यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 24
ऋषि: - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - सूर्यो देवता
छन्दः - भुरिग् ब्राह्मी
स्वरः - धैवतः
239
तच्चक्षु॑र्दे॒वहि॑तं पु॒रस्ता॑च्छु॒क्रमुच्च॑रत्। पश्ये॑म श॒रदः॑ श॒तं जीवे॑म श॒रदः॑ श॒तꣳ शृणु॑याम श॒रदः॑ श॒तं प्र ब्र॑वाम श॒रदः॑ श॒तमदी॑नाः स्याम श॒रदः॑ श॒तं भूय॑श्च श॒रदः॑ श॒तात्॥२४॥
स्वर सहित पद पाठतत्। चक्षुः॑। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। पु॒रस्ता॑त्। शु॒क्रम्। उत्। च॒र॒त्। पश्ये॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। जीवे॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। शृणु॑याम। श॒रदः॑। श॒तम्। प्र। ब्र॒वा॒म॒। श॒रदः॑। श॑तम्। अदी॑नाः। स्या॒म॒। श॒रदः॑। श॒तम्। भूयः॑। च॒। श॒रदः॑। श॒तात् ॥२४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तच्चक्षुर्देवहितम्पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतञ्जीवेम शरदः शतँ शृणुयाम शरदः शतम्प्र ब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतम्भूयश्च शरदः शतात् ॥
स्वर रहित पद पाठ
तत्। चक्षुः। देवहितमिति देवऽहितम्। पुरस्तात्। शुक्रम्। उत्। चरत्। पश्येम। शरदः। शतम्। जीवेम। शरदः। शतम्। शृणुयाम। शरदः। शतम्। प्र। ब्रवाम। शरदः। शतम्। अदीनाः। स्याम। शरदः। शतम्। भूयः। च। शरदः। शतात्॥२४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरप्रार्थनाविषयमाह॥
अन्वयः
हे परमात्मन्! भवान् यद्देवहितं शुक्रं चक्षुरिव वर्त्तमानं ब्रह्म पुरस्तादुच्चरत् तत् त्वां शतं शरदः पश्येम, शतं शरदो जीवेम, शतं शरदः शृणुयाम, शतं शरदः प्रब्रवाम, शतं शरदोऽदीनाः स्याम। शताच्छरदो भूयश्च पश्येम, जीवेम, शृणुयाम, प्रब्रवामोऽदीनाः स्याम च॥२४॥
पदार्थः
(तत्) चेतनं ब्रह्म (चक्षुः) चक्षुरिव सर्वदर्शकम् (देवहितम्) देवेभ्यो विद्वद्भ्यो हितकारि (पुरस्तात्) पूर्वकालात् (शुक्रम्) शुद्धम् (उत्) (चरत्) चरति सर्वं जानाति (पश्येम) (शरदः) (शतम्) (जीवेम) प्राणान् धारयेम (शरदः) (शतम्) (शृणुयाम) शास्त्राणि मङ्गलवचनानि चेति शेषः (शरदः) शतम् (प्र, ब्रवाम) अध्यापयेमोपदिशेम वा (शरदः) (शतम्) (अदीनाः) दीनतारहिताः (स्याम) भवेम (शरदः) (शतम्) (भूयः) अधिकम् (च) पुनः (शरदः) (शतात्)॥२४॥
भावार्थः
हे परमेश्वर! भवत्कृपया भवद्विज्ञातेन भवत्सृष्टिं पश्यन्त उपयुञ्जानाऽरोगाः समाहिताः सन्तो वयं सकलेन्द्रियैर्युक्ताः शताद्वर्षेभ्योऽप्यधिकं जीवेम, सत्यशास्त्राणि भवद्गुणांश्च शृणुयाम, वेदादीनध्यापयेम, सत्यमुपदिशेम, कदाचित् केनापि वस्तुना विना पराधीना न भवेम, सदैवमात्मवशाः सन्तः सततमानन्देमाऽन्यांश्चानन्दयेमेति॥२४॥
हिन्दी (1)
विषय
अब ईश्वर की प्रार्थना का विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे परमेश्वर! आप जो (देवहितम्) विद्वानों के लिये हितकारी (शुक्रम्) शुद्ध (चक्षुः) नेत्र के तुल्य सबके दिखानेवाले (पुरस्तात्) पूर्वकाल अर्थात् अनादि काल से (उत्, चरत्) उत्कृष्टता के साथ सबके ज्ञाता हैं, (तत्) उस चेतन ब्रह्म आपको (शतम्, शरदः) सौ वर्ष तक (पश्येम) देखें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष तक (जीवेम) प्राणों को धारण करें, जीवें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (शृणुयाम) शास्त्रों वा मङ्गल वचनों को सुनें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (प्रब्रवाम) पढ़ावें वा उपदेश करें (शतम्, शरदः) सौ वर्ष पर्य्यन्त (अदीनाः) दीनतारहित (स्याम) हों (च) और (शतात्, शरदः) सौ वर्ष से (भूयः) अधिक भी देखें, जीवें, सुनें, पढ़ें, उपदेश करें और अदीन रहें॥२४॥
भावार्थ
हे परमेश्वर! आपकी कृपा और आपके विज्ञान से आपकी रचना को देखते हुए आपके साथ युक्त नीरोग और सावधान हुए हम लोग समस्त इन्द्रियों से युक्त सौ वर्ष से भी अधिक जीवें, सत्य शास्त्रों और गुणों को सुनें, वेदादि को पढ़ावें, सत्य का उपदेश करें, कभी किसी वस्तु के विना पराधीन न हों, सदैव स्वतन्त्र हुए निरन्तर आनन्द भोगें और दूसरों को आनन्दित करें॥२४॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमेश्वरा ! तुझ्या कृपेने विज्ञानयुक्त सृष्टिरचनेला पाहून निरोगी इंद्रियांनी सावधान राहून शंभर वर्षांपेक्षा जास्त वागावे. सत्य शास्रे वाचावी. तुझे गुण श्रवण करावे. वेद इत्यादींचा उपदेश करावा. कोणत्याही वस्तूच्या अधीन होऊ नये. सदैव स्वतंत्र राहून आनंद भोगावा व इतरांनाही आनंदी करावे.
English (2)
Meaning
O God, Thou art the well-wisher of the learned. Immaculate, the Exhibitor of every thing like the eye, the Eternal knower of every thing. Through Thy kindness may we see for a hundred years; may we live for a hundred years; may we listen for a hundred years to vedic lore; may we preach the Vedas for a hundred years; may we live content independently for a hundred years; yea, even beyond a hundred years, see, live, hear, preach and be not dependent.
Meaning
That light divine, blissful to the divinities, pure and wide awake since eternity, may we continue to see for a full hundred years, live under its benign eye for a hundred years, hear for a hundred years, speak and celebrate for a hundred years, and be fit and fine in a state of freedom and independence for a hundred years, and even more than a hundred years!
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