अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॒ भूमि॑र्वेप्यमा॒ना शमु॒ल्का निर्ह॑तं च॒ यत्। शं गावो॒ लोहि॑तक्षीराः॒ शं भूमि॒रव॑ तीर्य॒तीः ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। भूमिः॑। वे॒प्य॒मा॒ना। शम्। उ॒ल्का। निःऽह॑तम्। च॒। यत्। शम्। गावः॑। लोहि॑तऽक्षीराः। शम्। भूमिः॑। अव॑। ती॒र्य॒तीः ॥९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो भूमिर्वेप्यमाना शमुल्का निर्हतं च यत्। शं गावो लोहितक्षीराः शं भूमिरव तीर्यतीः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। भूमिः। वेप्यमाना। शम्। उल्का। निःऽहतम्। च। यत्। शम्। गावः। लोहितऽक्षीराः। शम्। भूमिः। अव। तीर्यतीः ॥९.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 8
विषय - मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
(नः) हमारे लिये (वेप्यमाना) काँपती हुई (भूमिः) भूमि (शम्) शान्तिदायक, (च) और (यत्) जो कुछ (उल्का) उल्काओं से [रेखाकार आकाश से गिरते हुए तेजपुञ्जों, टूटते हुए तारों से] (निर्हतम्) नष्ट किया गया है, [वह] (शम्) शान्तिदायक [होवे]। (लोहितक्षीराः) रुधिरयुक्त दूध देनेवाली (गावः) गौएँ (शम्) शान्तिदायक [होवें] और (अव तीर्यतीः) धसकती हुई (भूमिः) भूमि (शम्) शान्तिदायक [होवे] ॥८॥
भावार्थ - दूरदर्शी मनुष्य भूकम्प, तारे टूटने, रोग के कारण दूध बिगड़ने, दलदल से पृथिवी के बैठ जाने आदि विघ्नों से बचने का उपाय करके सुखी होवें ॥८॥
टिप्पणी -
८−(शम्) शान्तिप्रदा (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (वेप्यमाना) कम्पमाना (शम्) (उल्का) उल दाहे-क प्रत्ययः, विभक्तेर्डा। उल्काभिः। रेखाकारे गगनात् पतत्तेजःपुञ्जैः (निर्हतम्) विनष्टम् (च) (यत्) यत् किञ्चित् (शम्) (गावः) धेनवः (लोहितक्षीराः) रुधिरयुक्तदुग्धोपेताः (शम्) (भूमिः) (अवतीर्यतीः) तॄ प्लवनतरणयोः−शतृ, ङीप्। बहुवचनं छान्दसम्। अवतीर्यती। अवतीर्यमाणा जलबाहुल्येनाधोगमना ॥