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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 8

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - क्षेत्रियरोगनाशन

    उद॑गातां॒ भग॑वती वि॒चृतौ॒ नाम॒ तार॑के। वि क्षे॑त्रि॒यस्य॑ मुञ्चतामध॒मं पाश॑मुत्त॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । अ॒गा॒ता॒म् । भग॑वती॒ इति॒ भग॑ऽवती । वि॒ऽचृतौ॑ । नाम॑ । तार॑के॒ इति॑ ।वि । क्षे॒त्रि॒यस्य॑ । मु॒ञ्च॒ता॒म् । अ॒ध॒मम् । पाश॑म् । उ॒त्ऽत॒मम् ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदगातां भगवती विचृतौ नाम तारके। वि क्षेत्रियस्य मुञ्चतामधमं पाशमुत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । अगाताम् । भगवती इति भगऽवती । विऽचृतौ । नाम । तारके इति ।वि । क्षेत्रियस्य । मुञ्चताम् । अधमम् । पाशम् । उत्ऽतमम् ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 8; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (भगवती=०–त्यौ) दो ऐश्वर्यवाले (विचृतौ) [अन्धकार से] छुड़ानेहारे (नाम) प्रसिद्ध (तारके) तारे [सूर्य और चन्द्रमा] (उदगाताम्) उदय हुए हैं। वे दोनों (क्षेत्रियस्य) शरीर वा वंश के दोष वा रोग के (अधमम्) नीचे और (उत्तमम्) ऊँचे (पाशम्) पाश को (वि+मुच्यताम्) छुड़ा देवें ॥१॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य और चन्द्रमा संसार में उदय होकर अपने ऊपर और नीचे के अन्धकार का नाश करके प्रकाश करते हैं, इसी प्रकार मनुष्य अपने छोटे और बड़े मानसिक, शारीरिक और वांशिक रोगों तथा दोषों को निवृत्त करके स्वस्थ और प्रतापी हों ॥१॥

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