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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 23
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - वाग्विद्युतौ देवते छन्दः - आस्तार पङ्क्ति, स्वरः - पञ्चमः
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    सम॑ख्ये दे॒व्या धि॒या सं दक्षि॑णयो॒रुच॑क्ष॒सा। मा म॒ऽआयुः॒ प्रमो॑षी॒र्मोऽअ॒हं तव॑ वी॒रं वि॑देय॒ तव॑ देवि स॒न्दृशि॑॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। अ॒ख्ये॒। दे॒व्या। धि॒या। सम्। दक्षि॑णया। उ॒रुच॑क्ष॒सेत्यु॒रुऽच॑क्षसा। मा। मे॒। आयुः॑। प्र। मो॒षीः॒। मोऽइति॒ मो। अ॒हम्। तव॑। वी॒रम्। वि॒दे॒य॒। तव॑। देवि॒। संदृशीति॑ स॒म्ऽदृशि॑ ॥२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समख्ये देव्या धिया सन्दक्षिणयोरुचक्षसा मा म आयुः प्र मोषीर्मा अहन्तव वीरँविदेय तव देवि सन्दृशि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। अख्ये। देव्या। धिया। सम्। दक्षिणया। उरुचक्षसेत्युरुऽचक्षसा। मा। मे। आयुः। प्र। मोषीः। मोऽइति मो। अहम्। तव। वीरम्। विदेय। तव। देवि। संदृशीति सम्ऽदृशि॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 23
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    Meaning -
    With a vision and intelligence, inspired, enlightened and versatile, precise, scientific and practical, I clearly see the divine gifts of natural energy and the voice of the Veda, and describe and show them applied and enacted in actual life. May this energy and this voice never hurt my life. May I never neglect or lose it. May I never be unfair to your heroes. You too never be unjust to my heroes.

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