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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    उ॒प॒ह्व॒रे गि॑री॒णा स॑ङ्ग॒मे च॑ न॒दीना॑म्। धि॒या विप्रो॑ अजायत॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ह्व॒र इत्यु॑ऽपह्व॒रे। गि॒री॒णाम्। स॒ङ्ग॒म इति॑ सम्ऽग॒मे। च॒। न॒दीना॑म्। धि॒या। विप्रः॑ अ॒जा॒य॒त॒ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपह्वरे गिरीणाँ सङ्गमे च नदीनाम् । धिया विप्रोऽअजायत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपह्वर इत्युऽपह्वरे। गिरीणाम्। सङ्गम इति सम्ऽगमे। च। नदीनाम्। धिया। विप्रः अजायत॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 15
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    अन्वयः - यो मनुष्यो गिरीणामुपह्वरे नदीनां च सङ्गमे योगेनेश्वरं विचारेण विद्यां चोपासीत स धिया विप्रो अजायत॥१५॥

    पदार्थः -
    (उपह्वरे) निकटे (गिरीणाम्) शैलानाम् (सङ्गमे) मेलने (च) (नदीनाम्) (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (विप्रः) मेधावी। विप्र इति मेधाविनाम॥ (निघं॰ ३। १५॥) (अजायत) जायते॥१५॥

    भावार्थः - ये विद्वांसः पठित्वैकान्ते विचारयन्ति ते योगिन इव प्राज्ञा भवन्ति॥१५॥

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