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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 19
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - राजेश्वरौ देवते छन्दः - भुरिग्धृतिः स्वरः - ऋषभः
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    प्र॒ति॒श्रुत्का॑याऽअर्त्त॒नं घोषा॑य भ॒षमन्ता॑य बहुवा॒दिन॑मन॒न्ताय॒ मूक॒ꣳ शब्दा॑याडम्बराघा॒तं मह॑से वीणावा॒दं क्रोशा॑य तूणव॒ध्मम॑वरस्प॒राय॑ शङ्ख॒ध्मं वना॑य वन॒पम॒न्यतो॑ऽरण्याय दाव॒पम्॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ति॒श्रुत्का॑या॒ इति॑ प्रति॒ऽश्रुत्का॑यै। अ॒र्त्त॒नम्। घोषा॑य। भ॒षम्। अन्ता॑य। ब॒हु॒वा॒दिन॒मिति॑ बहुऽवा॒दिन॑म्। अ॒न॒न्ताय॑। मूक॑म्। शब्दा॑य। आ॒ड॒म्ब॒रा॒घा॒तमित्या॑डम्बरऽआघा॒तम्। मह॑से। वी॒णा॒वा॒दमिति॑ वीणाऽवा॒दम्। क्रोशा॑य। तू॒ण॒व॒ध्ममिति॑ तृणव॒ऽध्मम्। अ॒व॒र॒स्प॒राय॑। अ॒व॒र॒प॒रायेति॑ अवरऽप॒राय॑। श॒ङ्ख॒ध्ममिति॑ शङ्ख॒ऽध्मम्। वना॑य। व॒न॒पमिति॑ वन॒ऽपम्। अ॒न्यतो॑रण्या॒येत्यन्यतः॑ऽअरण्याय। दा॒व॒पमिति॑ दाव॒ऽपम् ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतिश्रुत्कायाऽअर्तनङ्घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूकङ्शब्दायाडम्बराघातम्महसे वीणावादङ्क्रोशाय तूणवध्ममवरस्पराय शङ्खध्मँवनाय वतपमन्यतोरण्याय दावपम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतिश्रुत्काया इति प्रतिऽश्रुत्कायै। अर्त्तनम्। घोषाय। भषम्। अन्ताय। बहुवादिनमिति बहुऽवादिनम्। अनन्ताय। मूकम्। शब्दाय। आडम्बराघातमित्याडम्बरऽआघातम्। महसे। वीणावादमिति वीणाऽवादम्। क्रोशाय। तूणवध्ममिति तृणवऽध्मम्। अवरस्पराय। अवरपरायेति अवरऽपराय। शङ्खध्ममिति शङ्खऽध्मम्। वनाय। वनपमिति वनऽपम्। अन्यतोरण्यायेत्यन्यतःऽअरण्याय। दावपमिति दावऽपम्॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    हे परमेश्वर वा राजन्! आप (प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञा करने वाली के अर्थ (अर्त्तनम्) प्राप्ति कराने वाले को (घोषाय) घोषणे के लिए (भषम्) सब ओर से बोलने वाले को (अन्ताय) समीप वा मर्य्यादा वाले के लिए (बहुवादिनम्) बहुत बोलने वाले को (अनन्ताय) मर्यादा रहित के लिए (मूकम्) गूंगे को (महसे) बड़े के लिए (वीणावादम्) वीणा बजाने वाले को (अवरस्पराय) नीचे के शत्रुओं के अर्थ (शङ्खध्मम्) शङ्ख बजाने वाले को और (वनाय) वन के लिए (वनपम्) जङ्गल की रक्षा करने वाले को उत्पन्न वा प्रकट कीजिए (शब्दाय) शब्द करने को प्रवृत्त हुए (आ[म्बराघातम्) हल्ला-गुल्ला करने वाले को (क्रोशाय) कोशने को प्रवृत्त हुए (तूणवध्मम्) बाजे विशेष को बजाने वाले को (अन्यतोऽरण्याय) अन्य अर्थात् ईश्वरीय सृष्टि से जहां वन हों, उस देश की हानि के लिए (दावपम्) वन को जलाने वाले को दूर कीजिये॥१९॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि अपने स्त्री-पुरुष आदि के साथ पढ़ाने और संवाद करने आदि व्यवहारों को सिद्ध करें॥१९॥

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