यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 6
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - परमेश्वरो देवता
छन्दः - निचृदष्टिः
स्वरः - मध्यमः
522
नृ॒त्ताय॑ सू॒तं गी॒ताय॑ शैलू॒षं धर्मा॑य सभाच॒रं न॒रिष्ठा॑यै भीम॒लं न॒र्माय॑ रे॒भꣳ हसा॑य॒ कारि॑मान॒न्दाय॑ स्त्रीष॒खं प्र॒मदे॑ कुमारीपु॒त्रं मे॒धायै॑ रथका॒रं धैर्य्या॑य॒ तक्षा॑णम्॥६॥
स्वर सहित पद पाठनृ॒त्ताय॑। सू॒त॒म्। गी॒ताय॑। शै॒लू॒षम्। धर्मा॑य। स॒भा॒च॒रमिति॑ सभाऽच॒रम्। न॒रिष्ठा॑यै। भी॒म॒लम्। न॒र्माय॑। रे॒भम्। हसा॑य। कारि॑म्। आ॒न॒न्दायेत्या॑न॒न्दाय॑। स्त्री॒ष॒ख॒म्। स्त्री॒स॒खमिति॑ स्त्रीऽस॒खम्। प्र॒मद॒ इति॑ प्र॒ऽमदे॑। कु॒मा॒री॑पु॒त्रमिति॑ कुमारीऽपु॒त्रम्। मे॒धायै॑। र॒थ॒का॒रमिति॑ रथऽका॒रम्। धैर्य्या॑य। तक्षा॑णम् ॥६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नृत्ताय सूतङ्गीताय शैलूषन्धर्माय सभाचरन्नरिष्ठायै भीमलन्नर्माय रेभँ हसाय कारिमानन्दाय स्त्रीषुखम्प्रमदे कुमारीपुत्रम्मेधायै रथकारन्धैर्याय तक्षाणम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
नृत्ताय। सूतम्। गीताय। शैलूषम्। धर्माय। सभाचरमिति सभाऽचरम्। नरिष्ठायै। भीमलम्। नर्माय। रेभम्। हसाय। कारिम्। आनन्दायेत्यानन्दाय। स्त्रीषखम्। स्त्रीसखमिति स्त्रीऽसखम्। प्रमद इति प्रऽमदे। कुमारीपुत्रमिति कुमारीऽपुत्रम्। मेधायै। रथकारमिति रथऽकारम्। धैर्य्याय। तक्षाणम्॥६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजपुरुषैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर राजन् वा! त्वं नृत्ताय सूतं गीताय शैलूषं धर्माय सभाचरं नर्माय रेभमानन्दाय स्त्रीषखं मेधायै रथकारं धैर्याय तक्षाणमासुव, नरिष्ठायै भीमलं हसाय कारिं प्रमदे कुमारीपुत्रं परासुव॥६॥
पदार्थः
(नृत्ताय) नृत्याय (सूतम्) क्षत्रियाद् ब्राह्मण्यां जातम् (गीताय) गानाय (शैलूषम्) गायनम् (धर्माय) धर्मरक्षणाय (सभाचरम्) यः सभायां चरति तम् (नरिष्ठायै) अतिशयिता दुष्टा नराः सन्ति यस्यां तस्यै प्रवृत्तम् (भीमलम्) यो भीमान् भयङ्करान् लात्याददाति तम् (नर्माय) कोमलत्वाय (रेभम्) स्तोतारम्। रेभ इति स्तोतृनामसु पठितम्॥ (निघ॰३।१६) (हसाय) हसनाय प्रवृत्तम् (कारिम्) उपहासकर्त्तारम् (आनन्दाय) (स्त्रीषखम्) स्त्रियां मित्रं पतिम् (प्रमदे) प्रमादाय प्रवृत्तम् (कुमारीपुत्रम्) विवाहात् पूर्वं व्यभिचारेणोत्पन्नम् (मेधायै) प्रज्ञायै (रथकारम्) विमानदिरचकं शिल्पिनम् (धैर्याय) (तक्षाणम्) तनूकर्त्तारम्॥६॥
भावार्थः
