यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 19
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - राजेश्वरौ देवते
छन्दः - भुरिग्धृतिः
स्वरः - ऋषभः
134
प्र॒ति॒श्रुत्का॑याऽअर्त्त॒नं घोषा॑य भ॒षमन्ता॑य बहुवा॒दिन॑मन॒न्ताय॒ मूक॒ꣳ शब्दा॑याडम्बराघा॒तं मह॑से वीणावा॒दं क्रोशा॑य तूणव॒ध्मम॑वरस्प॒राय॑ शङ्ख॒ध्मं वना॑य वन॒पम॒न्यतो॑ऽरण्याय दाव॒पम्॥१९॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ति॒श्रुत्का॑या॒ इति॑ प्रति॒ऽश्रुत्का॑यै। अ॒र्त्त॒नम्। घोषा॑य। भ॒षम्। अन्ता॑य। ब॒हु॒वा॒दिन॒मिति॑ बहुऽवा॒दिन॑म्। अ॒न॒न्ताय॑। मूक॑म्। शब्दा॑य। आ॒ड॒म्ब॒रा॒घा॒तमित्या॑डम्बरऽआघा॒तम्। मह॑से। वी॒णा॒वा॒दमिति॑ वीणाऽवा॒दम्। क्रोशा॑य। तू॒ण॒व॒ध्ममिति॑ तृणव॒ऽध्मम्। अ॒व॒र॒स्प॒राय॑। अ॒व॒र॒प॒रायेति॑ अवरऽप॒राय॑। श॒ङ्ख॒ध्ममिति॑ शङ्ख॒ऽध्मम्। वना॑य। व॒न॒पमिति॑ वन॒ऽपम्। अ॒न्यतो॑रण्या॒येत्यन्यतः॑ऽअरण्याय। दा॒व॒पमिति॑ दाव॒ऽपम् ॥१९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रतिश्रुत्कायाऽअर्तनङ्घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूकङ्शब्दायाडम्बराघातम्महसे वीणावादङ्क्रोशाय तूणवध्ममवरस्पराय शङ्खध्मँवनाय वतपमन्यतोरण्याय दावपम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रतिश्रुत्काया इति प्रतिऽश्रुत्कायै। अर्त्तनम्। घोषाय। भषम्। अन्ताय। बहुवादिनमिति बहुऽवादिनम्। अनन्ताय। मूकम्। शब्दाय। आडम्बराघातमित्याडम्बरऽआघातम्। महसे। वीणावादमिति वीणाऽवादम्। क्रोशाय। तूणवध्ममिति तृणवऽध्मम्। अवरस्पराय। अवरपरायेति अवरऽपराय। शङ्खध्ममिति शङ्खऽध्मम्। वनाय। वनपमिति वनऽपम्। अन्यतोरण्यायेत्यन्यतःऽअरण्याय। दावपमिति दावऽपम्॥१९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे परमेश्वर राजन् वा! त्वं प्रतिश्रुत्काया अर्त्तनं घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूकं महसे वीणावादमवरस्पराय शङ्खध्मं वनाय वनपमासुव। शब्दायाडम्बराघातं क्रोशाय तूणवध्ममन्यतोरण्याय दावपं परासुव॥१९॥
पदार्थः
(प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञात्र्यै (अर्त्तनम्) प्रापकम् (घोषाय) (भषम्) पारिभाषकम् (अन्ताय) समीपाय ससीमाय वा (बहुवादिनम्) (अनन्ताय) निःसीमाय (मूकम्) अवाचम् (शब्दाय) प्रवृत्तम् (आ[म्बराघातम्) आ[म्बरस्याघातकं कोलाहलकर्त्तारम् (महसे) महते (वीणावादम्) वाद्यविशेषम् (क्रोशाय) रोदनाय प्रवृत्तम् (तूणवध्मम्) यस्तूणवं धमति तम् (अवरस्पराय) योऽवरेषां परस्तस्मै (शङ्खध्मम्) यः शङ्खान् धमति तम् (वनाय) (वनपम्) जङ्गलरक्षकम् (अन्यतोऽरण्याय) अन्यतोऽरण्यानि यस्मिन् देशे तद्विनाशाय प्रवृत्तम् (दावपम्) वनदाहकम्॥१९॥
भावार्थः
मनुष्यैः स्वकीयैस्स्त्रीपुरुषादिभिरध्यापनसंवादादिव्यवहाराः साधनीयाः॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे परमेश्वर वा राजन्! आप (प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञा करने वाली के अर्थ (अर्त्तनम्) प्राप्ति कराने वाले को (घोषाय) घोषणे के लिए (भषम्) सब ओर से बोलने वाले को (अन्ताय) समीप वा मर्य्यादा वाले के लिए (बहुवादिनम्) बहुत बोलने वाले को (अनन्ताय) मर्यादा रहित के लिए (मूकम्) गूंगे को (महसे) बड़े के लिए (वीणावादम्) वीणा बजाने वाले को (अवरस्पराय) नीचे के शत्रुओं के अर्थ (शङ्खध्मम्) शङ्ख बजाने वाले को और (वनाय) वन के लिए (वनपम्) जङ्गल की रक्षा करने वाले को उत्पन्न वा प्रकट कीजिए (शब्दाय) शब्द करने को प्रवृत्त हुए (आ[म्बराघातम्) हल्ला-गुल्ला करने वाले को (क्रोशाय) कोशने को प्रवृत्त हुए (तूणवध्मम्) बाजे विशेष को बजाने वाले को (अन्यतोऽरण्याय) अन्य अर्थात् ईश्वरीय सृष्टि से जहां वन हों, उस देश की हानि के लिए (दावपम्) वन को जलाने वाले को दूर कीजिये॥