यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 8
न॒दीभ्यः॑ पौञ्जि॒ष्ठमृ॒क्षीका॑भ्यो॒ नैषा॑दं पुरुषव्या॒घ्राय॑ दु॒र्मदं॑ गन्धर्वाप्स॒रोभ्यो॒ व्रात्यं॑ प्र॒युग्भ्य॒ऽ उन्म॑त्तꣳ सर्पदेवज॒नेभ्योऽप्र॑तिपद॒मये॑भ्यः कित॒वमी॒र्यता॑या॒ऽअकि॑तवं पिशा॒चेभ्यो॑ विदलका॒रीं या॑तु॒धाने॑भ्यः कण्टकीका॒रीम्॥८॥
स्वर सहित पद पाठन॒दीभ्यः॑। पौ॒ञ्जि॒ष्ठम्। ऋ॒क्षीका॑भ्यः। नैषा॑दम्। नैसा॑द॒मिति॒ नैऽसा॑दम्। पु॒रु॒ष॒व्या॒घ्रायेति॑ पुरुषऽव्या॒घ्राय॑। दु॒र्मद॒मिति॑ दुः॒ऽमद॑म्। ग॒न्ध॒र्वा॒प्स॒रोभ्य॒ इति॒ गन्धर्वाप्स॒रःऽसरःऽभ्यः॑। व्रात्य॑म्। प्र॒युग्भ्य॒ इति॑ प्र॒युक्ऽभ्यः॑। उन्म॑त्त॒मित्युत्ऽम॑त्तम्। स॒र्प॒दे॒व॒ज॒नेभ्य॒ इति॑ सर्पऽदेवज॒नेभ्यः॑। अप्र॑तिपद॒मित्यप्र॑तिऽपदम्। अये॑भ्यः। कि॒त॒वम्। ई॒र्य्यता॑यै। अकि॑तवम्। पि॒शा॒चेभ्यः॑। वि॒द॒ल॒का॒रीमिति॑ विदलऽका॒रीम्। या॒तु॒धाने॑भ्य॒ इति॑ यातु॒ऽधाने॑भ्यः। क॒ण्ट॒की॒का॒रीमिति॑ कण्टकीऽका॒रीम् ॥८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नदीभ्यः पौञ्जिष्ठमृक्षीकाभ्यो नैषादम्पुरुषव्याघ्राय दुर्मदङ्गन्धर्वाप्सरोभ्यो व्रात्यम्प्रयुग्भ्य उन्मत्तँ सर्पदेवजनेभ्यो प्रतिपदमयेभ्यः कितवमीर्यतायाऽअकितवम्पिशाचेभ्यो बिदलकारीँयातुधानेभ्यः कण्टकीकारीम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
नदीभ्यः। पौञ्जिष्ठम्। ऋक्षीकाभ्यः। नैषादम्। नैसादमिति नैऽसादम्। पुरुषव्याघ्रायेति पुरुषऽव्याघ्राय। दुर्मदमिति दुःऽमदम्। गन्धर्वाप्सरोभ्य इति गन्धर्वाप्सरःऽसरःऽभ्यः। व्रात्यम्। प्रयुग्भ्य इति प्रयुक्ऽभ्यः। उन्मत्तमित्युत्ऽमत्तम्। सर्पदेवजनेभ्य इति सर्पऽदेवजनेभ्यः। अप्रतिपदमित्यप्रतिऽपदम्। अयेभ्यः। कितवम्। ईर्य्यतायै। अकितवम्। पिशाचेभ्यः। विदलकारीमिति विदलऽकारीम्। यातुधानेभ्य इति यातुऽधानेभ्यः। कण्टकीकारीमिति कण्टकीऽकारीम्॥८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर नृप वा! त्वं नदीभ्यः पौञ्जिष्ठमृक्षीकाभ्यो नैषादं पुरुषव्याघ्राय दुर्मदं गन्धर्वाप्सरोभ्यो व्रात्यं प्रयुग्भ्य उन्मत्तं सर्पदेवजनेभ्योऽप्रतिपदमयेभ्यः कितवमीर्य्यताया अकितवं पिशाचेभ्यो विदलकारीं यातुधानेभ्यः कण्टकीकारीं परासुव॥८॥
पदार्थः