राजपुरुषैः परमेश्वरोपदेशेन राजाज्ञया च सर्वे श्रेष्ठा धार्मिका जना उत्साहनीया हास्यभयप्रदा निवारणीया अनेकाः सभाः निर्माय सर्वा व्यवस्थाः शिल्पविद्योन्नतिश्च कार्य्या॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजपुरुषों को क्या करना चाहिए इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर! वा राजन्! आप (नृत्ताय) नाचने के लिए (सूतम्) क्षत्रिय से ब्राह्मणी में उत्पन्न हुए सूत को (गीताय) गाने के अर्थ (शैलूषम्) गाने हारे नट को (धर्माय) धर्म की रक्षा के लिए (सभाचरम्) सभा में विचरने हारे सभापति को (नर्माय) कोमलता के अर्थ (रेभम्) स्तुति करनेहारे को (आनन्दाय) आनन्द भोगने के अर्थ (स्त्रीषखम्) स्त्री से मित्रता रखनेवाले पति को (मेधायै) बुद्धि के लिए (रथकारम्) विमानादि को रचनेहारे कारीगर को (धैर्याय) धीरज के लिए (तक्षाणम्) महीन काम करनेवाले बढ़ई को उत्पन्न कीजिए (नरिष्ठायै) अति दुष्ट नरों की गोष्ठी के लिए प्रवृत्त हुए (भीमलम्) भयंकर विषयों को ग्रहण करने वाले को (हसाय) हंसने के अर्थ प्रवृत्त हुए (कारिम्) उपहासकर्त्ता को और (प्रमदे) प्रमाद के लिए प्रवृत्त हुए (कुमारीपुत्रम्) विवाह से पहिले व्यभिचार से उत्पन्न हुए को दूर कर दीजिए॥६॥
भावार्थ
राजपुरुषों को चाहिए कि परमेश्वर के उपदेश और राजा की आज्ञा से सब श्रेष्ठ धर्मात्मा जनों को उत्साह दें, हंसी करने और भय देने वालों को निवृत्त करें, अनेक सभाओं को बना के सब व्यवस्था और शिल्पविद्या की उन्नति किया करें॥६॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
( ११ ) (नृत्ताय) नाट्य के लिये ( सूतम् ) दूसरे से प्रेरित होने वाले अथवा नाटक के पात्रों के प्रेरक पुरुष को नियुक्त करो । सूतम् क्षत्रियाद् ब्राह्मण्यां जातम् इति दयानन्दः । (१२) (गीताय शेलूपम् ) गीत कर्म के लिये 'शैलूष' नट को उप- युक्त जानो जो नाना भावविकारों को दर्शाते हुए गा सके । (१३) (धर्मा सभाचरम् ) धर्मं, अर्थात् स्मृतिशास्त्र राज-नियम या विधान के निर्णय के लिये 'सभाचर', धर्मसभा में कुशल पुरुष को उपयुक्त जानो । (१४) ( नरिष्ठायै) नेता का पद प्राप्त करने के लिये ( भीमलम् ) भयंकर, भीतिः प्रद पुरुष को नियुक्त करो, जिसके भय से प्रजाजन उस पद का मान करें। (नर्माय) कोमल वचनों के प्रयोग करने के कार्य मैं ( रेभम् ) सुन्दर वचनों को प्रयोग करने वाले, स्तुति करने में चतुर पुरुष को प्राप्त करो । (१६) (हसाय) आनन्द विनोद और उपहास के काम में ( कारिम् ) नकल उतारने वाले को चतुर जानो । ( १७ ) ( आनन्दाय) आनन्द, गृहसुख प्राप्त करने मैं ( स्त्रीसखम् ) स्त्री के साथ मित्र रूप से रहने वाले पति को योग्य जानो । (१८) (प्रमदे) अति अधिक हर्ष, कामवेग के उत्पत्ति में ( कुमारीपुत्रम् ) कुमारी दशा में से उत्पन्न कानीन सन्तान को जानो अर्थात् कुमारी दशा में जो संतान होते हैं वे अयुक्त काम व्यसनों में फंस- कर प्राय: दुराचारी होते हैं इसलिये उनको दूर करने का यत्न करो । (१९) (मेधाय) वृद्धि के कार्य में ( रथकारम् ) रथकार को दृष्टान्त के रूप से जानो । रथकार जैसे कौशल से रथ के अवयवों को लगाता है