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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-११
    54

    स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्रः॑ ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम्। हि॑र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒सान॑ । अत्या॑न् । उ॒त ।सूर्य॑म् । स॒सा॒न॒ । इन्द्र॑: । स॒सा॒न॒ । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् । गाम् ॥ हि॒र॒ण्यय॑म् । उ॒त । भोग॑म् । स॒सा॒न॒ । ह॒त्वी । दस्यू॑न् । प्र । आर्य॑म् । वर्ण॑म् । आ॒व॒त् ॥११.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ससानात्याँ उत सूर्यं ससानेन्द्रः ससान पुरुभोजसं गाम्। हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्यं वर्णमावत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ससान । अत्यान् । उत ।सूर्यम् । ससान । इन्द्र: । ससान । पुरुऽभोजसम् । गाम् ॥ हिरण्ययम् । उत । भोगम् । ससान । हत्वी । दस्यून् । प्र । आर्यम् । वर्णम् । आवत् ॥११.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] ने (अत्यान्) घोड़ों को (ससान) सेवा है (उत) और (सूर्यम्) सूर्य [समान प्रतापी वीर] को (ससान) सेवा है, (पुरुभोजसम्) बहुत पालन करनेवाली (गाम्) पृथिवी [वा गौ] को (ससान) सेवा है। (हिरण्ययम्) सुवर्ण (उत) और (भोगम्) भोग [उत्तम पदार्थों के उपयोग] को (ससान) सेवा है, (दस्यून्) साहसी चोरों को (हत्वी) मारकर (वर्णम्) स्वीकार करने योग्य (आर्यम्) आर्य [श्रेष्ठ धर्मात्मा पुरुष] की (प्र आवत्) रक्षा की है ॥९॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य उत्तम घोड़ों, श्रेष्ठ वीर पुरुषों, राज्य, सुवर्ण आदि धन, और अन्न आदि भोगों के रखने में समर्थ होता है, वही दुष्टों का नाश कर शिष्टों की रक्षा करता है ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(ससान) म० ८। सेवितवान्। उपयुक्तवान् (अत्यान्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अत सातत्यगमने-यक्। अत्योऽश्वनाम-निघ० १।१४। अश्वान् (उत) अपि च (सूर्यम्) सूर्यमिव प्रतापिनं वीरम् (ससान) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः (ससान) (पुरुभोजसम्) बहुपालयित्रीम् (गाम्) भूमिं धेनुं वा (हिरण्ययम्) सुवर्णादिधनम् (उत) (भोगम्) उत्तमपदार्थोपयोगम् (हत्वी) स्नात्व्यादयश्च। पा० ७।१।४९। इति ईकारः। हत्वा (दस्यून्) साहसिकान्। चोरान् (प्र) प्रकर्षेण (आर्यम्) श्रेष्ठं धार्मिकम् (वर्णम्) वरणीयम् (आवत्) अव रक्षणे-लङ्। अरक्षत् ॥

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    विषय

    दस्युहनन आर्यंरक्षण

    पदार्थ

    १. (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (अत्यान) = अतन [गति] के योग्य-गति के साधनभूत अश्वों को [तुरग-गज-उष्ट्र आदि वाहनों को] (ससान) = प्राणियों के व्यवहार के लिए देते हैं। उत और (सूर्यम्) = सबके प्रकाशक सूर्य को (ससान) = देते हैं। वे प्रभु पुरुभोजसम्-प्राणियों का खूब ही पालन करनेवाली-दूध-दही आदि अनेक भोगसाधनों को प्राप्त करानेवाली गाम्-गौ को (ससान) = देते है २. उत और हिरण्ययम्-हिरण्य-विकारात्मक भोगम्-भोगसाधन कटक-मुकुट आदि को ससान-वे प्रभु देते हैं। वे प्रभु जीवन-यात्रा की पूर्ति के लिए सब साधनों को उपस्थित करके दस्यून् हत्वी-मार्ग में विघातकरूप से प्राप्त होनेवाले दस्युओं [चोर, डाकुओं] को समाप्त करके आर्य वर्णम्-आर्य वर्ण को प्रावत-रक्षित करते हैं-श्रेष्ठ कर्मों में निरत पुरुषों का प्रभु रक्षण करते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक सब साधनों को प्राप्त कराते हैं और मार्ग में विघ्नरूप से उपस्थित होनेवाले दस्युओं का विनाश करके श्रेष्ठ लोगों का रक्षण करते हैं।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः) परमेश्वर ने हमें (अत्यान्) सतत-गतिशील श्वासप्रश्वास (ससान) दिये हैं, (उत) और (सूर्यम्) सूर्य (ससान) दिया है। तथा (पुरुभोजसम्) सबको पालनेवाली (गाम्) पृथिवी (ससान) दी है। (उत) और (हिरण्ययम्) सोना-चान्दी के सदृश (भोगम्) भोगसाधन (ससान) दिये हैं। तथा (दस्यून्) क्षयकारी काम आदि दुर्वासनाओं का (हत्वी) हनन करके (वर्णम्) वरण करने योग्य (आर्यम्) आस्तिकभावना की (प्र आवत्) परमेश्वर ने रक्षा की है।