(नदीभ्यः) सरिद्विनाशाय प्रवृत्तम् (पौञ्जिष्ठम्) पुक्कसम् (ऋक्षीकाभ्यः) या ऋक्षा गतीः कुर्वन्ति ताभ्यः प्रवृत्तम् (नैषादम्) निषादस्य पुत्रम् (पुरुषव्याघ्राय) व्याघ्र इव पुरुषस्तस्मै हितम् (दुर्मदम्) दुर्गतो दुष्टो मदोऽभिमानं यस्य तम् (गन्धर्वाप्सरोभ्यः) गन्धर्वाश्चाप्सरसश्च ताभ्यः प्रवृत्तम् (व्रात्यम्) असंस्कृतम् (प्रयुग्भ्यः) ये प्रयुञ्जते तेभ्यः प्रवृत्तम् (उन्मत्तम्) उन्मादरोगिणम् (सर्पदेवजनेभ्यः) सर्पाश्च देवजनाश्च तेभ्यो (अप्रतिपदम्) अनिश्चितबुद्धिम् (अयेभ्यः) य अय्यन्ते प्राप्यन्ते पदार्थास्तेभ्यः प्रवृत्तम् (कितवम्) द्यूतकारिणम् (ईर्य्यतायै) कम्पनाय प्रवृत्तम् (अकितवम्) अद्यूतकारिणम् (पिशाचेभ्यः) पिशिता नष्टाऽऽशा येषां ते पिशाचाः अथवा पिशितमवयवीभूतं सरक्तं वा मांसमाचामन्ति भक्षयन्तीति पिशाचाः। उभयथा पृषोदरादित्वात् [अ॰६.३.१०९] सिद्धिः। (विदलकारीम्) या विगतान् दलान् करोति ताम् (यातुधानेभ्यः) यान्ति येषु ते यातवो मार्गास्तेभ्यो धनं येषान्तेभ्यः प्रवृत्तम् (कण्टकीकारीम्) या कण्टकीं करोति ताम्॥८॥
भावार्थः
हे राजन्! यथा परमेश्वरो दुष्टेभ्यो महात्मनो दूरे वासयति, दुष्टाः परमेश्वराद् दूरे वसन्ति, तथा त्वं दुष्टेभ्यो दूरे वस, दुष्टांश्च स्वतो दूरे वासय, सुशिक्षया साधून् सम्पादय वा॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा राजन्! आप (नदीभ्यः) नदियों को बिगाड़ने के लिए प्रवृत्त हुए (पौञ्जिष्ठम्) धानुक को (ऋक्षीकाभ्यः) गमन करने वाली स्त्रियों के अर्थ प्रवृत्त हुए (नैषादम्) निषाद के पुत्र को (पुरुषव्याघ्राय) व्याघ्र के तुल्य हिंसक पुरुष के हितकारी (दुर्मदम्) दुष्ट अभिमानी को (गन्धर्वाप्सरोभ्यः) गाने-नाचने वाली स्त्रियों के लिए प्रवृत्त हुए (व्रात्यम्) संस्काररहित मनुष्य को (प्रयुग्भ्यः) प्रयोग करने वालों के अर्थ प्रवृत्त हुए (उन्मत्तम्) उन्माद रोग वाले को (सर्पदेवजनेभ्यः) सांप तथा मूर्खों के लिए हितकारी (अप्रतिपदम्) संशयात्मा को (अयेभ्यः) जो पदार्थ प्राप्त किये जाते उन के लिए प्रवृत्त (कितवम्) ज्वारी को (ईर्य्यतायै) कम्पन के लिए प्रवृत्त हुए (अकितवम्) जुआ न करनेहारे को (पिशाचेभ्यः) दुष्टाचार करने से जिन की आशा नष्ट हो गई वा रुधिरसहित कच्चा मांस खाने के लिए प्रवृत्त (विदलकारीम्) पृथक्-पृथक् टुकड़ों को करनेहारी को और (यातुधानेभ्यः) मार्गों से जिनके धन आता उस के लिए प्रवृत्त हुई (कण्टकीकारीम्) कांटें बोने वाली को पृथक् कीजिए॥८॥
भावार्थ
हे राजन्! जैसे परमेश्वर दुष्टों से महात्माओं को दूर बसाता और दुष्ट परमेश्वर से दूर बसते हैं, वैसे आप दुष्टों से दूर बसो और अपने से दुष्टों को दूर बसाइये वा सुशिक्षा से श्रेष्ठ कीजिए॥८॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
