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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - पुरोविराट्पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    यामिन्द्रे॑ण सं॒धां स॒मध॑त्था॒ ब्रह्म॑णा च बृहस्पते। तया॒हमि॑न्द्रसं॒धया॒ सर्वा॑न्दे॒वानि॒ह हु॑व इ॒तो ज॑यत॒ मामुतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । इन्द्रे॑ण । स॒म्ऽधाम् । स॒म्ऽअध॑त्था: । ब्रह्म॑णा । च॒ । बृ॒ह॒स्प॒ते॒ । तया॑ । अ॒हम् । इ॒न्द्र॒ऽसं॒धया॑ । सर्वा॑न् । दे॒वान् । इ॒ह । हु॒वे॒ । इ॒त: । ज॒य॒त॒ । मा । अ॒मुत॑: ॥१२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यामिन्द्रेण संधां समधत्था ब्रह्मणा च बृहस्पते। तयाहमिन्द्रसंधया सर्वान्देवानिह हुव इतो जयत मामुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । इन्द्रेण । सम्ऽधाम् । सम्ऽअधत्था: । ब्रह्मणा । च । बृहस्पते । तया । अहम् । इन्द्रऽसंधया । सर्वान् । देवान् । इह । हुवे । इत: । जयत । मा । अमुत: ॥१२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़े-बड़ों के रक्षक राजन्] (यां सन्धाम्) जिस प्रतिज्ञा को (इन्द्रेण) प्रत्येक जीव के साथ (च) और (ब्रह्मणा) ब्रह्म [परमात्मा] के साथ (समधत्थाः) तूने ठहराया है। (अहम्) मैं [प्रजाजन] (तया) उस (इन्द्रसन्धया) प्राणियों के साथ प्रतिज्ञा से (सर्वान्) सब (देवान्) विजय चाहनेवाले लोगों को (इह) यहाँ (हुवे) बुलाता हूँ−“(इतः) इस ओर से (जयत) जीतो, (अमुतः) उस ओर से (मा) मत [जीतो]” ॥९॥

    भावार्थ - जैसे राजा प्राणियों की रक्षा के लिये परमात्मा को साक्षी करके प्रतिज्ञा करता है, वैसे ही प्रजागण निष्कपट होकर अपने वीरों से उसका सहाय करें और वैरियों से न मिलें ॥९॥

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