    टिप्पणी

    [अत्यान्=‘अत्य’ का अर्थ है—सततगतिशील। अश्विनौ का पर्यायवाची शब्द है—‘नासत्यौ’। नासत्यौ के सम्बन्ध में निरुक्त में ‘नासिकाप्रभवौ बभूवतुरिति वा’ (६.३.१३) भी कहा है। नासिका से पैदा होनेवाले हैं ‘श्वास और प्रश्वास’। ‘अश्विनौ’ को ‘देवानां भिषजौ’ भी कहा है। श्वास-प्रश्वास इन्द्रिय आदि दिव्य शक्तियों के भिषक् हैं=चिकित्सक हैं=उनके रोगों के निवारक हैं। शुद्ध श्वास-प्रश्वास शारीरिक-मलों को दूर कर शरीर को स्वस्थ रखते हैं। ‘नासत्यौ’ का अर्थ है—‘नासा+अत्यौ, अर्थात् नासिका में सतत गति करनेवाले, मानो दो अश्व। श्वास-प्रश्वास यावज्जीवन शरीर में या नासिका में सतत गति करते रहते हैं। अत्यः=अश्वः’ (निघं০ १.१४)। वर्णम्=व्रियतेऽसौ वर्णः (निघं০ दयानन्द), अर्थात् वर्ण वह है कि कर्मों द्वारा स्वीकृत किया जाता है, न कि जन्मद्वारा। आर्यम्=‘आर्यः ईश्वरपुत्रः’ (निरु০ ६.५.२६), अर्थात् जो अपने आपको ईश्वर का पुत्र मानता है वह ‘आर्य’ है, अर्थात् आस्तिक भावनावाला। इसलिए आर्यत्व जन्मकृत नहीं, अपितु आस्तिक-भावनाकृत है।]

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    विषय

    परमेश्वर और राजा।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र परमेश्वर हम जीवों को प्रथम (अत्यान्) गतिशील अश्वों के समान इन्द्रियों को (ससान) प्रदान करता है। (उत) और (सूर्यम् ससान) सूर्य, सूर्य के समान ज्ञानी पुरुष को या आत्मा को या प्रकाश को भी प्रदान करता है। वह (पुरुभोजसम् गाम्) नाना भोग्य पदार्थों से सम्पन्न गौ-माय और पृथ्वी का भी (ससान) हमें प्रदान करता है। वह हमें (हिरण्यम्) हित और रमणीय, सुवर्ण आदि ऐश्वर्य और (भोगम्) भोग-भोग करने की शक्ति और भोग्य पदार्थ भी (ससान) प्रदान करता है और (दस्यून् हत्वा) नाशक दुष्ट पुरुषों को नाश करके (आर्यं वर्णं) श्रेष्ठ वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद आदि उत्तम कार्य करने वाले सच्चरित्र पुरुषों की (प्र अवत्) अच्छी प्रकार रक्षा करता है। राजा भी—अपने प्रजा को उत्तम घोड़े, उत्तम विद्वान्, भूमि, गौ, हिरण्य, नाना भोग प्रजा को देता और उत्तम श्रेष्ठ वर्ण के आर्य पुरुषों की रक्षा करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra gives us the horses and other modes of fast travel. He gives us the sun and enlightenment. He gives us the cow for milk, land and speech, and golden wealth for the sustenance of all. He destroys evil and the wicked and protects the good and virtuous people for the joy of all.

