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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    मध्वा॑ य॒ज्ञं न॑क्षसे प्रीणा॒नो नरा॒शꣳसो॑ऽ अग्ने। सु॒कृद्दे॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मध्वा॑। य॒ज्ञम्। न॒क्ष॒से॒। प्री॒णा॒नः। नरा॒शꣳसः॑। अ॒ग्ने॒। सु॒कृदिति॑ सु॒ऽकृत्। दे॒वः। स॒वि॒ता। वि॒श्ववा॑र॒ इति॑ वि॒श्वऽवा॑रः ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मध्वा यज्ञन्नक्षसे प्रीणानो नराशँसो अग्ने । सुकृद्देवः सविता विश्ववारः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मध्वा। यज्ञम्। नक्षसे। प्रीणानः। नराशꣳसः। अग्ने। सुकृदिति सुऽकृत्। देवः। सविता। विश्ववार इति विश्वऽवारः॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 13
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    Meaning -
    Agni, with honey sweets you come to yajna, Agni, loved and inspiring, celebrated by yajniks, benevolent, brilliant, creator and sustainer, and universal treasure of life’s wealth.

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