ঈশ্বর প্রার্থনা বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (য়ৎ) যাহা (মে) আমার (চক্ষুষঃ) নেত্রের অথবা (হৃদয়স্য) অন্তঃকরণের (ছিদ্রম্) নূ্যনতা (বা) বা (মনসঃ) মনের (অতিতৃষ্ণম্) ব্যাকুলতা (তৎ) তাহাকে (বৃহস্পতিঃ) বৃহৎ আকাশাদির পালক পরমেশ্বর (মে) আমার জন্য (দধাতু) পুষ্ট বা পূর্ণ করিবেন । (য়ঃ) যিনি (ভুবনস্য) সকল সংসারের (পতিঃ) রক্ষক তিনি (নঃ) আমাদের জন্য (শম্) কল্যাণকারী (ভবতু) হইবেন ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- সব মনুষ্যদেরকে উচিত যে, পরমেশ্বরের উপাসনা ও আজ্ঞাপালন দ্বারা অহিংসা ধর্মকে স্বীকার করিয়া জিতেন্দ্রিয়তাকে সিদ্ধ করিবে ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ন্মে॑ ছি॒দ্রং চক্ষু॑ষো॒ হৃদ॑য়স্য॒ মন॑সো॒ বাতি॑তৃণ্ণং॒ বৃহ॒স্পতি॑র্মে॒ তদ্দ॑ধাতু ।
    শং নো॑ ভবতু॒ ভুব॑নস্য॒ য়স্পতিঃ॑ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ন্মে ছিদ্রমিত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । বৃহস্পতির্দেবতা । নিচৃৎপংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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