(३१) (नदीभ्यः) नदियों को पार करने के लिये (पौष्ठिम् ) काष्टखण्डों के पुओं या बड़े पशुओं की खालों की मशकों का बेड़ा बना 'कर तैरने वाले पुरुषों को नियुक्त करे । (३२) (ऋक्षीकाभ्यः नैषादम् ) रीछ जाति के वनचारी जन्तुओं के लिये नैषाद, निषाद या जंगली जाति के पुरुषों को नियुक्त करो । वे सीछ आदि का सुगमता से वध कर देते है अथवा — (ऋक्षीकाभ्यः) कुटिल चाल (वाली स्त्रियों को वश करने के लिये ( नैषादम् ) नीच धर्म से रहने वाले पुरुषों को ही नियुक्त करे । (३३) (पुरुषव्याघ्राय) पुरुषों में व्याघ्र के समान शूरवीर पुरुषों के पद के लिये (दुर्मदम् ) दुर्दान्त, अदम्य पुरुष को नियुक्त करे । (३४) (गन्धर्वाप्सरोभ्यः) युवा पुरुष और युवती स्त्रियों की रक्षा के लिये (व्रात्यम् ) बात अर्थात् मनुष्य समूहों के हितकारी विद्वान् को नियुक्त करो। (३५) (प्रयुग्भ्यः) उत्कृष्ट योगाभ्यासों के लिये प्रवृत्त, ( उन्मत्तम् ) उत्तम कोटि के हर्ष से युक्त योगी को जानो । ( ३६ ) ( सर्वदेवजनेभ्यः अप्रतिपदम् ) राष्ट्र भर में गुप्तचर के काम के और 'देवजन' अर्थात् युद्ध के विजयार्थ सैनिक कार्य के लिये अज्ञात पुरुष को प्राप्त करे, जिसको कोई जान न सके ऐसे को चर बनावे और जो किसी को कुछ नहीं समझे ऐसे वीर को सिपाही बनावे | (३७) (अयेभ्यः) पासों को खेलने के लिये ( कितवम् ) जुआरी पुरुष को दोषी जाने । ( ३८ ) ( ईर्यतायै अकितवम् ) दूसरों को सन्मार्ग पर ले चलने के लिये छल-कपट से रहित सज्जन पुरुष को नियुक्त करे । (३९) (पिशाचेभ्यः) कच्चे मांस पर गीधों की तरह रूप - भोग पर पड़ने वाले पुरुषों को वश करने के लिये ( विदलकारिम् ) विरुद्ध दल: खड़ा करा देने वाली भेद नीति का प्रयोग करे । (४०) ( यातुधानेभ्य: कण्टकी कारिम् ) कुटिल मार्गों से धन प्राप्त करने वाले और प्रजाओं को पीड़ा देने वाले, ठगों, चोर, लुटेरों के वश करने के लिये कण्टकी अर्थात् हिंसा करने वाली नीति वा सेना वा तीव्र दृष्टि का प्रयोग करे । कण्टकः कन्तपो वा कृन्ततेर्वा कन्टतेर्वा स्याद् गतिकर्मणः । निरु० ॥ कण्टति पश्यति परान् इति स्कन्दस्वामी ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कृतिः । निषादः ॥
विषय
नदियों के लिए पौञ्जिष्ठ को
पदार्थ
३१. [क] (नदीभ्यः) = नदियों के लिए (पौञ्जिष्ठम्) = मछियारे को प्राप्त करे। नदियों पर मछली आदि के पकड़ने के कार्य को ये ही करेंगे अथवा [ख] नदियों के लिए काष्ठखण्डों के पुञ्जों पर स्थित होकर [बेड़ों-rafts पर] नदियों को पार करानेवालों को प्राप्त करे। नदियों पर ये नाविक यात्रियों को पार करने का कार्य करेंगे। ३२. (ऋक्षीकाभ्यो नैषादम्) = रीछ आदि जंगली, क्रूर पशुओं के लिए निषाद व जंगली जाति के पुरुषों को प्राप्त करे। वे ही इनके