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यजुर्वेद अध्याय - 30

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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 15
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - राजेश्वरौ देवते छन्दः - विराट् कृतिः स्वरः - निषादः
    152

    य॒माय॑ यम॒सूमथ॑र्व॒भ्योऽव॑तोका संवत्स॒राय॑ पर्य्या॒यिणीं॑ परिवत्स॒रायावि॑जाता- मिदावत्स॒राया॒तीत्व॑रीमिद्वत्स॒राया॑ति॒ष्कद्व॑रीं वत्स॒राय॒ विज॑र्जरा संवत्स॒राय॒ पलि॑क्नीमृ॒भुभ्यो॑ऽ जिनस॒न्धꣳ सा॒ध्येभ्य॒श्चर्म॒म्नम्॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑। य॒म॒सूमिति॑ यम॒ऽसूम्। अथ॑र्वभ्य॒ इत्यथ॑र्वऽभ्यः। अव॑तोका॒मित्यव॑ऽतोकाम्। सं॒व॒त्स॒राय॑। प॒र्य्या॒यिणी॑म्। प॒र्य्या॒यिनी॒मिति॒ परिऽआ॒यिनी॒॑म्। प॒रि॒व॒त्स॒रायेति॑ परिऽवत्स॒राय॑। अवि॑जाता॒मित्यवि॑ऽजाताम्। इ॒दा॒व॒त्स॒राय॑। अ॒तीत्व॑री॒मित्य॑ति॒ऽइत्व॑रीम्। इ॒द्व॒त्स॒रायेती॑त्ऽवत्स॒राय॑। अ॒ति॒ष्कद्व॑रीम्। अ॒ति॒स्कद्व॑री॒मित्य॑ति॒ऽस्कद्व॑रीम्। व॒त्स॒राय॑। विज॑र्जरा॒मिति॒ विऽज॑र्जराम्। सं॒व॒त्स॒राय॑। पलि॑क्नीम्। ऋ॒भुभ्य॒ इत्यृ॒भुऽभ्यः॑। अ॒जि॒न॒स॒न्धमित्य॑जिनऽस॒न्धम्। सा॒ध्येभ्यः॑। च॒र्म॒म्नमिति॑ चर्म॒ऽम्नम् ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय यमसूमथर्वभ्योवतोकाँ सँवत्सराय पर्यायिणीम्परिवत्सरायाविजातामिदावत्सरायातीत्वरीमिद्वत्सरायातिष्कद्वरीँवत्सराय विजर्जराँ सँवत्सराय पलिक्नीमृभुभ्यो जिनसंन्धँ साध्येभ्यश्चर्मम्नम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय। यमसूमिति यमऽसूम्। अथर्वभ्य इत्यथर्वऽभ्यः। अवतोकामित्यवऽतोकाम्। संवत्सराय। पर्य्यायिणीम्। पर्य्यायिनीमिति परिऽआयिनीम्। परिवत्सरायेति परिऽवत्सराय। अविजातामित्यविऽजाताम्। इदावत्सराय। अतीत्वरीमित्यतिऽइत्वरीम्। इद्वत्सरायेतीत्ऽवत्सराय। अतिष्कद्वरीम्। अतिस्कद्वरीमित्यतिऽस्कद्वरीम्। वत्सराय। विजर्जरामिति विऽजर्जराम्। संवत्सराय। पलिक्नीम्। ऋभुभ्य इत्यृभुऽभ्यः। अजिनसन्धमित्यजिनऽसन्धम्। साध्येभ्यः। चर्मम्नमिति चर्मऽम्नम्॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर राजन् वा! त्वं यमाय यमसूमथर्वभ्योऽवतोकां संवत्सराय पर्य्यायिणीं परिवत्सराया-विजातामिदावत्सरायातीत्वरीमिद्वत्सरायातिष्कद्वरीं वत्सराय विजर्जरां संवत्सराय पलिक्नीमृभुभ्योऽजिनसन्धं साध्येभ्यञ्चर्मम्नमासुव॥१५॥

