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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 12/ मन्त्र 5
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    प्र पि॑तृ॒याणं॒पन्थां॑ जानाति॒ प्र दे॑व॒यान॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । पि॒तृ॒ऽयान॑म् । पन्था॑म् । जा॒ना॒ति॒ । प्र । दे॒व॒ऽयान॑म् ॥१२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र पितृयाणंपन्थां जानाति प्र देवयानम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । पितृऽयानम् । पन्थाम् । जानाति । प्र । देवऽयानम् ॥१२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 12; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (पितृयाणम्) पितरों [पालनकर्ता बड़े लोगों] के चलने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र) भले प्रकार (जानाति) जान लेता है, (देवयानम्) और देवताओं [विद्वानों] के चलने योग्य [मार्ग]को (प्र) भले प्रकार [जान लेता है] ॥५॥

    भावार्थ - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

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