वध आदि की ठीक व्यवस्था रखेंगे। ३३. (पुरुषव्याघ्राय दुर्मदम्) = पुरुषों में व्याघ्र के समान शूरवीर के लिए, अर्थात् ऐसे व्यक्तियों को नियन्त्रण में रखने के लिए, दुर्दान्त प्रचण्ड वीर को, अदम्य पुरुष को नियत करे, ३४. [क] (गन्धर्वाप्सरोभ्यः) = सुन्दर युवक व युवतियों के लिए, अर्थात् इनके संरक्षण के लिए व अध्ययनाध्यापन के लिए (व्रात्यम्) = [व्रताः मनुष्याः तेषु साधुः] मनुष्यसमूहों में उत्तमता से वर्त्त सकनेवाले को नियत करे । [ख] (गन्धर्व) = किसान [गां धारयति] (अप्सर) = मजदूर [कर्म में चलता है] लोगों में संघों के सञ्चालन में उत्तम पुरुष को नियत करे जो संघ [Union] को ठीक नियन्त्रण में रख सके। ३५. (प्रयुग्भ्यः) = परीक्षणों के लिए प्रयोगों के लिए [प्रयोजनं प्रयुक्] उसे (उन्मत्तम्) = उन्मत्त को [One who is mad after them] जिसे परीक्षणों की ख़ब्त हो, नियत करे। दूसरा व्यक्ति तो तनिक सी असफलता पर परीक्षण को बीच में ही छोड़ देगा। ३६. (सर्पदेवजनेभ्यः) सर्प, अर्थात् गुप्तचर [अपसर्प: चर: स्पशः ] तथा देवजन [ दीव्यन्ति व्यवहरन्ति] व्यापारी वर्ग के लिए (अप्रतिपदम्) = जो न जाना जा सके तथा जो अनुत्तम = बहुत अधिक ज्ञानवाला है, उसे नियत करे। गुप्तचर पहचाने न जा सकें और व्यापारी बड़े समझदार हों। ३७. [क] (अक्षेभ्यः) = पासों के लिए (कितवम्) = जुआरी को प्राप्त करें [ख] अथवा उत्तम गतियों के लिए ज्ञानी पुरुषों को नियत करे [कित संज्ञाने चिकेति ] ३८. (ईर्यतायै) = सन्मार्ग पर चलने के लिए (अकितवम्) = न जुआरी अर्थात् श्रमशील कृषक आदि को प्राप्त करे। उल्लिखित दोनों वाक्यों का भाव ('अक्षैर्मा दीव्यः, कृषिमित्कृषस्व') = इन आदेशों में स्पष्ट है, 'जुआ न खेलो, खेती ही करो'। ३९. (पिशाचेभ्यः विदलकारीम्) = रक्तमांसभोजी मनुष्यों के लिए ऐसे व्यक्ति को नियत करो जो उनमें फूट डाल सके [Splitmaker-वि-दल-कारी] ४०. (यातुधानेभ्यः) = चोर डाकुओं के लिए, प्रजापीड़कों के लिए (कण्टकीकारम्) = नोकदार शस्त्रधारी सैनिकों को सैन्य तैयार करनेवालों को नियत करे। यातुधानों से प्रजारक्षण के लिए कुन्तधारी [Lancers] पुरुषों को नियत करे।
भावार्थ
भावार्थ - राजा ने राष्ट्रोन्नति के लिए विविध पुरुषों को विविध कार्यों में लगाना है। मछियारों से लेकर कुन्तधारियों तक सभी की यथास्थान नियुक्ति करनी है।
मराठी (2)
भावार्थ
हे राजा ! परमेश्वर जसा महात्मा लोकांना दुष्टांपासून दूर करतो व दुष्ट लोक परमेश्वरापासून दूर असतात तसे तूही दुष्टांपासून स्वतःला दूर ठेव किंवा उत्तम शिक्षणाने त्यांना श्रेष्ठ बनव.
