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यजुर्वेद अध्याय - 30

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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 7
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - पञ्चमः
    236

    तप॑से कौला॒लं मा॒यायै॑ क॒र्मार॑ꣳ रू॒पाय॑ मणिका॒रꣳ शु॒भे वप॒ꣳ श॑र॒व्यायाऽइषुका॒रꣳ हे॒त्यै ध॑नुष्का॒रं कर्म॑णे ज्याका॒रं दि॒ष्टाय॑ रज्जुस॒र्जं मृ॒त्यवे॑ मृग॒युमन्त॑काय श्व॒निन॑म्॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तप॑से। कौ॒ला॒लम्। मा॒यायै॑। क॒र्मार॑म्। रू॒पा॑य। म॒णि॒का॒रमिति॑ मणिऽका॒रम्। शु॒भे। व॒पम्। श॒र॒व्या᳖यै। इ॒षु॒का॒रमिती॑षुऽका॒रम्। हे॒त्यै। ध॒नु॒ष्का॒रम्। ध॒नुः॒का॒रमिति॑ धनुःऽका॒रम्। कर्म॑णे। ज्या॒का॒रमिति॑ ज्याऽका॒रम्। दि॒ष्टाय॑। र॒ज्जु॒स॒र्जमिति॑ रज्जुऽस॒र्जम्। मृ॒त्यवे॑। मृ॒ग॒युमिति॑ मृग॒ऽयुम्। अन्त॑काय। श्व॒निन॒मिति॑ श्व॒ऽनिन॑म् ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तपसे कौलालम्मायायै कर्मारँ रूपाय मणिकारँ शुभे वपँ शरव्यायाऽइषुकारँ हेत्यै धनुष्कारङ्कर्मणे ज्याकारन्दिष्टाय रज्जुसर्जम्मृत्यवे मृगयुमन्तकाय श्वनिनम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तपसे। कौलालम्। मायायै। कर्मारम्। रूपाय। मणिकारमिति मणिऽकारम्। शुभे। वपम्। शरव्यायै। इषुकारमितीषुऽकारम्। हेत्यै। धनुष्कारम्। धनुःकारमिति धनुःऽकारम्। कर्मणे। ज्याकारमिति ज्याऽकारम्। दिष्टाय। रज्जुसर्जमिति रज्जुऽसर्जम्। मृत्यवे। मृगयुमिति मृगऽयुम्। अन्तकाय। श्वनिनमिति श्वऽनिनम्॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर नरेश वा! त्वं तपसे कौलालं, मायायै कर्मारं, रूपाय मणिकारं, शुभे वपं, शरव्यायै इषुकारं, हेत्यै धनुष्कारं, कर्मणे ज्याकारं, दुष्टाय रज्जुसर्जमासुव। मृत्यवे मृगयुमन्तकाय श्वनिनं परासुव॥७॥

    पदार्थः

    (तपसे) तपनाय (कौलालम्) कुलालपुत्रम् (मायायै) प्रज्ञावृद्धये। मायेति प्रज्ञानामसु पठितम्॥ (निघ॰३।९) (कर्मारम्) यः कर्माण्यलंकरोति तम् (रूपाय) सुरूपनिर्मापकाय (मणिकारम्) यो मणीन् करोति तम् (शुभे) शुभाचरणाय (वपम्) यो वपति क्षेत्राणि कृषीवल इव विद्यादिशुभान् गुणाँस्तम् (शरव्यायै) शराणां निर्माणाय (इषुकारम्) य इषून् बाणान् करोति तम् (हेत्यै) वज्रादिशस्त्रनिर्माणाय (धनुष्कारम्) यो धनुरादीनि करोति तम् (कर्मणे) क्रियासिद्धये (ज्याकारम्) यो ज्यां प्रत्यञ्चां करोति तम् (दिष्टाय) दिशत्यतिसृजति येन तस्मै (रज्जुसर्जम्) यो रज्जूः सृजति तम् (मृत्यवे) मृत्युकरणाय प्रवृत्तम् (मृगयुम्) य आत्मानो मृगान् हन्तुमिच्छति तं व्याधम् (अन्तकाय) यो अन्तं करोति तस्मै हितकरम् (श्वनिनम्) बहुश्वपालम्॥७॥