१९॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिए कि अपने स्त्री-पुरुष आदि के साथ पढ़ाने और संवाद करने आदि व्यवहारों को सिद्ध करें॥१९॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
(१४३) (प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञा पूर्ति के लिये ( अर्त्तनम् ) ऐसे व्यक्ति को नियत करे जो लोकों से प्रतिज्ञा निभवा सके । (१४४) घोषाय भषम् ) घोषणा करने के लिये बड़ी भावाज से बोलने वाले नियुक्त करे । ( १४५ ) ( अन्ताय बहुवादिनम् ) सिद्धान्त प्रतिपादन या मर्यादा निर्णय के लिये बहुत अधिक कहने में कुशल पुरुष को नियुक्त करो । ( १४६ ) ( अनन्ताय मूकम् ) अनन्त अर्थात् जिस वाद-विवाद की मर्यादा न हो उसको दूर करने के लिये 'मूक' गूंगे का अनुसरण करे | मौन रहे । ( १४७ ) ( शब्दाय आडम्बराघातम् ) शब्द करने के लिये आडम्बरपूर्वक बाजों को बजाने वाले को नियुक्त करो । अथवा, भयंकर शब्द के लिये कोलाहल करने वाले को दण्डित करो । ( ४७ ) ( महसे वीणावादम् ) महत्वपूर्ण कार्य आनन्द, प्रसन्नता के लिये वीणा बजाने बाले को नियुक्त करो । ( १४९ ) ( क्रोशाय ) सैन्य बल और जनसमूह को निमन्त्रण देकर बुलाने के लिये ( तूणचध्मम् ) तूणव नामक ढोल या ढक्का बजाने वाले को नियुक्त करो । ( १५० ) ( अवरस्पराय शङ्खध्मम् ) आस-पास और दूर के लोगों को बुलाने के लिये शंख बजाने वाले को नियुक्त करो । ( १५१ ) ( वनाय वनपम् ) वन की रक्षा के लिये वनपाल को नियुक्त करो । ( १५२) (अन्यतः अरण्याय) जिस देश में एक तरफ वन हों ऐसे देश की रक्षा के लिये (दावपम् ) जंगल में लगने वाली आग से देश की रक्षा करने में कुशल पुरुष को नियुक्त करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मुरिग् धृतिः । ऋषभः ॥
विषय
प्रतिश्रुत्क के लिए अर्तन को
पदार्थ
१४३. (प्रतिश्रुत्काय) = प्रतिज्ञापूर्ति के लिए (अर्तनम्) = प्रेरक को नियत करे। यह निरन्तर उत्तम प्रेरणा देता हुआ उन्हें प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए उत्साहित करता रहेगा। १४४. (घोषाय्) = उद्घोषणा के लिए (भषम्) = ऊँची आवाज़ से बोलनेवाले को प्राप्त करे। १४५. [क] (अन्ताय) = सिद्धान्त पर पहुँचने के लिए (बहुवादिनम्) = उत्तम वक्ता को नियत करे । [ख] इस वाक्य में ऐसी भावना भी सूचित होती है कि बहुत बोलनेवाले को अन्त के लिए जाने, अर्थात् 'इसका आयुष्य अल्प हो जाता है' ऐसा समझे । १४६. (अनन्ताय) = उस अनन्त प्रभु के उपदेश के लिए (मूकम्) = मौन धारण करनेवाले को प्राप्त करे, क्योंकि ईश का उपदेश तो ('गुरोस्तु मौनं व्याख्यानम्') = के अनुसार मौन से ही दिया जाता है। साथ ही कम बोलनेवाले को दीर्घायुष्यवाला जाने। १४७. शब्दाय शब्द करने के लिए, पक्षी आदि को भयभीत करने के लिए [आवाज़] करने के लिए (आडम्बराघातम्) = ढोल बजानेवाले को प्राप्त करे। १४८. (महसे) = उत्सवों के लिए, उत्सवों में सभ्यों के विनोदार्थ (वीणावादम्) = वीणा बजानेवाले को प्राप्त करे। १४९. (क्रोशाय) = लोगों को एकत्र होने की सूचना देने के लिए [आह्वान के लिए] (तूणवध्मम्) = ढक्का बाजनेवाले को प्राप्त करे। १५०. (अवरस्पराय) = आस-पास