    पदार्थः

    (यमाय) नियन्त्रे (यमसूम्) या यमान् नियन्तॄन् सूते ताम् (अथर्वभ्यः) अहिंसकेभ्यः (अवतोकाम्) निरपत्याम् (संवत्सराय) (पर्यायिणीम्) परितः कालक्रमज्ञाम् (परिवत्सराय) द्वितीयवर्षनिर्णयाय (अविजाताम्) अप्रसूतां ब्रह्मचारिणीम् (इदावत्सराय) इदावत्सरस्तृतीयस्तत्र कार्य्यसम्पादनाय। अत्र वर्णव्यत्ययः। (अतीत्वरीम्) अतिगमनशीलाम् (इद्वत्सराय) पञ्चमाय वर्षाय (अतिष्कद्वरीम्) अतिशयेन या स्कन्दति जानाति ताम् (वत्सराय) सामान्याय (विजर्जराम्) विशेषेण जर्जरीभूताम् (संवत्सराय) चतुर्थायानुवत्सराय। अत्रानोः पूर्वपदस्य लोपः। (पलिक्नीम्) श्वेतकेशाम् (ऋभुभ्यः) मेधाविभ्यः (अजिनसन्धम्) जेतुमयोग्यान् संदधाति तम्। अत्र जि धातो कर्मणि नक्॥ (उणा॰३।२) (साध्येभ्यः) ये साद्धुं योग्यास्तेभ्यः (चर्मम्नम्) यश्चर्म विज्ञानं म्नात्यभ्यस्यति तम्॥१५॥

    भावार्थः

    प्रभवादिषष्टिसंवत्सरेषु पञ्च पञ्च कृत्वा द्वादश युगानि भवन्ति, प्रत्येकयुगे क्रमेण संवत्सरपरिवत्सरानुवत्सरेद्वत्सराः पञ्च सञ्ज्ञा भवन्ति, तान् सर्वकालावयवमूलान् विशेषतया याः स्त्रियो यथावद्विज्ञाय व्यर्थन्न नयन्ति, ताः सर्वार्थसिद्धिमाप्नुवन्ति॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर वा राजन्! आप (यमाय) नियमकर्त्ता के लिए (यमसूम्) नियन्ताओं को उत्पन्न करने वाली को (अथर्वभ्यः) अहिंसकों के लिए (अवतोकाम्) जिसकी सन्तान बाहर निकल गई हो, उस स्त्री को (संवत्सराय) प्रथम संवत्सर के अर्थ (पर्यायिणीम्) सब ओर से काल के क्रम को जानने वाली को (परिवत्सराय) दूसरे वर्ष के निर्णय के लिए (अविजाताम्) ब्रह्मचारिणी कुमारी को (इदावत्सराय) तीसरे इदावत्सर में कार्य साधने के अर्थ (अतीत्वरीम्) अत्यन्त चलने वाली को (इद्वत्सराय) पांचवें इद्वत्सर के ज्ञान के अर्थ (अतिष्कद्वरीम्) अतिशय कर जानने वाली को (वत्सराय) सामान्य संवत्सर के लिये (विजर्जराम्) वृद्धा स्त्री को (संवत्सराय) चौथे अनुवत्सर के लिए (पलिक्नीम्) श्वेत केशों वाली को (ऋभुभ्यः) बुद्धिमानों के अर्थ (अजिनसन्धम्) नहीं जीतने योग्य पुरुषों से मेल रखने वाले को (साध्येभ्यः) और साधने योग्य कार्यों के लिए (चर्मम्नम्) विज्ञान शास्त्र का अभ्यास करनेवाले पुरुष को उत्पन्न कीजिए॥१५॥

    भावार्थ

    प्रभव आदि ६० संवत्सरों में पांच-पांच कर १२ बारह युग होते हैं, उन प्रत्येक युग में क्रम से संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर और इद्वत्सर। ये पांच संज्ञा हैं, उन सब काल के अवयवों के मूल संवत्सरों को विशेष कर जो स्त्री लोग यथावत् जान के व्यर्थ नहीं गंवाती, वे सब प्रयोजनों की सिद्धि को प्राप्त होती हैं॥१४॥

