Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 11

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-११

    स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्रः॑ ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम्। हि॑र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒सान॑ । अत्या॑न् । उ॒त ।सूर्य॑म् । स॒सा॒न॒ । इन्द्र॑: । स॒सा॒न॒ । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् । गाम् ॥ हि॒र॒ण्यय॑म् । उ॒त । भोग॑म् । स॒सा॒न॒ । ह॒त्वी । दस्यू॑न् । प्र । आर्य॑म् । वर्ण॑म् । आ॒व॒त् ॥११.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ससानात्याँ उत सूर्यं ससानेन्द्रः ससान पुरुभोजसं गाम्। हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्यं वर्णमावत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ससान । अत्यान् । उत ।सूर्यम् । ससान । इन्द्र: । ससान । पुरुऽभोजसम् । गाम् ॥ हिरण्ययम् । उत । भोगम् । ससान । हत्वी । दस्यून् । प्र । आर्यम् । वर्णम् । आवत् ॥११.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] ने (अत्यान्) घोड़ों को (ससान) सेवा है (उत) और (सूर्यम्) सूर्य [समान प्रतापी वीर] को (ससान) सेवा है, (पुरुभोजसम्) बहुत पालन करनेवाली (गाम्) पृथिवी [वा गौ] को (ससान) सेवा है। (हिरण्ययम्) सुवर्ण (उत) और (भोगम्) भोग [उत्तम पदार्थों के उपयोग] को (ससान) सेवा है, (दस्यून्) साहसी चोरों को (हत्वी) मारकर (वर्णम्) स्वीकार करने योग्य (आर्यम्) आर्य [श्रेष्ठ धर्मात्मा पुरुष] की (प्र आवत्) रक्षा की है ॥९॥

    भावार्थ - जो मनुष्य उत्तम घोड़ों, श्रेष्ठ वीर पुरुषों, राज्य, सुवर्ण आदि धन, और अन्न आदि भोगों के रखने में समर्थ होता है, वही दुष्टों का नाश कर शिष्टों की रक्षा करता है ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top