यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 9
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - विद्वान् देवता
छन्दः - भुरिगत्यष्टिः
स्वरः - गान्धारः
6
स॒न्धये॑ जा॒रं गे॒हायो॑पप॒तिमार्त्यै॒ परि॑वित्तं॒ निर्ऋ॑त्यै परिविविदा॒नमरा॑द्ध्याऽ एदिधिषुः प॒तिं निष्कृ॑त्यै पेशस्का॒री सं॒ज्ञाना॑य स्मरका॒रीं प्र॑का॒मोद्या॑योप॒सदं॒ वर्णा॑यानु॒रुधं॒ बला॑योप॒दाम्॥९॥
स्वर सहित पद पाठस॒न्धय॒ इति॑ स॒म्ऽधये॑। जा॒रम्। गे॒हाय॑। उ॒प॒प॒तिमित्यु॑पऽप॒तिम्। आर्त्या॒ऽऽइत्याऽऋ॑त्यै। परि॑वित्त॒मिति॒ परि॑ऽवित्तम्। निर्ऋ॑त्या॒ इति॒ निःऽऋ॑त्यै। प॒रि॒वि॒वि॒दा॒नमिति॑ परिऽविविदा॒नम्। अरा॑ध्यै। ए॒दि॒धि॒षुः॒प॒तिमित्यो॑दिधिषुःऽ प॒तिम्। निष्कृ॑त्यै। निःकृ॑त्या॒ इति॒ निःकृ॑त्यै। पे॒श॒स्का॒रीम्। पे॒शः॒का॒रीमिति॑ पेशःका॒रीम्। सं॒ज्ञाना॒येति॑ स॒म्ऽज्ञाना॑य। स्म॒र॒का॒रीमिति॑ स्मरऽका॒रीम्। प्र॒का॒मोद्या॒येति॑ प्रकाम॒ऽउद्या॑य। उ॒प॒सद॒मित्यु॑प॒ऽसद॑म्। वर्णा॑य। अ॒नु॒रुध॒मित्य॑नु॒ऽरुध॑म्। बला॑य। उ॒प॒दामित्यु॑प॒ऽदाम् ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सन्धये जारङ्गेहायोपपतिमार्त्यै परिवित्तन्निरृत्यै परिविविदानमराद्धयाऽएदिधिषुःतिन्निष्कृत्यै पेशस्कारीँ सञ्ज्ञानाय स्मरकारीम्प्रकामोद्यायोपसदँवर्णायानुरुधम्बलायोपदाम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
सन्धय इति सम्ऽधये। जारम्। गेहाय। उपपतिमित्युपऽपतिम्। आर्त्याऽऽइत्याऽऋत्यै। परिवित्तमिति परिऽवित्तम्। निर्ऋत्या इति निःऽऋत्यै। परिविविदानमिति परिऽविविदानम्। अराध्यै। एदिधिषुःपतिमित्योदिधिषुःऽ पतिम्। निष्कृत्यै। निःकृत्या इति निःकृत्यै। पेशस्कारीम्। पेशःकारीमिति पेशःकारीम्। संज्ञानायेति सम्ऽज्ञानाय। स्मरकारीमिति स्मरऽकारीम्। प्रकामोद्यायेति प्रकामऽउद्याय। उपसदमित्युपऽसदम्। वर्णाय। अनुरुधमित्यनुऽरुधम्। बलाय। उपदामित्युपऽदाम्॥९॥
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे जगदीश्वर वा सभापति राजन्! आप (सन्धये) परस्त्रीगमन के लिए प्रवृत्त (जारम्) व्यभिचारी को (गेहाय) गृहपत्नी के संग के लिए प्रवृत्त हुए (उपपतिम्) पति की विद्यमानता में दूसरे व्यभिचारी पति को (आर्त्यै) कामपीड़ा के लिए प्रवृत्त हुए (परिवित्तम्) छोटे भाई का विवाह होने में बिना विवाहे ज्येष्ठ भाई को (निर्ऋत्यै) पृथिवी के लिए प्रवृत्त हुए (परिविविदानम्) ज्येष्ठ भाई के दाय को न प्राप्त होने में दाय को प्राप्त हुए हुए छोटे भाई को (अराध्यै) अविद्यमान पदार्थ को सिद्ध करने के लिए प्रवृत्त हुए (एदिधिषुःपतिम्) ज्येष्ठ पुत्री के विवाह के पहिले विवाहित हुई छोटी पुत्री के पति को (निष्कृत्यै) प्रायश्चित के लिए प्रवृत्त हुई (पेशस्कारीम्) शृङ्गार विशेष से रूप करनेहारी व्यभिचारिणी को (सम्, ज्ञानाय) उत्तम कामदेव को जगाने के अर्थ प्रवृत्त हुई (स्मरकारीम्) कामदेव को चेतन कराने वाली दूती को (प्रकामोद्याय) उत्कृष्ट कामों से उद्यत हुए के लिए (उपसदम्) साथी को (वर्णाय) स्वीकार के लिए प्रवृत्त हुए (अनुरुधम्) पीछे से रोकने वाले को (बलाय) बल बढ़ाने के अर्थ (उपदाम्) नजर भेंट वा घूंस को पृथक् कीजिए॥९॥
भावार्थ - हे राजन्! जैसे परमेश्वर जार आदि दुष्टजनों को दण्ड देता, वैसे आप भी इन को दण्ड दीजिए और ईश्वर पाप छोड़ने वालों पर कृपा करता है, वैसे आप धार्मिक जनों पर अनुग्रह किया कीजिए॥९॥
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