यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 13
ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः
देवता - पृथिवी देवता
छन्दः - पिपीलिकामध्या निचृदगायत्री
स्वरः - षड्जः
315
स्यो॒ना पृ॑थिवि नो भवानृक्ष॒रा नि॒वेश॑नी।यच्छा॑ नः॒ शर्म॑ स॒प्रथाः॑॥१३॥
स्वर सहित पद पाठस्यो॒ना। पृ॒थि॒वि॒। नः॒। भ॒व॒। अ॒नृ॒क्ष॒रा। नि॒वेश॒नीति॑ नि॒ऽवेश॑नी ॥ यच्छ॑। नः॒। शर्म्म॑। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑ ॥१३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
स्योना। पृथिवि। नः। भव। अनृक्षरा। निवेशनीति निऽवेशनी॥ यच्छ। नः। शर्म्म। सप्रथा इति सऽप्रथाः॥१३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पतिव्रता कीदृशी स्यादित्याह॥
अन्वयः
हे पृथिवीव वर्त्तमाने स्त्रि! यथाऽनृक्षरा पृथिवि नो भवति, तथा त्वं भव, सा सप्रथा नः शर्म यच्छेत्, तथा स्योना त्वं नः शर्म्म यच्छ॥१३॥
पदार्थः
(स्योना) सुखकारी (पृथिवि) भूमिः (नः) अस्मभ्यम् (भव) भवतु। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (अनृक्षरा) कण्टकगर्त्तादिरहिता (निवेशनी) या नित्यान् निवेशयति सा (यच्छ) ददातु (नः) अस्मभ्यम् (शर्म) गृहम् (सप्रथाः) विस्तारेण सह वर्त्तमाना॥१३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वेषां भूतानां सुखैश्वर्य्यप्रदा पृथिवी वर्त्तते, तथैव विदुषी स्त्री पत्यादीनामानन्दप्रदा भवति॥१३॥
हिन्दी (4)
विषय
पतिव्रता स्त्री कैसी हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे पृथिवी के तुल्य वर्त्तमान क्षमाशील स्त्रि! जैसे (अनृक्षरा) काँटे, गड्ढे आदि से रहित (निवेशनी) नित्य स्थिर पदार्थों की स्थापना करनेहारी (पृथिवि) भूमि (नः) हमारे लिये होती है, वैसे तू (भव) हो, वह पृथिवी (सप्रथाः) विस्तार के साथ वर्त्तमान (नः) हमारे लिये (शर्म) स्थान देवे, वैसे (स्योना) सुख करनेहारी तू (नः) हमारे लिये घर के सुख को (यच्छ) दे॥१३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोमालङ्कार है। जैसे सब प्राणियों को सुख ऐश्वर्य देनेवाली पृथिवी वर्त्तमान है, वैसे ही विदुषी पतिव्रता स्त्री पति आदि को आनन्द देनेवाली होती है॥१३॥
विषय
खुले मकान, खुले कमरे, सुखदा पृथिवीमाता
पदार्थ
१. हे (पृथिवि) = विस्तारवाली भूमिमातः ! (नः) = हमारे लिए (स्योना) = सुखदा भव हो । यहाँ ' प्रथ विस्तारे' धातु से बने 'पृथिवी' शब्द का प्रयोग संकेत कर रहा है कि जितना विस्तृत व खुला हमारा निवासस्थान होगा उतना ही वह हमारे स्वास्थ्य आदि के लिए हितकर होगा । २. हे पृथिवि ! तू (अनृक्षरा) = (ऋक्षर = कण्टक) कण्टकरहित हो। हमारे ग्रामों के मार्ग कण्टकादि की बाधा से रहित होने ही चाहिएँ तथा 'अनृक्षरा' यह पृथिवी मनुष्यों का विनाश करनेवाली न हो। (क) विषम गर्तों से युक्त प्रदेश पानी के खड़े हो जाने से व मच्छरों की उत्पादक भूमियाँ बन जाने से स्वास्थ्य के लिए कभी हितकर नहीं हो सकता । (ख) वृक्षों की कमीवाला प्रदेश भी अम्लजन की मात्रा की कमी के कारण स्वास्थ्यप्रद नहीं होता। (ग) किसी ग्राम में टी०बी० के अधिक बीमारों के कारण यह बीमारी औरों को भी दबा सकती है, वह स्थान मनुष्यों का नाशक होने से रहने योग्य नहीं रहता । ३. (निवेशनी) = हे पृथिवि ! तू विशाल निवासोंवाली हो। मकानों के कमरों का खुला होना भी आवश्यक है। छोटे-छोटे कमरे हमारे स्वास्थ्य को ही खराब नहीं करते ये हमारे दिलों को भी छोटा बनाते हैं। ४. (सप्रथाः) = अत्यन्त विस्तार सहित भूमिमातः ! तू (नः) = हमारे लिए (शर्म) = सुख (यच्छ) = दे। यह खुलापन स्वास्थ्य के लिए हितकर होकर हमें सुखी बनाता है। तङ्ग स्थानों में सूर्यकिरणों का प्रवेश न होने से बीमारियों का प्रवेश हो जाता है। स्वास्थ्यप्रद वायु भी उन मकानों को पवित्र नहीं कर पाती । ५. यहाँ प्रारम्भ में 'पृथिवी' शब्द है और समाप्ति पर 'सप्रथाः' । एवं, सर्व महत्त्वपूर्ण बात तो विस्तार की है। ये शब्द यदि मकानों के खुले - खुले बने होने का संकेत कर रहे हैं तो 'निवेशनी' शब्द मकान के कमरों के भी खुलेपन पर बल दे रहा है। इन खुले मकानों में ही मस्तिष्क का ठीक विकास होता है और मनुष्य बुद्धि को बढ़ाता हुआ अपने 'मेधातिथि' नाम को सार्थक करता है। यही इस मन्त्र का ऋषि है।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे मकान खुले खुले स्थानों में हो। मकानों के कमरे भी बड़े खुले खुले हों। नोट- वेद में ग्रामों का उल्लेख है, बड़े-बड़े नगर वेद को प्रिय नहीं। खुलापन ग्राम सभ्यता में अधिक सम्भव है।