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    विषय

    ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।

    भावार्थ

    ( १०१ ) ( यमाय ) नियन्ता पुरुष के लिये ( यमसूम् ) यम, नियन्त्रण करने वाले नियमों को बनाने वाली या नियामक पुरुषों को भाज्ञा में चलाने वाली राजसभा प्राप्त हो । (१०२) (अथर्वभ्यः) प्रजापालक विद्वान् पुरुषों के लिये ( अवतोकाम ) शत्रुओं को अपने नीचे दबा कर दुःख देने वाली सेना प्राप्त हो । अथवा, जो स्त्री 'अवतोका' है अर्थात् जिसके बालक गर्भ में नष्ट हो जाते हैं । उस स्त्री को 'अथर्वा' नामक उन विद्वानों के पास चिकित्सार्थ ले जाय जो बालक के प्राणों को नष्ट न होने 'दें अथवा 'भवतोका' वह स्त्री है जिसका बालक प्रसवकाल में नीचे की ओर बाहर को आने को हो ऐसी प्राप्तप्रसवा स्त्री को बालरक्षा के विज्ञ 'विद्वानों के सुपुर्द करे । (१०३ ) ( संवत्सराय पर्यायणीम् ) संवत्सर ज्ञान के लिये 'पर्याय' अर्थात् क्रम से कालों का ज्ञान कराने वाली यन्त्रकला या गणितविद्या को प्राप्त करो। अथवा ( संवत्सराय पर्यायणीम् ) एक - बार नर और एक बार मादा सन्तान उत्पन्न करने वाली स्त्री को एक वर्ष के लिये संयम से रक्खे । उसका यह दोष नष्ट हो जायेगा । (१०४) (अविजाताम् परिवत्सराय) विशेष कारण से जो सन्तान न उत्पन्न करती 'हो तो उसकी 'परिवत्सर' अर्थात् द्वितीय वर्ष में वैद्य की चिकित्सा करानी उचित है । (१०५ ) ( अति त्वरीम इदावत्सराय) अधिक पतिसंग करने वाली स्त्री को पुत्रलाभ के निमित्त तीसरे वर्ष तक परीक्षा करे । वा (१०६ ) ( अतिष्करी इद्वत्सराय) अति अधिक रज:स्राव करने हारी स्त्री सन्तान के निमित्त पांचवें वर्ष तक परीक्षा करे । (१०७) ( वत्सराय विजर्जराम ) विशेष रोगादि के कारण से कृश या जर्जर शरीर की स्त्री को (बसराय) एक वर्ष के लिये संयम से रहने दे । ( १०८ ) ( संवत्सराय पलिक्नीम् ) जिस स्त्री की उमर से पहले ही पलित आ जाय ऐसी स्त्री को सन्तान के निमित्त ४ वर्ष तक प्रतीक्षा करे । (१०९) (अजिनसंधं ऋभुभ्यः) शिल्पी लोगों के कार्य के लिये 'भर्जिन-संघ' अर्थात् चर्म के “पदार्थों को सीने जोड़ने वाले कारीगर को नियुक्त करो अथवा विद्वान् पुरुषों या 'ऋत' अर्थात् राष्ट्र के चमकने वाले राजाओं के कार्य के लिये ऐसे पुरुष नियुक्त करो जो ( अजिन-संघम ) अजेय राष्ट्रों को भी चर्मों के 'समान परस्पर संधि" या मेल कराने में समर्थ है । इससे राजाओं और विज्ञानी पुरुषों में विरोध न होकर सहयोग से विज्ञान, कला-कौशल, - व्यापार, राज्य, ऐश्वर्य की उन्नति होती है । (११०) (साध्येभ्य: चमंम्नम् ) साध्य अर्थात् बनाने योग्य कड़े चर्मों को जिस प्रकार चमड़े घोटने वाला रगड़-रगड़ कर मुलायम कर लेता है इसी प्रकार (साध्येभ्यः) वश करने योग्य उद्दण्ड पुरुषों के वश करने के लिये उन पर बराबर दण्ड का प्रयोग -करने वाले पुरुष को नियुक्त करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वराडुत्कृतिः । षड्जः ॥