    भावार्थः

    राजपुरुषैर्यथा परमेश्वरेण सृष्टौ रचनाविशेषा दर्शितास्तथा शिल्पविद्यया सृष्टिदृष्टान्तेन च रचनाविशेषाः कर्त्तव्याः। हिंसकाः श्वपालिनश्चाण्डालादयो दूरे निवासनीयाः॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर वा राजन्! आप (तपसे) वर्त्तन पकाने के ताप को झेलने के अर्थ (कौलालम्) कुम्हार के पुत्र को (मायायै) बुद्धि बढ़ाने के लिए (कर्मारम्) उत्तम शोभित काम करनेहारे को (रूपाय) सुन्दर स्वरूप बनाने के लिए (मणिकारम्) मणि बनाने वाले को (शुभे) शुभ आचरण के अर्थ (वपम्) जैसे किसान खेत को वैसे विद्यादि शुभ गुणों के बोने वाले को (शरव्यायै) बाणों के बनाने के लिए (इषुकारम्) बाणकर्त्ता को (हेत्यै) वज्र आदि हथियार बनाने के अर्थ (धनुष्कारम्) धनुष् आदि के कर्त्ता को (कर्मणे) क्रियासिद्धि के लिए (ज्याकारम्) प्रत्यञ्चा के कर्त्ता को (दिष्टाय) और जिस से अतिरचना हो उस के लिए (रज्जुसर्जम्) रज्जु बनाने वाले को उत्पन्न कीजिए और (मृत्यवे) मृत्यु करने को प्रवृत्त हुए (मृगयुम्) व्याध को तथा (अन्तकाय) अन्त करनेवाले के हितकारी (श्वनिनम्) बहुत कुत्ते पालने वाले को अलग बसाइये॥७॥

    भावार्थ

    राजपुरुषों को चाहिए कि जैसे परमेश्वर ने सृष्टि में रचनाविशेष दिखाये हैं, वैसे शिल्पविद्या से और सृष्टि के दृष्टान्त से विशेष रचना किया करें और हिंसक तथा कुत्तों के पालने वाले चण्डालादि को दूर बसावें॥७॥