के लोगों को प्रार्थना आदि के लिए बुलाना हो तो (शंखधम्) = शंख बजानेवाले को प्राप्त करे। १५१. (वनाय) = वनों की रक्षा के लिए (वनपम्) = वनों के रक्षक को नियत करे। १५२. (अन्यतः अरण्याय) = दूसरे घने जंगलों के लिए (दावपम्) = वनाग्नि से रक्षा करनेवाले को नियत करे। नगर के समीप साधारण वन की रक्षा के लिए वनाय की नियुक्ति है 'इन उपवनों का कोई दुरुपयोग न करे' इसके लिए निगरानी करनेवाले को रखना है और घने जंगलों की रक्षा के लिए दावपों की नियुक्ति है। उन वनों में अचानक आग लगने से लाखों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।
भावार्थ
भावार्थ - जहाँ उद्घोषणा आदि के लिए ढोल आदि बजानेवाले की नियुक्ति करनी है वहाँ वनों की रक्षा के लिए रक्षापुरुषों को भी नियुक्त करना है।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी सर्व प्रकारच्या स्री-पुरुषांबरोबर संवाद करावा, तसेच राजाने बोलणारे, वीणा वाजविणारे, शंख वाजविणारे, जंगलाचे रक्षण करणारे वगैरे अनेक लोकांना प्रकाशात आणावे.
विषय
पुन्हा, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे परमेश्वर वा हे राजन्, आपण (प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञा वा दृढनिश्चय करणार्या स्त्रीसाठी (अर्तनम्) प्रतिज्ञापूर्तीत सहायक असणारा माणूस आणि (घोषाय) घोषणा करण्यासाठी (भषम्) खूप मोठ्या उंच आवाजात बोलणारा माणूस (उत्पन्न करा वा निर्माण करा) (अन्ताय) समीप असलेल्या वा सीमित दूरीवर असलेल्या व्यक्तीसाठी (बहुवादिनम्) अधिक बोलणारा (बडबड्या) आणि (अनन्ताय) अत्यधिक दूर असलेल्यासाठी (मूकम्) मुक्या माणूस (उत्पन्न करा - निर्माण करा) (महसे) मोठ्या (श्रीमंत वा कलाप्रियं मनुष्या) साठी (वीणावादम्) वीणा वाजविणारा कलाकार आणि (अवरस्पराय) खाली (पर्वताच्या पायथ्यावर उभा असलेल्या) शत्रूसाठी (शङ्खध्वम्) शंख वाजविणार्या माणसाला (आपल्या सैन्याला सावध करण्यासाठी शंख वा तुतारी वाजविणारा) माणूस (उत्पन्न करा - निर्माण करा) (वनाय) वनासाठी (वनयम्) वनरक्षक अधिकारी (उत्पन्न करा - निर्माण करा) (शब्दाय) शब्द (मोठा भीतिदायक) आवाज करणार्यापासून (आडम्बराघातम्) गोंधळ वा आरडा ओरड करणार्या माणसाला (दूर करा) (क्रोशाय) रडण्यासाठी ???, हताश माणसापासून (तूणवध्वम्) वाद्यविशेष वाजविणार्या माणसाला आणि (अन्यतोरणाय) अन्य म्हणजे ईश्वराने निर्माण केलेल्या सुसमृद्ध वन्यप्रदेशापासून (दावपम्) अग्नीद्वारे जंगल जाळणार्या मनुष्याला हे ईश्वर, तुम्ही दूर ठेवा, हे राजन् तुम्ही दूर ठेवा ॥19॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी आपापल्या पती वा पत्नीशी अध्ययन-अध्यापन, संवाद-चर्चा करीत जीवनाचे सर्व व्यवहार पूर्ण करावेत. ॥19॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, create a man of iron determination for the implementation of vow ; a loud-voiced man for proclamation ; a comprehensive speaker for establishing propriety of conduct ; a mute for unending lawless discussion ; a fIute-player for great festivals ; a conch-blower, for calling neighbouring and distant people ; a forest-guard, for the protection of forest ; and drive away a creator of uproar bent on uttering frightening sounds ; a flute-blower intending singing songs of lamentation ; a forest burner contemplating the destruction of jungles.
