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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 21
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - विराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    वन॑स्प॒तेऽव॑ सृजा॒ ररा॑ण॒स्त्मना॑ दे॒वेषु॑।अ॒ग्निर्ह॒व्यꣳ श॑मि॒ता सू॑दयाति॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वन॑स्पते। अव॑। सृ॒ज॒। ररा॑णः। त्मना॑। दे॒वेषु॑। अ॒ग्निः। ह॒व्यम्। श॒मि॒ता। सू॒द॒या॒ति॒ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनस्पतेवसृजा रराणस्त्मना देवेषु । अग्निर्हव्यँ शमिता सूदयाति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वनस्पते। अव। सृज। रराणः। त्मना। देवेषु। अग्निः। हव्यम्। शमिता। सूदयाति॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 21
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    Meaning -
    Vanaspati, scholar and researcher of the science of yajna, just as the holy fire of peaceful yajna refines and universalizes the holy materials, so you, rejoicing at heart among noble and generous scholars, create refined and powerful holy materials for the fire of national yajnas of production and purification.

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