विषय
पुन्हा, त्याचविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे जगदीश्वर अथवा हे राजन्, आपण (नदीभ्यः) नद्यांना विकृत वा दूषित करणार्या (पौञ्जिष्ठम्) धानुकाला (धनुर्धर वा पिंजारी याला) (दूर करा), त्या कार्यापासून परावृत्त करा.) (ऋक्षीकाभ्यः) (मार्गाने जाणार्या-येणार्या) स्त्रियांकडे विकृत भावनेने पाहणार्या (नैषादम्) निषाद (कोळी वा नावाडी) च्या पुत्राला आणि (पुरुषव्याघ्राय) व्याघ्राप्रमाणे हिंसक पुरूषाचा जो मित्र त्या (दुर्मदम्) दुष्ट अहंकारी माणसाला (कुठेतरी लांब हाकलून द्या) (गन्धर्वाप्सरोभ्यः) गाणार्या-नाचणार्या स्त्रियांकडे रममाण होणार्या (व्रात्यम्) संस्कारशून्य माणसाला, तसेच (प्रयुग्भ्यः) प्रयोग वा प्रयत्न करणार्या मनुष्याकडे (उन्मतम्) उन्मादावृत्तीने पाहणाऱ्या (त्याचे प्रयत्न अयशस्वी होती, असे कर्म करणार्याला) (कुठे तरी दूर पाठवा) (सर्पदेवजनेभ्यः) सर्प तसेच मूर्खांचे हित करणार्या (अप्रतिपदम्) संशयात्मा मनुष्याला आणि (अयेभ्यः) जे पदार्थ (श्रम व यत्न करून) प्राप्त केले पाहिजेत, त्यांकडे (कितवम्) जुगारी माणसाच्या वृत्तीने वागणार्या (म्हणजे धूर्तपणे वा श्रम न करता प्राप्त करणार्या) माणसाला (दूर हाकलून द्या) (ईर्ष्यतायै) घाबरून थरथरत असलेल्या मनुष्याला (अकितवम्) जुगार खेळण्याकडे प्रवृत्त करणार्या तसेच (पिशाचेभ्यः) दुराचारामुळे ज्यांची सत्ववृत्ती नष्ट झाली आहे, अथवा रक्तासह कच्चे मांस खाणार्या माणसाला (दूर हाकला) (विदलकारीम्) (मांसाचे वा जीवंत माणसाला मारून) त्याचे तुकडे-तुकडे करणाया स्त्रीला आणि (यातुधानेभ्यः) रस्त्यावर प्रवाशांना लुटून, लुबाडून धन एकत्रित करणार्या लुटारूंना मदत करणार्या स्त्रीला तसेच (कण्टकीकारीम्) मार्गात काटे पेरणार्या स्त्रीला (आमच्या राज्यातून दूर कुठेतरी हाकलून द्या, अशी आम्हा नागरिकांची परमेश्वराला व राजाला प्रार्थना आहे.) ॥8॥
भावार्थ
भावार्थ - हे राजन्, ज्याप्रमाणे परमेश्वर महात्माजनांना दुर्जनांपासून दूर ठेवतो अथवा जसे दुर्जन परमेश्वरापासून (त्याच्या भक्ती, उपासनादीपासून) दूर असतात, तसे आपण दुष्टांपासून दूर रहा अथवा दुष्टांना आपल्यापासून दूर ठेवा (दुष्ट आणि स्वार्था मंत्री, अधिकारी यांना जवळ ठेवू नका) अथवा दुष्टांना सुशिक्षित करून सन्मार्गावर आणा ॥8॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, cast aside the vile man who pollutes rivers ; Nishadas son, hankering after libidinous women ; a degraded arrogant man, friend of a person harmful like a tiger : an uneducated person attached to low dancing and singing women ; the demented, given to the application of; magical rites ; an untrustworthy person who befriends the serpents and the fools ; a gambler who acquires wealth by unlawful means ; a non-gambler who creates unnecessary excitement ; a woman who creates split amongst the Pishachas, the thorny woman who favours the freebooters.
Meaning
For the rivers, the fisherman; for the fast she- bears, the forester; for the tiger-man, the drunken fool; for the musicians and dancers, the brute; for the farmers, the demented; for the snakes and nobles, the neurotic; for the desirables, the gambler; for the retiring, the non¬ gambler; for the frustrated, the cynic; for travellers, the thorns; for the sake of these former ones, keep off the latter ones.