वैसे बुद्धिपूर्वक कार्ययोजना के लिये रथकार का अनुकरण करना चाहिये । (२०) (धैर्याय) धैर्य की शिक्षा के लिये ( तक्षणम् ) तनखान को दृष्टान्त रूप से जानो । जैसे श्रम से तनखान छोटे से औजार से बड़ी धीरता से अपने हाथ पांव को बचाते हुए लकड़ी गढ़ कर कपाट, मेज, कुर्सी आदि बनाता है उसी प्रकार हम धैर्य से साधनों का प्रयोग कर पदार्थों को तैयार करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निचृदष्टिः । मध्यमः ॥
विषय
नृत्य के लिए सूत को
पदार्थ
११. (नृत्ताय सूतम्) = नृत्य के लिए-इशारों से नृत्य की प्रेरणा देनेवाले को प्राप्त करे। १२. (गीताय शैलूषम्) = सम्मिलित गायन के लिए शैलूष [One who beats tune at a concert ] को - करताल बजानेवाले को रक्खो । १३. (धर्माय) = राष्ट्र के कानून के लिए (सभाचरम्) = धर्मसभा के सभासद् [Assembly's member] को प्राप्त करो। १४. (नरिष्ठायै भीमलम्) = [नरि-ष्ठा] नेतृत्व के पद पर स्थिति के लिए भीतिप्रद, ओजस्वी, रोबवाले पुरुष को नियत करे। १५. (नर्माय रेभम्) = परिहास आदि की क्रीड़ा के लिए स्तोता को अथवा बोलने में चतुर वाचाट पुरुष को प्राप्त करे। १६. (हसाय कारिम्) = हँसी-मखौल के लिए नकल उतारनेवाले को प्राप्त करे। १७. (आनन्दाय) = आनन्द प्राप्ति के लिए (स्त्रीषखम्) = पत्नी की मित्रता को प्राप्त करे। वस्तुतः सारा गृहसुख पत्नी के साथ समान विचारवाला होने में ही है। १८. (प्रमदे कुमारीपुत्रम्) = कुमारी के पुत्र को प्रमादयुक्त कार्यों के लिए जाने। जिस प्रकार कुमारी से प्रमादवश वह सन्तान हो गई, अतः उस सन्तान में भी वही प्रमाददोष उत्पन्न हो जाएगा। ऐसा सन्तान प्रायः प्रमादयुक्त कार्यों को करनेवाला होगा । १९. (मेधायै रथकारम्) = मेधा के लिए रथकार को प्राप्त करे। जैसे एक रथकार भिन्न-भिन्न रथांगों को कुशलता से संगत करके रथ का निर्माण करता है उसी प्रकार उसका अनुसरण करता हुआ पुरुष अपनी मेधा को बढ़ानेवाला होता है। रथ आदि के निर्माण में बुद्धिकौशल व्यक्त होता है । २०. (धैर्याय) = धैर्य के लिए (तक्षाणम्) = तरखान को प्राप्त करे । 'किस प्रकार सूक्ष्म से सूक्ष्म चित्रकारी व कारीगरी के कार्यों को यह तक्षा धैर्यपूर्वक करता चलता है', इस कर्म को देखकर दूसरा मनुष्य भी धैर्य से काम करने का पाठ पढ़ता है। मुझे एक बढ़ई की भाँति धैर्यवाला [As patient as a carpenter] बनना है' ऐसा हमें निश्चय करना चाहिए।
भावार्थ
भावार्थ - राजा राष्ट्र में नृत्य आदि कार्यों के लिए सूत आदि को नियुक्त करे।
मराठी (2)
भावार्थ
राजपुरुषांनी परमेश्वराला उपदेश स्मरून व राजाची आज्ञा पाळून श्रेष्ठ व धार्मिक लोकांचा उत्साह वाढवावा. जे लोक चेष्टा करतात, भयभीत करतात, त्यांना दूर करावे. निरनिराळ्या सभा बनवाव्या व व्यवस्था ठेवावी आणि हस्तकला (शिल्पविद्या) समृद्ध करावी.
