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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नि उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    यः पृ॑थि॒वींबृह॒स्पति॑म॒ग्निं ब्र॑ह्म॒ वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । पृ॒थि॒वीम् । बृह॒स्पति॑म् । अ॒ग्निम् । ब्रह्म॑ । वेद॑ ॥१०.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः पृथिवींबृहस्पतिमग्निं ब्रह्म वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । पृथिवीम् । बृहस्पतिम् । अग्निम् । ब्रह्म । वेद ॥१०.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (यः) जो [पुरुष] (पृथिवीम्) पृथिवी [पृथिवी के राज्य] को (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े प्राणियों कारक्षक गुण, और (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूह को (अग्निम्) अग्नि [अग्निसमानतेजोमय] (वेद) जानता है ॥९॥

    भावार्थ - मनुष्य प्रजापालक औरअतिथिसत्कारक होकर वेदज्ञानियों के साथ विराजकर ब्रह्मवर्चसी होवे ॥८, ९॥

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