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    विषय

    यम के लिए यमसू को

    पदार्थ

    १०१. (यमाय) = नियन्त्रण के लिए (यमसूम्) = नियमोपनियम बनानेवाली सभा को प्राप्त करे, आजकल की भाषा में 'विधान सभा' का निर्माण करे। १०२. (अथर्वभ्यः) = [न थर्वति ] स्थिरवृत्तिवाले लोगों के लिए, ध्यान के अभ्यासियों के लिए (अवतोकाम्) = रक्षक सेना को नियत करे। १०३. (संवत्सराय) = उत्तम निवास के लिए (पर्यायिणीम्) = क्रम को जाननेवाली को प्राप्त करे। वस्तुतः जो पत्नी 'किस क्रम में कार्य करने हैं' इस बात को समझती है, वह कार्यों को सुचारुरूपेण सम्पन्न कर पाती है। १०४. (परिवत्सराय) = पूर्ण निवास के लिए, एक-एक कोश में उत्तम निवास के लिए (अविजाताम्) = ब्रह्मचारिणी [ अ-विजात] को प्राप्त करे, अर्थात् गृहस्थ में आने से पहले इस बात का ध्यान किया जाए कि ब्रह्मचारिणी ने सब कोशों का विकास उत्तमता से किया है। १०५. (इदावत्सराय) = वर्त्तमान काल में निवास के लिए (अतीत्वरीम्) = अतिशयेन क्रियाशील को प्राप्त करे। जो क्रियाशील नहीं होती वह या तो भूतकाल की उज्ज्वलता का गान करती रहती है या भविष्यत् के स्वप्न लेती रहती है। १०६. (इद्वत्सराय) = निश्चयात्मक निवास के लिए, असंशयात्मा होकर जीवन को चलाने के लिए (अतिष्कद्वरीम्) = अतिशय ज्ञानवाली [स्कन्द गति - ज्ञान] को प्राप्त करे। ज्ञान ही मनुष्य को संशय से ऊपर उठानेवाला है। १०७. (वत्सराय) = उत्तम निवास के लिए (विजर्जराम्) = [विगतजर्जराम्] अशिथिल शरीरवाली को नियत करे। शिथिल शरीरवाली से निवास के लिए आवश्यक कर्मों को करना सम्भव नहीं होता । १०८. (संवत्सराय) = उत्तम निवास के लिए (पलिक्नीम्) = श्वेत केशोंवाली, अर्थात् अनुभव-सम्पन्न महिला को नियत करे। १०९. (ऋभुभ्यः) = शिल्पियों के लिए, रथ आदि का निमार्ण करनेवालों के लिए वहाँ घर में उत्तम निवास के लिए कार्यों के क्रम को सम्यक् समझनेवाली पत्नी का होना आवश्यक है। (अजिनसन्धम्) = चर्म के सन्धाता को नियत करे। इन दोनों का परस्पर सम्मिलित कार्य होने पर ही रथ आदि का ठीक से निर्माण हो सकेगा। रथकार उपस्थ = Seat आदि बनाएगा. तो उनपर गद्दी आदि को यह अजिनसन्धाता जमाएगा। ११०. (साध्येभ्यः) = अपूर्ण पदार्थों को पूर्ण बनानेवालों के लिए [Finishing touches] देनेवालों के लिए (चर्मम्नम्) = चमड़ा कमानेवाले [Leather tanner] को नियत करे । 'साध्य रथ की कमी को दूर करेगा तो यह 'चर्मम्न' चमड़े की कमी को दूर करेगा और इस प्रकार ये दोनों मिलकर रथ को पूर्ण ठीक कर देंगे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जहाँ राष्ट्र का उत्तम सञ्चालन, व्यवस्थापिका, सभादि के होने से होता है । वहां घर में उत्तम निवास के लिए कार्यों के क्रम को सम्यक् समझनेवाली पत्नी का होना आवश्यक है ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ६० संवत्सराय पाच पाच करून १२ युगे असतात. प्रत्येक युगात क्रमाने संवत्सर, प्रभव इत्यादी परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर ही पाच असतात. काळाच्या अंगांना म्हणजे मूळ संवत्सराला जाणून ज्या स्रिया वेळ व्यर्थ घालवित नाहीत. त्यांच्याकडून सर्व प्रयोजने सिद्ध होतात.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे जगदीश्‍वर वा हे राजन्, आपण (यमाय) नियमकर्त्यासाठी (यमसूम्) नियमकर्ता वा नियंता पुरूषांना जन्मदेणारी स्त्री (उत्पन्ना करा) (अथर्वभ्यः) अहिंसकजनांसाठी (अवतोकाम्) संततीहीन स्त्री (निर्माण करा) (संवत्सराय) प्रथम संवत्सरासाठी (पर्यायिणीम्) सर्वत, काल वा समयाचा क्रम जाणणारी स्त्री आणि (परिवत्सराय) दुसर्‍यावर्षी कालनिर्णय सांगण्यासाठी (अविजाताम्) ब्रह्मचारिणी कुमारी (निर्माण करा) (इदावत्सराय) तिसर्‍या इदावत्सरात कालनिर्णय जाणण्यासाठी (अतीत्वरीम्) अत्यंत त्वरेने चालणारी (वा झटपट निर्णय देणारी स्त्री) आणि (इद्वताराय) पाचन्या इद्वतारासाठी (अतिष्खद्वरीम्) अतिशय ज्ञानवती स्त्री (निर्माण करा)(वत्सराय) सामान्य संवत्सरासाठी (विजर्जराम्) मृद्धा स्त्री आणि (संवत्सराय) चवथ्या अनुवत्सरासाठी (पलिक्नीम्) श्‍वेतकेशा वृद्ध स्त्री (निर्माण करा अथवा नेमा) (ऋभुभ्यः) साध्य कामांसाठी (चर्मम्नम) विज्ञानशास्त्राचा अभ्यास करणारा पुरूष, हे परमेश्‍वर, आपण उत्पन्न करा आणि हे राजन्, आपण तसा पुरूष व तशी स्त्री राज्यात प्रशिक्षण देऊन निर्माण करा.॥15॥