विषय
राज्यपुरूषांनी काय करावे, या विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे परमेश्वर, अथवा हे राजन्, आपण (नृत्ताय) नृत्य, (नाट्यशास्त्र आदी) साठी (सूतम्) क्षत्रिय पुरूषापासून ब्राह्मण स्त्रीच्या पोटी जन्मणारा-तो सूत, त्या सूताला (उत्पन्न करा. राजाच्या संदर्भात-राज्यात नट कलाकार उत्पन्न होतील, अशी नाट्यशाळा आदींची स्थापना करा) (गीताय) गीतरचना एवं संगीतकलेच्या वृद्धीसाठी (शैलूषम्) गानविद्येत प्रवीण नट वा गायक (उत्पन्न करा) (धर्माय) धर्माच्या रक्षणासाठी (सभाचरम्) सुयोग्य सभासद वा सभाधीश (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (निर्माण) कोमलता (वा पारस्परिक स्नेहभाववृद्धीसाठी) (स्त्रीसखम्) पत्नीप्रत सख्य भावाने वागणारा पती आणि (मेधायै) बुद्धीसाठी (रथकारम्) विमानादी रथ निर्माण करणारे (तांत्रिकजन उत्पन्न करा-निर्माण करा) (धैर्याय) सावकाशपणे कसे काम करावे, हे शिकविण्यासाठी (तक्षाणम्) बारीक कलाकुसर आणि कलात्मक कार्य करण्यासाठी सुतार सारखे कारागीर (उत्पन्न करा-निर्माण करा) (नरिष्ठायै) अतिदुष्ट मनुष्यांचे संगठन तयार करणार्या माणसांसाठी (भीमलम्) भयंकर विषयांकडे आकर्षक असार्याला तसेच (हसाय) हसण्याचा स्वभाव असलेल्या अभद्र व अश्लील मनुष्यासाठी (कारिम्) उपहासकर्त्याला-चेष्टेखोर मनुष्याला आणि (प्रमदे) प्रमादी स्वभावाच्या माणसासाठी (कुमारीपुत्रम्) विवाह पूर्वी कुमारी मातेच्या पोटी व्यभिचाराद्वारे उत्पन्न पुत्राला-या सर्वांना दूर करा, (समाजापासून दूर ठेवा की ज्यायोगे समाज सदाचारयुक्त राहील.) ॥6॥
भावार्थ
भावार्थ- राजपुरूषांनी परमेश्वराच्या आदेशा प्रमाणे आणि राजाच्या आज्ञेप्रमाणे श्रेष्ठ धर्मात्माजनांना प्रोत्साहन द्यावे आणि ज्यांच्यापासून समाजाला भय वा हानी होत असेल, त्याना दूर ठेवले पाहिजे. तसेच राजा आणि राजपचरूषांनी अनेक सभांचे निर्माण करून सर्व शासन-व्यवस्था करावी आणि राज्यात शिल्पविद्यांचा विकास करावा. ॥6॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, create for dance a bard ; for song a public dancer ; for duty one who administers justice ; for sweetness a panegyrist ; for pleasure a wife-lover husband ; for dexterity a car-builder ; for firmness a carpenter. Cast aside, a debauchee who indulges in conversation with the dissolute ; a ridiculer fond of derision ; an illegitimate virgins son, addicted to carelessness.