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    विषय

    ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।

    भावार्थ

    ( २१ ) ( तपसे कौलालम् ) अग्नि के तपाने के कार्य में ( कौलालम् ) घड़े बनाने वाले कुम्हार का अनुकरण करो । वह कचे बरतनों को विधि से रख कर अग्नि से तपाता है उसी प्रकार हम भी मां बाप, आचार्य अपने शिष्यों और राजा अपने प्रजा और राष्ट्र के कार्यों की रक्षा करते हुए उनको परिपक्व एवं दृढ़ करें । (२२) ( मायायै कर्मा- रम् ) बुद्धि और आचार्य के कार्यों के लिये लोहकार का अनुकरण करो । वह बुद्धिमत्ता से लोहे आदि की नाना वस्तुएं बनाता है वैसे ही नाना पदार्थों को उत्पन्न करने का कौशल उससे सीखना चाहिये । (२३) ( रूपाय मणिकारम् ) सुन्दर जड़ाऊ पदार्थ को बनाने के लिये 'मणिकार' का अनुकरण करो । मणियों के आभूषण बनाने वाला सूक्ष्मता से मणियों को जड़ता है, वह सुन्दर आभूषण बन जाता है, उसी प्रकार पदार्थों को सुन्दर बनाने का यत्न करो। (२४) (शुभे) मुख की शोभा के लिये ( चपम् ) केश डाढ़ी के काटने वाले नाई को लो । राष्ट्र की सुख समृद्धि के लिये ( वपम् ) बीज वपन करने वाले किसान को लो । सुन्दरता को पैदा करने के लिये जिस प्रकार नाई औजारों से मुख की शोभा के विधा- तक बालों को छांट कर सुन्दर बना देता है उसी प्रकार राजा भी राष्ट्र के शोभा के नाशक कारणों को दूर कर और दुर्भिक्षादि को दूर करने के लिये कृषकों को नियुक्त करे । कृषक के समान ही मनुष्य अपनी शुभ सन्तान के लिये धैर्य से स्त्री रूप भूमि में बीज वपन करे, उसके समान ही सन्तानों की देख-रेख भी करे । (२५) (शरव्यायै) वाणों को प्राप्त करने के लिये ( इपकारम् ) बाण बनाने वाले तथा शस्त्रों के शिल्पी को प्राप्त करो, उसे राष्ट्र में बसाओ । (२६) (हेत्यै धनुष्कारम् ) देर फेंकने वाले अत्रों के लिये धनुष आदि यन्त्र बनाने वाले शिल्पी को प्राप्त करो। (२७) (कर्मणे) अधिक देर तक युद्ध कार्य करने के लिये ( ज्याकारम् ) डोरी के बनाने वाले को प्राप्त करो । युद्ध अधिक कार्य से डोरी का बार-बार टूटना सम्भव है, इसलिये उसके बनाने वाले से बराबर डोरियां प्राप्त हो सकेंगी। (२८) (दिष्टाय ) बहुत लम्बी रचना के लिये ( रज्जुसर्जम् ) लम्बी रस्सी बनाने वाले का अनुकरण करो। वह छोटे छोटे निर्बल तृणों से भी बट २ कर लम्बा रस्सा बना लेता है । उसी प्रकार राजा अल्पशक्ति वाले मनुष्यों कीऔर उनको उसके समान पुनः आवर्त्तन या अभ्यास द्वारा दृढ व परिपक्क कर दृढ़ सेना बनावे । (२९) (मृत्यवे मृगयुम् ) मृत्यु अर्थात् दुष्ट प्राणियों के वध के लिये (मृगयुम् ) व्याध को उपयुक्त जानो । दुष्ट (पुरुषों के विनाश के लिये राजा व्याध का अनुकरण करे। उसी के समान खोज-खोज कर दुष्ट पुरुषों को नाना उपाय से प्रलोभन आदि दे के जाल में फांस और उनको पकड़ कर निर्दय होकर मृत्युदण्ड दे । (३०) ( अन्तकाय श्वनिनम् ) दुष्ट प्राणियों का अन्त करने के लिये 'श्वनी' अर्थात् कुत्ते पालने वाले शिकारी को ले । जिस प्रकार कुत्तों के साथ शिकारी शिकार को घेर कर व्याघ्र आदि को भी मार लेता है उसी प्रकार राजा भी शत्रु और दुष्ट पुरुषों को घेर घेर कर नष्ट करे । 'दिष्टाय रज्जुसर्पम्' और 'अन्तकाय स्वनिनम्' पाठ असंगत है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदष्टिः । मध्यमः ॥

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    विषय

    तप के लिए कौलाल को

    पदार्थ

    २१. (तपसे कौलालम्) = तपनेवाले कार्यों के लिए कुम्हार के पुत्र को प्राप्त करे। वह सदा भट्टी के तपाने से उन कार्यों के लिए अधिक अभ्यस्त होता है। ऋत, सत्य आदि उत्तम तप के लिए कुलीन पुरुष को संयुक्त करे, यह कुल में कलह होने के भय से तप को न छोड़ेगा । २२. (मायायै कर्मारम्) = बुद्धि व आश्चर्य [माया] के कार्य करने के लिए लोहार को प्राप्त करे। 'किस प्रकार लोहार लोहे को लेकर उसे अद्भुत यन्त्र में परिवर्तित कर देता है', यह सब जादू-सा प्रतीत होता है। २३. (रूपाय मणिकारम्) = आभूषणादि सुन्दर वस्तु बनाने के लिए मणिकार को प्राप्त करे। २४. [क] (शुभे) = मुखादि की शोभा बढ़ाने के लिए (वपम्) = नाई को प्राप्त करे, नाई बालों को ठीक-ठाक करके 'शुन्धिशिर: ' सिर आदि का ठीक शोधन कर देता है। [ख] अथवा (शुभे) = राष्ट्र की शोभा के लिए (वपम्) = बीज को बोनेवाले किसान को प्राप्त करे। वे ही राष्ट्र में अन्नादि की समुचित वृद्धि करके राष्ट्र की शोभा को बढ़ाते हैं । २५. (शरव्यायै इषुकारम्) = शरसमूह को प्राप्त करने के लिए बाण बनानेवाले को प्राप्त करे। २६. हेत्यै दूर फेंकनेवाले अस्त्रों के लिए (धनुष्कारम्) = धनुष बनानेवाले शिल्पी को प्राप्त करे। २७ (कर्मणे ज्याकारम्) = युद्ध के कार्यों के लिए धनुष की डोरी आदि बनानेवाले शिल्पी को प्राप्त करे। २८. (दिष्टाय रज्जुसर्जम्) = आज्ञाओं के पालन कराने के लिए रज्जु का निर्माण करनेवाले को नियत करे। आज्ञा न माननेवालों को बन्धन में डालने के लिए वह सदा तैयार हो। नियमन का भय ही शासन का पालन कराता है। २९. (मृत्यवे मृगयुम्) = दुष्ट प्राणियों के वध के लिए, ग्राम के आतङ्क का कारण बन जानेवाले चीते आदि को मारने के लिए शिकारी को प्राप्त करे। ३०. (अन्तकाय) = दुष्टों का अन्त करने के लिए (श्वनिनम्) = कुत्तों को पालनेवाले शिकारी [Hound] को प्राप्त करे।

