अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शा॒न्तानि॑ पूर्वरू॒पाणि॑ शा॒न्तं नो॑ अस्तु कृताकृ॒तम्। शा॒न्तं भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ सर्व॑मे॒व शम॑स्तु नः ॥
स्वर सहित पद पाठशा॒न्तानि॑। पू॒र्व॒ऽरू॒पाणि॑। शा॒न्तम्। नः॒। अ॒स्तु॒। कृ॒त॒ऽअ॒कृ॒तम्। शा॒न्तम्। भू॒तम्। च॒। भव्य॑म्। च॒। सर्व॑म्। ए॒व। शम्। अ॒स्तु॒। नः॒ ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शान्तानि पूर्वरूपाणि शान्तं नो अस्तु कृताकृतम्। शान्तं भूतं च भव्यं च सर्वमेव शमस्तु नः ॥
स्वर रहित पद पाठशान्तानि। पूर्वऽरूपाणि। शान्तम्। नः। अस्तु। कृतऽअकृतम्। शान्तम्। भूतम्। च। भव्यम्। च। सर्वम्। एव। शम्। अस्तु। नः ॥९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
विषय - मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
(पूर्वरूपाणि) पूर्व रूप [आरम्भ के चिह्न] (शान्तानि) शान्तियुक्त, (कृताकृतम्) किया हुआ और न किया हुआ [मन में विचारा हुआ कर्म] (नः) हमारे लिये (शान्तम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे। (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (शान्तम्) शान्तियुक्त (च) और (सर्वम्) सब (एव) ही (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तियुक्त (अस्तु) होवे ॥२॥
भावार्थ - यह कार्य कैसे हुआ वा कैसे होगा, हमने किया है वा करना विचारा है, उस का फल क्या होगा, पूर्वजों के कर्म का क्या फल हुआ, आगे क्या होगा, ऐसा सोचकर मनुष्य उचित कर्तव्य करता हुआ आनन्द प्राप्त करे ॥२॥
टिप्पणी -
२−(शान्तानि) शान्तियुक्तानि। सुखकराणि (पूर्वरूपाणि) प्रथमलक्षणानि। आरम्भचिह्नानि (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (कृताकृतम्) कृतं निष्पादितम् अकृतमनिष्पादितं मनसि निर्धारितं कर्म (शान्तम्) (भूतम्) अतीतम् (च) (भव्यम्) भविष्यत्। अनागतम् (च) (सर्वम्) (एव) निश्चयेन (शम्) शान्तिकरम् (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