Meaning
For promise and agreement, simplicity of language and content, for proclamation, the announcer, for conclusion, the comprehensive speaker, for the endless talker, silence, for loud proclamation, the beat of the drum, for celebration, the notes of the lute, for sentiment, the flute player, for far and near, the conch blower, for the forests, the protector of the forest and gardens, for large heaths and forests, the fire-guard.
Translation
(One should seek) for fulfilment of promise a truthful man (rta = truth). (1) For announcing a shouter. (2) For reaching a conclusion a talkative person. (3) For avoiding a conclusion a mute person. (4) For loud noise a drummer. (5) For festivity a lute-player. (6) For warcall a buglar. (7) For sending a signal from one place to the other a conch-blower. (8) For forest a forest-ranger. (9) For a big forest a forest-conservator. (10)
Notes
Pratiśrutkāyai, for fulfilment of a promise. Ghoşṣāya, for public announcement. Bhaşam, a shouter. Antāya, for reach ing a conclusion. Adambaraghātam, a drummer. Avarasparaya, for sending a signal from one to the other. Vanapam, a forest-guard or ranger. Dāvapam, forest fire guard.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে পরমেশ্বর বা রাজন্! আপনি (প্রতিশ্রুৎকায়ৈ) প্রতিজ্ঞাকারিণীর জন্য (অর্ত্তনম্) প্রাপককে (ঘোষায়) ঘোষণার জন্য (ভষম্) সব দিক দিয়া বক্তাকে (অন্তায়) সমীপ বা মর্যাদা সম্পন্নের জন্য (বহুবাদিনম্) বহুভাষীকে (অনন্তায়) মর্যাদারহিতের জন্য (মূকম্) মূককে (মহসে) বড়দের জন্য (বীণাবাদম্) বীণাবাদককে (অবরস্পরায়) অবর শত্রুদের জন্য (শঙ্খধমম্) শঙ্খধবনি যে করে তাহাকে এবং (বনায়) বনের জন্য (বনপম্) জঙ্গলের রক্ষককে উৎপন্ন বা প্রকট করুন (শব্দায়) শব্দ করিতে প্রবৃত্ত (আডম্বরাঘতম্) কোলাহলকারীকে (ক্রোশায়) অভিশাপের জন্য প্রবৃত্ত (তূনবধমম্) বাদ্যবিশেষের বাদ্যকারকে (অন্যতোরণ্যায়) অন্য অর্থাৎ ঈশ্বরীয় সৃষ্টি হইতে, যেখানে বন আছে, সেই দেশের ক্ষতির জন্য (দাবপম্) বনের দাহকারীকে দূর করুন ॥ ১ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, স্বীয় স্ত্রী পুরুষাদি সহ অধ্যাপন এবং সংবাদাদি ব্যবহার সম্পাদন করিবে ॥ ১ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্র॒তি॒শ্রুৎকা॑য়াऽঅর্ত্ত॒নং ঘোষা॑য় ভ॒ষমন্তা॑য় বহুবা॒দিন॑মন॒ন্তায়॒ মূক॒ꣳ শব্দা॑য়াডম্বরাঘা॒তং মহ॑সে বীণাবা॒দং ক্রোশা॑য় তূণব॒ধ্মম॑বরস্প॒রায়॑ শঙ্খ॒ধ্মং বনা॑য় বন॒পম॒ন্যতো॑ऽরণ্যায় দাব॒পম্ ॥ ১ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রতিশ্রুৎকায়া ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । রাজেশ্বরৌ দেবতে । ভুরিগ্ধৃতিশ্ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal