अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 20
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदासुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
म॒न्युना॑न्ना॒देनान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठम॒न्युना॑ । अ॒न्न॒ऽअ॒देन॑ । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१४.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
मन्युनान्नादेनान्नमत्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठमन्युना । अन्नऽअदेन । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद॥१४.२०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 20
विषय - अतिथिके उपकार का उपदेश।
पदार्थ -
वह [अतिथि] (अन्नादेन)जीवनरक्षक (मन्युना) ज्ञान से (अन्नम्) जीवन की (अत्ति) रक्षा करता है, (यः) जो (एवम्) व्यापक परमात्मा को (वेद) जानता है ॥२०॥
भावार्थ - मन्त्र १, २ के समान॥१९, २०॥
टिप्पणी -
१९, २०−(देवान्)विदुषः पुरुषान् (ईशानः) समर्थः (मन्युम्) यजिमनिशुन्धि०। उ० ३।२०। मनज्ञाने-युच्। मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः क्रोधकर्मणो वधकर्मणो वा-निरु०१०।२९। ज्ञानम्। प्रकाशम् (मन्युना) ज्ञानेन। अन्यत् पूर्ववत्-म० १, २ ॥