Meaning
For dance, the dancer; for song, the singer; for dharma, the active councillor; for social morale, the mighty man; for refinement, the poet; for fun, the comedian; for pleasure, fair company; for indulgence, the child of wantonness; for finesse, the chariot-maker; for patience, the carpenter.
Translation
A charioteer to dancing. (1) A street-singer to singing. (2) A court officer to dispense justice. (3) A dreadful man to violence. (4) A chatterer to pastime. (5) A joker to laughter. (6) A woman-lover to pleasure. (7) A damsel's son to erotic acting. (8) A chariot-maker to dexterity. (9) A carpenter to patience. (10)
Notes
Narişthā, influencing men. Bhimalam, भयंकरं, dreadful; fierce-looking. Sailūşam, street-singer. Narmaya, for past-time. Kārim, a joker. Medhãyai, for wisdom or dexterity. Takṣāņain, carpenter.
बंगाली (1)
विषय
পুনা রাজপুরুষৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ রাজপুরুষদিগের কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন্! আপনি (নৃত্তায়) নর্ত্তন হেতু (সূতম্) ক্ষত্রিয় হইতে ব্রাহ্মণীতে উৎপন্ন সূতকে (গীতায়) গানের জন্য (শৈলূষম্) গায়নকারী নটকে (ধর্মায়) ধর্মের রক্ষা হেতু (সভাচরম্) সভায় বিচরণকারী সভাপতিকে (নর্মায়) কোমলতার জন্য (রেভম্) স্তুতিকারীকে (আনন্দায়) আনন্দ ভোগ করিবার জন্য (স্ত্রীষখং) স্ত্রীর সহিত মিত্রতা রক্ষাকারী পতিকে (মেধায়ৈ) বুদ্ধি হেতু (রথকারম্) বিমানাদি রচনাকারী শিল্পীকে (ধৈর্য়ায়) ধৈর্য্য হেতু (তক্ষাণম্) সূক্ষ্ম কাজ করিবার ছুতারকে উৎপন্ন করুন । (নরিষ্ঠায়ৈ) অতি দুষ্ট নরসকলের গোষ্ঠীর জন্য প্রবৃত্ত (ভীমলম্) ভয়ঙ্কর বিষয়কে গ্রহণকারীকে (হসায়) হাঁসিবার জন্য প্রবৃত্ত (কারিম্) উপহাসকর্ত্তাকে এবং (প্রমদে) প্রমাদ হেতু প্রবৃত্ত (কুমারীপুত্রম্) বিবাহের পূর্বে ব্যভিচার দ্বারা উৎপন্ন পুত্রকে দূর করিয়া দিন ॥ ৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–রাজপুরুষদের উচিত যে, পরমেশ্বরের উপদেশ এবং রাজার আজ্ঞা দ্বারা সব শ্রেষ্ঠ ধর্মাত্মাগণকে উৎসাহ দিবে, হাস্যকারীদের এবং ভয় প্রদর্শনকারীদেরকে নিবৃত্ত করিবে । বহু সভা তৈরী করিয়া সকল ব্যবস্থা ও শিল্পবিদ্যার উন্নতি করিতে থাকিবে ॥ ৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নৃ॒ত্তায়॑ সূ॒তং গী॒তায়॑ শৈলূ॒ষং ধর্মা॑য় সভাচ॒রং ন॒রিষ্ঠা॑য়ৈ ভীম॒লং ন॒র্মায়॑ রে॒ভꣳ হসা॑য়॒ কারি॑মান॒ন্দায়॑ স্ত্রীষ॒খং প্র॒মদে॑ কুমারীপু॒ত্রং মে॒ধায়ৈ॑ রথকা॒রং ধৈর্য়্যা॑য়॒ তক্ষা॑ণম্ ॥ ৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নৃত্তায়েত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । পরমেশ্বরো দেবতা । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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