अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 24
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदासुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ब्रह्म॑णान्ना॒देनान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑णा । अ॒न्न॒ऽअ॒देन॑ । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणान्नादेनान्नमत्ति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मणा । अन्नऽअदेन । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद ॥१४.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 24
विषय - अतिथिके उपकार का उपदेश।
पदार्थ -
वह [अतिथि] (अन्नादेन)जीवनरक्षक (ब्रह्मणा) परब्रह्म जगदीश्वर के साथ (अन्नम्) जीवन की (अत्ति) रक्षाकरता है, (यः) जो (एवम्) व्यापक परमात्मा को (वेद) जानता है ॥२४॥
भावार्थ - मन्त्र १, २ के समान॥२३, २४॥
टिप्पणी -
२३, २४−(सर्वान्)समस्तान् (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (परमेष्ठी) सर्वोपरिपदस्थः (ब्रह्म)परमात्मानम् (ब्रह्मणा) परमात्मना सह। अन्यत् पूर्ववत्-म० १, २ ॥