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभव आदी जे साठ संवत्सर आहेत, त्यापैकी पाच-पाचचे भाग केल्याने एकूण बारा युग होतात. त्या प्रत्येक युगात क्रमशः संवत्सर, परिवत्सर, धदावत्सर, अनुवत्सर आणि इद्वत्सर या युगभागांची ही पाच नावे आहेत. काळाच्या या अवयवांच्या मूळ संवत्सरांना जाणून घेऊन ज्या विशेषतः) स्त्रिया जाणतात आणि वेळ-काळ व्यर्थ घालवीत नाहीत, त्या आपल्या सर्व इष्टकार्यांची पूर्ती अवश्य करतात. ॥15॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God, for administration create a woman who gives birth to rulers ; for the harmless physicians a woman who has miscarried ; for the Samvatsar, first year, a woman who gives birth to a male and female child alternately ; for the Parivatsar, second year, a celibate virgin ; for the Idvatsar, 3rd year, one who is fond of roaming; for the Idvatsar, fifth year, one who is highly learned ; for one year, an ailing woman; for four years, one with grey hair, for the wise, a friend of the invincible, and for executive projects, men of skill and proficiency.

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    Meaning

    For the man of law and order, give the law-maker ; for the men of peace and meditation, the protective force; for the first year of a five-year plan for women, a woman who knows how time passes; for the second year, an unmarried woman; for the third year, a dynamic woman; for the fourth year, a white-haired woman; for the fifth year, an extremely wise woman; for any year, a woman of long age and experience; for the experts, an indefatigable man; for the men of achievement, a man of super-knowledge.

