अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 12
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदाष्टिः
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
ब्रह्म॑ प्र॒जाप॑तिर्धा॒ता लो॒का वेदाः॑ सप्तऋ॒षयो॒ऽग्नयः॑। तैर्मे॑ कृ॒तं स्व॒स्त्यय॑न॒मिन्द्रो॑ मे॒ शर्म॑ यच्छतु ब्र॒ह्मा मे॒ शर्म॑ यच्छतु। विश्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु॒ सर्वे॑ मे दे॒वाः शर्म॑ यच्छन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑। प्र॒जाऽप॑तिः। धा॒ता। लो॒काः। वे॒दाः। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। अ॒ग्नयः॑। तैः। मे॒। कृ॒तम्। स्व॒स्त्यय॑नम्। इन्द्रः॑। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। ब्र॒ह्मा। मे॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। विश्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒। सर्वे॑। मे॒। दे॒वाः। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒ ॥९.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्म प्रजापतिर्धाता लोका वेदाः सप्तऋषयोऽग्नयः। तैर्मे कृतं स्वस्त्ययनमिन्द्रो मे शर्म यच्छतु ब्रह्मा मे शर्म यच्छतु। विश्वे मे देवाः शर्म यच्छन्तु सर्वे मे देवाः शर्म यच्छन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्म। प्रजाऽपतिः। धाता। लोकाः। वेदाः। सप्तऽऋषयः। अग्नयः। तैः। मे। कृतम्। स्वस्त्ययनम्। इन्द्रः। मे। शर्म। यच्छतु। ब्रह्मा। मे। शर्म। यच्छतु। विश्वे। मे। देवाः। शर्म। यच्छन्तु। सर्वे। मे। देवाः। शर्म। यच्छन्तु ॥९.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 12
विषय - मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
(ब्रह्म) यत्र, (प्रजापतिः) प्रजापालक [इन्द्रियादि का रक्षक] और (धाता) पोषक [जीवात्मा], (लोकाः) सब लोक [पृथिवी आदि] (वेदाः) ऋग्वेद आदि चारों वेद, (सप्तऋषयः) सात ऋषि [कान, आँख, नाक, जिह्वा, त्वचा पाँच ज्ञानेन्द्रिय, मन और बुद्धि], और (अग्नयः) अग्नि [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक पराक्रम] [जो हैं]। (तैः) उन करके (मे) मेरे लिये (स्वस्त्ययनम्) कल्याण का मार्ग (कृतम्) बनाया गया, है (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे, (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सब से बड़ा परमात्मा] (मे) मेरे लिये (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे ॥१२॥
भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की सृष्टि के बीच वेद आदि शास्त्र द्वारा संसार के अन्न आदि पदार्थों को इन्द्रियों और मन बुद्धि द्वारा यथावत् परीक्षा करके काम में लावें, और परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए सुख प्राप्त करें ॥१२॥
टिप्पणी -
१२−(ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (प्रजापतिः) इन्द्रियादिप्रजानां पालकः (धाता) पोषको जीवात्मा (लोकाः) पृथिव्यादयः (वेदाः) ऋग्वेदादयश्चत्वारो वेदाः (सप्तऋषयः) मनोबुद्धिसहितानि श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्त्वग्रूपाणि पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि (अग्नयः) म० ११ (तैः) पूर्वोक्तैः (मे) मह्यम् (कृतम्) निष्पादितम् (स्वस्त्ययनम्) कल्याणमार्गः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (मे) (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा। अन्यत् पूर्ववत् ॥