Translation
To work on rivers a fisherman. (1) To boats a boatman’s son. (2) To a male tiger a dare-devil. (3) To singers and dancing women an outcaste. (4) To experimentation a demented person. (5) To snake-charmers and spirit-callers a juggler. (6) To dice-playing a gambler. (7) To industrious work a non-gambler. (8) To those who eat the flesh of dead a bamboo-splitter woman. (9) To tormenters a woman working with thorns. (10)
Notes
Nadibhyaḥ, for working on rivers. Rkṣikābhyaḥ, for boats. Also, a class of evil spirits men tioned in the Atharva Veda XII. 1. 49 in connection with lions, tigers, hyenas and wolves. (Griffith). Puruşa-vyāghra, a tiger-man. Gandharva, singer. Apsaras, dancing girl. Vratya, uncultured person. Also, the chief of a band of nomad non-conformists of Aryan extraction, but ab solutely independent and not following the Aryan or Brāhmanist way of life. Prayug, experimentation; one who experiments. Apratipadam, a dare-devil. Ayebhyaḥ, for dice-playing. Iryatayai, for excitement. Bidalakārīm, वशंविदारिणीं, a bamboo-splitter woman. Kantakikārim, who works with thorns or makes combs.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা রাজন্! আপনি (নদীভ্যঃ) নদীগুলির বিনাশ হেতু প্রবৃত্ত (পৌঞ্জিষ্ঠম্) ধানুকীকে (ঋক্ষীকাভ্যঃ) গমনকারিণী স্ত্রীর অর্থে প্রবৃত্ত (নৈষাদম্) নিষাদের পুত্রকে (পুরুষব্যাঘ্রায়) ব্যাঘ্রতুল্য হিংসক পুরুষের হিতকারী (দুর্মদম্) দুষ্ট অভিমানীকে (গন্ধর্বাপ্সরীভ্যঃ) গায়নকারিণী, নৃত্যকারিণী স্ত্রীদের জন্য প্রবৃত্ত (ব্রাত্যম্) সংস্কাররহিত মনুষ্যকে (প্রয়ুগ্ভঃ) প্রয়োগকারীদের জন্য প্রবৃত্ত (উন্মত্তম্) উন্মাদ রুগীকে (সর্পদেবজনেভ্যঃ) সর্প তথা মুর্খদের জন্য হিতকারী (অপ্রতিপদম্) সংশয়াত্মাকে (অয়েভ্যঃ) যে পদার্থ প্রাপ্ত করাহয়, তাহার জন্য প্রবৃত্ত (কিতবম্) দ্যুতক্রীড়াকারীকে (ঈর্য়তায়ৈ) কম্পনের জন্য প্রবৃত্ত (অকিতবম্) দ্যুতক্রীড়া না করে যাহারা তাহাদেরকে (পিশাচেভ্যঃ) দুষ্টাচার করিবার ফলে যাহাদের আশা নষ্ট হইয়া গিয়াছে অথবা রুধির সিক্ত কাঁচা মাংস খাওয়ার জন্য প্রবৃত্ত (বিদলকারীম্) পৃথক পৃথক অংশ করে যে তাহাকে এবং (য়াতু ধানেভ্যঃ) চাহিলে যাহাদের ধন আইসে তাহাদের জন্য প্রবৃত্ত হওয়া (কন্টকীকারীম্) কন্টক বপনকারীদেরকে পৃথক করুন ॥ ৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে রাজন্! যেমন পরমেশ্বর দুষ্টদিগের হইতে মহাত্মাদেরকে দূরে নিবাস করায় এবং দুষ্টগণ পরমেশ্বর হইতে দূরে অবস্থান করে, সেইরূপ আপনি দুষ্টদের হইতে দূরে থাকুন এবং নিজের হইতে দুষ্টদিগকে দূরে রাখুন অথবা সুশিক্ষা দ্বারা শ্রেষ্ঠ করুন ॥ ৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ন॒দীভ্যঃ॑ পৌঞ্জি॒ষ্ঠমৃ॒ক্ষীকা॑ভ্যো॒ নৈষা॑দং পুরুষব্যা॒ঘ্রায়॑ দু॒র্মদং॑ গন্ধর্বাপ্স॒রোভ্যো॒ ব্রাত্যং॑ প্র॒য়ুগ্ভ্য॒ऽ উন্ম॑ত্তꣳ সর্পদেবজ॒নেভ্যোऽপ্র॑তিপদ॒ময়ে॑ভ্যঃ কিত॒বমী॒র্য়তা॑য়া॒ऽঅকি॑তবং পিশা॒চেভ্যো॑ বিদলকা॒রীং য়া॑তু॒ধানে॑ভ্যঃ কণ্টকীকা॒রীম্ ॥ ৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নদীভ্য ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । কৃতিশ্ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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