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    Translation

    This mighy fire gives the things which always move, this give the sun, this gives the earth which bears multifarious advantages, it gives gold, it gives the digesting power and this destroying the clouds which create drought and preserves Aryam Varmam, the noble colours.

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    Translation

    This mighty fire gives the things which always move, this give the sun, this gives the earth which bears multifarious advantages, it gives gold, it gives the digesting power and this destroying the clouds which create drought and preserves Aryam Varmam, the noble colors.

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    Translation

    The Fortune-showering God grants us (the souls) the fast-moving organs of the body, as well as the light of knowledge like the Sun. He gives us power of speech, the cow and the earth the sources of enjoyable objects. He showers on us wealth, and all means of enjoyment of life. Destroying the wicked, He protects the good and the virtuous people, like Brahmans, Kshatriya, Vaishya and Shudras and others.

    Footnote

    (a) (9) Others: nishad, as rive kinds of people are sometimes mentioned, (b) The whole of this sukta can be applied in the case of a king too. (c) cf. Rig., 3.34. (1-11).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(ससान) म० ८। सेवितवान्। उपयुक्तवान् (अत्यान्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अत सातत्यगमने-यक्। अत्योऽश्वनाम-निघ० १।१४। अश्वान् (उत) अपि च (सूर्यम्) सूर्यमिव प्रतापिनं वीरम् (ससान) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः (ससान) (पुरुभोजसम्) बहुपालयित्रीम् (गाम्) भूमिं धेनुं वा (हिरण्ययम्) सुवर्णादिधनम् (उत) (भोगम्) उत्तमपदार्थोपयोगम् (हत्वी) स्नात्व्यादयश्च। पा० ७।१।४९। इति ईकारः। हत्वा (दस्यून्) साहसिकान्। चोरान् (प्र) प्रकर्षेण (आर्यम्) श्रेष्ठं धार्मिकम् (वर्णम्) वरणीयम् (आवत्) अव रक्षणे-लङ्। अरक्षत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [মহাপ্রতাপী পুরুষ] (অত্যান্) ঘোড়াদের (সসান) সেবা করেছে (উত) এবং (সূর্যম্) সূর্য [সমান প্রতাপী বীরকে] (সসান) সেবা করেছে, (পুরুভোজসম্) বহু পালনকারী (গাম্) পৃথিবী [বা গৌ] কে (সসান) সেবা করেছে। (হিরণ্যয়ম্) সুবর্ণ (উত) এবং (ভোগম্) ভোগ [উত্তম পদার্থের উপযোগীতা] (সসান) সেবা করেছে, (দস্যূন্) সাহসী চোরদের (হত্বী) হনন করে (বর্ণম্) স্বীকারযোগ্য (আর্যম্) আর্যের [শ্রেষ্ঠ ধর্মাত্মা পুরুষের] (প্র আবৎ) রক্ষা করেছে ॥৯॥

    भावार्थ

    যে মনুষ্য উত্তম ঘোড়া, শ্রেষ্ঠ বীর পুরুষ, রাজ্য, সুবর্ণ আদি ধন, এবং অন্নাদি রক্ষণে সমর্থ, তিনিই দুষ্টের নাশ করে শিষ্টের রক্ষা করেন ॥৯॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর আমাদের (অত্যান্) সতত-গতিশীল শ্বাসপ্রশ্বাস (সসান) দিয়েছেন/প্রদান করেছেন, (উত) এবং (সূর্যম্) সূর্য (সসান) প্রদান করেছেন/দিয়েছেন। তথা (পুরুভোজসম্) সর্বপালক (গাম্) পৃথিবী (সসান) দিয়েছেন/প্রদান করেছেন। (উত) এবং (হিরণ্যয়ম্) সোনা-রূপার সদৃশ (ভোগম্) ভোগসাধন (সসান) প্রদান করেছেন/দিয়েছেন। তথা (দস্যূন্) ক্ষয়কারী কাম আদি দুর্বাসনা-সমূহের (হত্বী) হনন করে (বর্ণম্) বরণ যোগ্য (আর্যম্) আস্তিকভাবনার (প্র আবৎ) পরমেশ্বর রক্ষা করেছেন।

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