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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 12/ मन्त्र 6
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    न दे॒वेष्वावृ॑श्चते हु॒तम॑स्य भवति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । दे॒वेषु॑ । आ । वृ॒श्च॒ते॒ । हु॒तम् । अ॒स्य॒ । भ॒व॒ति॒ ॥१२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न देवेष्वावृश्चते हुतमस्य भवति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । देवेषु । आ । वृश्चते । हुतम् । अस्य । भवति ॥१२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 12; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    वह (देवेषु) विद्वानोंके बीच (आ) थोड़ा भी (न वृश्चते) दोषी नहीं होता है, [तब] (अस्य) उस [गृहस्थ] का (हुतम्) यज्ञ (भवति) हो जाता है ॥६॥

    भावार्थ - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

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