मन्त्रार्थ
(पृथिवि) हे पृथिवि ! तू (नः) हमारे लिए (स्योना) सुख करने वाली (अनृक्षरा) कष्टकादिरहित (निवेशनी) अपने ऊपर आश्रय देने वाली हो (नः सप्रथाः शर्म यच्छ) हमारे लिए सविस्तर घर दे-बनावे ॥१३॥
टिप्पणी
"पूषा पृथिवी नाम" (निघं० १।१) अभिपूर्वात् ष्टै संघाते किप्रत्ययः। स्योनं सुखनाम ( निघ० ३।६)
विशेष
ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पृथ्वी जशी सर्व प्राण्यांना सुख ऐश्वर्य देणारी असते तशीच विदुषी पतिव्रता स्री-पती वगैरेना आनंद देते.
विषय
पतिव्रता स्त्री कशी असावी, या वषियी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ -पृथ्वी प्रमाणे क्षमाशील हे गृहिणी स्त्री, ज्याप्रमाणे ही (पृथिवि) भूमी (अनृक्षरा) कंटकगर्तरहित असल्यास (निवेशनी) (घर बांधण्यास व ग्राम, नगर आदी वसविण्यासाठी) सुखकारी असते, तशी तूही आम्हा (घरातील वाडवडिल व लहानधार्या माणसांसाठी) सुखकारीणी हो. तू (सप्रथाः) भरपूर विस्तृत होऊन (नः) आमच्यासाठी (शर्म) स्थान दे आणि अशाप्रकारे (नः) आमच्यासाठी (स्योना) सुखकारिणी होऊन तू घरात वा घरासाठी पुष्कळ (यच्छ) प्रदान कर. ॥13॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे ही पृथ्वी सर्व प्राण्यासाठी सुख व ऐश्वर्य देणारी आहे, त्याप्रमाणे एक विदुषी पतिव्रता स्त्री पती आदी घरातील सर्वांना आनंदित करणारी असते. ॥13॥
टिप्पणी
(टीप - हा मंत्र पूर्वी ३५ व्या अध्यायात मंत्र क्र. ११ येथे आला आहे तिथे तीन शब्द अधिक आहेत)
इंग्लिश (3)
Meaning
O wife calm like the Earth, just as the Earth free from thorns and pits, the resting place for all durable substances, is comfortable for us, so shouldst thou be. Just as wide Earth gives us place for dwelling, so shouldst thou delight-affording, give us domestic happiness.
Meaning
May this dear green earth be free from vexations and full of wealth in abundance. Generous and expansive, may it provide a happy and comfortable home for all of us to live in peace and joy.
Translation
O pleasant Earth, may you become a thornless place of rest for us. Provide us with spacious accommodation. (1)
Notes
Same as XXXV. 21.
बंगाली (1)
विषय
পতিব্রতা কীদৃশী স্যাদিত্যাহ ॥
পতিব্রতা স্ত্রী কেমন হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে পৃথিবী তুল্য বর্ত্তমান ক্ষমাশীল স্ত্রী ! যেমন (অনৃক্ষরা) কন্টকগর্ত্তাদি-রহিত (নিবেশনী) নিত্য স্থির পদার্থ সমূহকে স্থাপনাকারিণী (পৃথিবী) ভূমি (নঃ) আমাদের জন্য হয়, সেইরূপ তুমি (ভব) হও, সেই পৃথিবী (সপ্রথাঃ) বিস্তার সহ বর্ত্তমান (নঃ) আমাদের জন্য (শর্ম) স্থান দিবে, সেইরূপ (স্যোনা) সুখকারিণী তুমি (নঃ) আমাদের জন্য গৃহের সুখকে (য়চ্ছ) দাও ॥ ১৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন সকল প্রাণিদিগকে সুখ, ঐশ্বর্য্য প্রদানকারিণী পৃথিবী বর্ত্তমান, সেইরূপ বিদুষী পতিব্রতা স্ত্রী পতি আদিকে আনন্দ দাত্রী হইয়া থাকে ॥ ১৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স্যো॒না পৃ॑থিবি নো ভবানৃক্ষ॒রা নি॒বেশ॑নী ।
য়চ্ছা॑ নঃ॒ শর্ম॑ স॒প্রথাঃ॑ ॥ ১৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স্যোনেত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । পৃথিবী দেবতা । পিপীলিকা মধ্যা নিচৃদ্গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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