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    Translation

    (One should seek) for twins a twin-bearing mother. (1) For a perseverer a woman prone to miscarriage. (2) For the first year of a five year cycle (Samvatsara) a wayward fickle woman. (3) For the second year(Parivatsara) a woman, who does not bear any child. (4) For the third year (Idivatsara) a woman, who is very Sexy, (5) For the fourth year (Idvatsara) a woman with much menstruation. (6) For the fifth year (Vatsara) a worn out woman. (7) For a year in general a grey-haired woman. (8) For tanners a hide-dresser, (9) For makers of leather-articles a currier. (10)

    Notes

    Yamaya, for a twin. Atharvebhyaḥ, for charm-mak ers. Avatokām, a woman prone to miscarriage. Paryayinim, a wayward fickle woman. Avijātām, a woman, who does not bear any child. Atitvarim, a very sexy woman; or a woman who exceeds. Atişkadvarim, a woman with much menstruation; or who trans gresses. Vijarjarām, a worn out woman; old and feeble woman. Paliknim, a grey-haired woman. Rbhubhyaḥ, for tanners. Ajinasandham,चर्मसंधातारं, a hide dresser. Carmamnam, a currier (चर्माभ्यासकं).

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন! আপনি (য়মায়) নিয়মকর্ত্তার জন্য (য়মসূম্) নিয়ন্তাসকলকে উৎপন্নকারিণীকে (অথর্বভ্য) অহিংসকদের জন্য (অবতোকাম্) যাহার সন্তান বাহির হইয়া গিয়াছে সেই স্ত্রীকে (সংবৎসরায়) প্রথম সংবৎসরের জন্য (পর্য়ায়িণীম্) সব দিক দিয়া কালের ক্রম জ্ঞাত্রীকে (পরিবৎসরায়) দ্বিতীয় বর্ষের নির্ণয়ের জন্য (অবিজাতাম্) ব্রহ্মচারিণী কুমারীকে (ইদাবৎসরায়) তৃতীয় ইদাবৎসরে কার্য্য সাধনের জন্য (অতোত্বরীম্) অত্যন্ত গমনশীলকে (ইদ্বৎসরায়) পঞ্চম ইদ্বৎসরায় জ্ঞানের জন্য (অতীষ্কদ্বরীম্) অতিশয় করিয়া জানে যে তাহাকে (বৎসরায়) সাধারণ সংবৎসরায়ের জন্য (বিজর্জরাম) বৃদ্ধা স্ত্রীকে (সংবৎসরায়) চতুর্থ অনুবৎসরের জন্য (পলিক্লীম্) শ্বেত কেশ বিশিষ্টকে (ঋভুভ্যঃ) বুদ্ধিমানদের জন্য (অজিনসন্ধম্) জিতিতে অযোগ্য পুরুষদের সহিত মেলামেশা রক্ষাকারীকে (সাধ্যেভ্যঃ) এবং সাধ্য কার্য্যগুলির জন্য (চর্মম্নম্) বিজ্ঞান শাস্ত্রের অভ্যাসকারী পুরুষকে উৎপন্ন করুন ॥ ১৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–প্রভবাদি ৬০ সংবৎসরের মধ্যে পাঁচ পাঁচ করিয়া ১২ যুগ হয় । তাহাদের প্রত্যেক যুগে ক্রমপূর্বক সংবৎসর, পরিবৎসর, ইদাবৎসর, অনুবৎসর ও ইদ্বৎসর এই পাঁচটি সংজ্ঞা । সেই সব কালের অবয়বের মূল সংবৎসরকে বিশেষ করিয়া যে সমস্ত স্ত্রীগণ যথাবৎ জানিয়া ব্যর্থ সময় নষ্ট করে না তাহার সকল প্রয়োজনের সিদ্ধি প্রাপ্ত হয় ॥ ১৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়॒মায়॑ য়ম॒সূমথ॑র্ব॒ভ্যোऽব॑তোকাᳬं সংবৎস॒রায়॑ পর্য়্যা॒য়িণীং॑ পরিবৎস॒রায়াবি॑জাতা- মিদাবৎস॒রায়া॒তীত্ব॑রীমিদ্বৎস॒রায়া॑তি॒ষ্কদ্ব॑রীং বৎস॒রায়॒ বিজ॑র্জরাᳬं সংবৎস॒রায়॒ পলি॑ক্নীমৃ॒ভুভ্যো॑ऽ জিনস॒ন্ধꣳ সা॒ধ্যেভ্য॒শ্চর্ম॒ম্নম্ ॥ ১৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়মায়েত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । রাজেশ্বরৌ দেবতে । বিরাট্ কৃতিশ্ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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