    भावार्थ

    भावार्थ - मृगयु, श्वनी आदि को भी राजा राष्ट्र के उपयोगी कार्यों में विनियुक्त करे । उनके द्वारा शेर आदि की हत्या कराके ग्रामवासियों के आतङ्क को दूर करे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वराची सृष्टीरचना जशी विशेषत्वाने दिसून येते तसे राजपुरुषांनीही या सृष्टीला पाहून शिल्पविद्येद्वारे विशेष रचना करावी व हिंसक आणि उपद्रवी लोकांना दूर ठेवावे.

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    विषय

    पुन्हा, त्याचविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे जगदीश्‍वरा वा हे राजन्, आपणास विनंती की (तपसे) मातीची भांडी तयार करणार्‍या वा गर्मी-ताप सहन करण्याची इतर साधनें (घागर, कौलें, कुंडी आदी) निर्माण करण्यासाठी (कौलालम्) कुंभार वा कुंभारपुत्र (उत्पन्न करा-(राजाच्या संदर्भात) राज्यात कुंभार, लोहार, सुतार आदी शिल्पकार निर्माण करा) (मायायै) बुद्धी वाढविण्यासाठी (कर्मारम्) सुंदर कलाकृती निर्माण करणारे शिल्पी आणि (रूपाय) सुंदर रूप वा आकारासाठी सौंदर्यसाधने निर्माण करणार्‍या (मणिकारम्) मणिसार, सोनार आदी बारीकीची कामें करणारे कलाकार (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (शुभे) शुभ आचरणासाठी (वषम्) जसे कृषक शेतात बी पेरतो व धान्य उगवतो तसे हे प्रभो, हे राजन्, विद्यार्थ्यात शुभ गुण पेरणारे आचार्य (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (शख्यायै) बाणांच्या निर्मितीसाठी (इषुकारम्) बाण निर्माण करणारे कारागीर आणि (हेत्यै) वज्र आदी शस्त्रें निर्माण करण्यासाठी (धनुष्कारम्) धनुषकर्ता कारागीर (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (कर्मणे) कर्मपूर्ततेसाठी (ज्याकरम्) प्रत्यंचा तयार करणारे कारागीर आणि (दिष्टाय) अति रचना करण्यासाठी (मोठ्या प्रमाणात व शीघ्र उत्पादन करण्यासाठी) (रज्जुसर्जम्) दोरी, दोरखंड तयार करणारे कारागीर (उत्पन्न करा-निर्माण करा) तसेच (मृत्यवे) मृत्यु करण्यासाठी (कोणाची हत्या करण्यास प्रवृत्त मनुष्याला) (मृगयुम्) व्याध वा शिकार्‍याला तसेच (अन्तकाय) अंत करणार्‍याचे सहायक जे शिकारी (पारधी) आणि शिकारीसाठी) (श्‍वनिनम्) कुत्रे पाळणार्‍या लोकांना (गावापासून) लांब वसावा. ॥7॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजपुरूषांचे कर्तव्य आहे की जसे परमेश्‍वराने सृष्टिरचनेत वैशिष्ट्यें दाखविली आहेत, त्याप्रमाणे शिल्पविद्येच्या आणि सृष्टि रचनेच्या तत्त्वाप्रमाणे राज्यात विशेष रचना कराव्यात. हिंसक पशू तसेच कुत्रे पाळणार्‍या चांडाळ आदी लोकांना गावाच्या बाहेर दूरवर बसवावे. ॥7॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God, create for penance a potters son ; for sharpening intellect an artificer ; for beauty a jeweller ; for welfare a sower ; for arrows a maker of shafts ; for destructive weapons a bowyer ; for victory a bowstring maker ; for control a rope maker. Cast aside a hunter bent on murder ; and a dog-rearer the helper of the murderer.

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    Meaning

    For heat-treatment, the potter or metallurgist; for furnishing, the decorator; for ornament, the jeweller; for beauty, the beautician; for archery, the arrow-maker; for shooting, the bow-maker; for the target, the bow¬ string maker; for marking and delimitation, the string- maker; for killing, the hunter; for the border, the watch¬ dog.

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    Translation

    A potter to baking. (1) A blacksmith to wonderful inventions. (2) A jeweller to beauty. (3) A gardener to decoration. (4) An arrow-maker to arrow making. (5) A bow-maker to weapons. (6) A bow-string-maker to string. (7) A rope-maker to binding. (8) A hunter to killing. (9) A dog-leader with dogs to finishing. (10)

    Notes

    Tapase, for heating or baking. Māyāyai, for astonish ing inventive works. Karmära, blacksmith. Vapam, a gardener. Antakāya, for killing to finish.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন্! আপনি (তপসে) মাটি পোড়াইবার তাপকে সহ্য করিবার জন্য (কৌলালম্) কুম্ভকারের পুত্রকে (মায়ায়ৈ) বুদ্ধি বৃদ্ধি করিবার জন্য (কর্মারম্) উত্তম শোভিত কর্ম্ম যে করে তাহাকে (রূপায়) সুন্দর স্বরূপ নির্মাণ করিবার জন্য (মণিকারম্) মণি নির্মাণকারীকে (শুভে) শুভ আচরণের জন্য (বপম্) যেমন কৃষক ক্ষেতকে তদ্রূপ বিদ্যাদি শুভ-গুণসকলের বপনকারীকে (শরব্যায়ৈ) বাণ তৈরী করিবার জন্য (ইষুকারম্) বাণকর্ত্তাকে (হেত্যৈ) বজ্রাদি শস্ত্র নির্মাণ করিবার জন্য (অনুষ্কারম্) ধনুকাদির কর্ত্তাকে (কর্মণে) ক্রিয়াসিদ্ধির জন্য (জ্যাকারম্) জ্যার কর্ত্তাকে (দিষ্টায়) এবং যদ্দ্বারা অতিরচনা হয় তাহার জন্য (রজ্জুসর্জম্) রজ্জু নির্মাণকারীকে উৎপন্ন করুন এবং (মৃত্যবে) মৃত্যু করিবার জন্য প্রবৃত্ত (মৃগ্য়ুম্) ব্যাধকে তথা (অন্তকায়) অন্তকারীর হিতকারী (শ্বনিনম্) বহু কুকুর পালকদেরকে পৃথক বাস করিতে দিন্ ॥ ৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–রাজপুরুষদিগের উচিত যে, যেমন পরমেশ্বর সৃষ্টিতে রচনাবিশেষ দেখিয়েছেন তদ্রূপ শিল্পবিদ্যা দ্বারা এবং সৃষ্টির দৃষ্টান্ত দ্বারা বিশেষ রচনা করিতে থাকিবেন এবং হিংসক তথা কুকর পালক চান্ডালাদিকে দূরে বাস করিতে দিন ॥ ৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তপ॑সে কৌলা॒লং মা॒য়ায়ৈ॑ ক॒র্মার॑ꣳ রূ॒পায়॑ মণিকা॒রꣳ শু॒ভে ব॒পꣳ শ॑র॒ব্যা᳖য়াऽইষুকা॒রꣳ হে॒ত্যৈ ধ॑নুষ্কা॒রং কর্ম॑ণে জ্যাকা॒রং দি॒ষ্টায়॑ রজ্জুস॒র্জং মৃ॒ত্যবে॑ মৃগ॒য়ুমন্ত॑কায় শ্ব॒নিন॑ম্ ॥ ৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তপস ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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