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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 6
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-११
    48

    म॒हो म॒हानि॑ पनयन्त्य॒स्येन्द्र॑स्य॒ कर्म॒ सुकृ॑ता पु॒रूणि॑। वृ॒जने॑न वृजि॒नान्त्सं पि॑पेष मा॒याभि॑र्द॒स्यूँर॒भिभू॑त्योजाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒ह: । म॒हानि॑ । प॒न॒य॒न्ति॒ । अ॒स्य॒ । इन्द्र॑स्य । कर्म॑ । सऽकृ॑ता । पु॒रूणि॑ । वृ॒जने॑न । वृ॒जि॒नान् । सम् । पि॒पे॒ष॒ । मा॒याभि॑:। दस्यू॑न् । अ॒भिभू॑तिऽओजा: ॥११.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महो महानि पनयन्त्यस्येन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरूणि। वृजनेन वृजिनान्त्सं पिपेष मायाभिर्दस्यूँरभिभूत्योजाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मह: । महानि । पनयन्ति । अस्य । इन्द्रस्य । कर्म । सऽकृता । पुरूणि । वृजनेन । वृजिनान् । सम् । पिपेष । मायाभि:। दस्यून् । अभिभूतिऽओजा: ॥११.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (महः) महान् लोग (अस्य) इस (इन्द्रस्य) इन्द्र [महाप्रतापी राजा] के (सुकृता) धर्म से किये हुए (पुरूणि) बहुत से (महानि) महान् [पूजनीय] (कर्म) कर्मों को (पनयन्ति) सराहते हैं। (अभिभूत्योजाः) हरा देनेवाले बल से युक्त [शूर] ने (वृजिनान्) पापी (दस्यून्) साहसी चोरों को (वृजनेन) बल के साथ (मायाभिः) बुद्धियों से (सं पिपेष) पीस डाला ॥६॥

    भावार्थ

    जिस प्रतापी धर्मात्मा राजा की कीर्ति को बड़े-बड़े लोग गाते हों, वह राजा अपनी कीर्ति स्थिर रखने के लिये दुराचारियों का नाश करके प्रजा को सुखी रक्खे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(महः) मह पूजायाम्-क्विप्। महान्तः पुरुषाः (महानि) मह पूजायाम्-अप्। महान्ति (पनयन्ति) छान्दसो ह्रस्वः। पनायन्ति। स्तुवन्ति (अस्य) प्रसिद्धस्य (इन्द्रस्य) महातेजस्विनः पुरुषस्य (कर्म) कर्माणि (सुकृता) धर्मेण सम्पादितानि (पुरूणि) बहूनि (वृजनेन) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। वृजी वर्जने-क्यु। बलेन-निघ० २।९ (वृजिनान्) वृजेः किच्च। उ० २।४७। वृजी वर्जने-इनच्। वृजिन-अर्शआद्यच्। वृजनं पापं तद्वतः। पापिनः पुरुषान् (सं पिपेष) पिष्लृ संचूर्णने-लिट्। सम्यक् चूर्णीचकार (मायाभिः) प्रज्ञाभिः-निघ० ३।९। (दस्यून्) साहसिकान्। उत्कोचकान्। चोरान् (अभिभूत्योजाः) अभिभूतिं पराजयकरमोजा बलं यस्य सः ॥

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    विषय

    वृजन से वृजिन का संपोषण

    पदार्थ

    १. (अस्य) = इस (मह:) = महान्-गुणों से प्रवृद्ध (इन्द्रस्य) = शक्तिशाली कर्मों के करनेवाले प्रभु के (महानि) = महान् (सुकृता) = सुष्टु सम्पादित (पुरुणि) = पालक व पूरक (कर्म) = कर्मों को (पनयन्ति) = स्तोता लोग स्तुत करते हैं। प्रभु के महान् कर्म सचमुच स्तुति के योग्य हैं। २. प्रभु (वृजनेन) = शत्रुओं के आवर्जक बल से [विनाशक बल से] (वृजिनान) = पापरूप असुरों को (संपिपेष) = सम्यक् चूर्ण कर देते हैं। (अभिभूत्योजा:) = शत्रुओं का अभिभव करनेवाले बल से युक्त वे प्रभु (मायाभि:) = अपनी शक्तियों व प्रज्ञानों से (दस्यून) = विनाशक शत्रुओं को [दसु उपक्षये] पीस डालते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु के कर्म महान् व हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं। प्रभु बल से आसुर भावों को पीस डालते हैं, प्राज्ञानों द्वारा दस्युओं का विनाश कर देते हैं।

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    भाषार्थ

    उपासक जन (अस्य) इस (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (महः महानि) महान् के महान् (पुरूणि) नानाविध (सुकृता कर्म) सत्कर्मों का (पनयन्ति) स्तवन करते हैं। (अभिभूत्योजाः) पराभवकारी ओज से सम्पन्न परमेश्वर ने (वृजनेन) निज स्वाभाविक बल द्वारा (मायाभिः) छलकपटों से युक्त (वृजिनान्) पापरूप (दस्यून्) क्षयकारी दुर्भावों और दुष्कर्मों को (सं पिपेष) सम्यक्तया पीस दिया है।

    टिप्पणी

    [वृजन=बल (निघं০ २.९)। उपासक अनुभव कर रहा है कि परमेश्वर ने उसके छल-कपट आदि पापों को नितान्त समाप्त कर दिया है। राष्ट्र का राजा भी पापियों को पीस दे, यह राजनैतिक भावना भी मन्त्रोक्त है।]

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    विषय

    परमेश्वर और राजा।

    भावार्थ

    (अस्य महः इन्द्रस्य) इस महान् परमेश्वर के (पुरुणि) बहुत से (सुकृता) उत्तम रीति से रचे हुए (कर्म) कर्मों की विद्वान् लोग (पनयन्ति) स्तुति करते हैं। (वृजनेन) वर्जन करने वाले, पाप से निवृत्त करने वाले श्रेयो मार्ग से या ज्ञान से (वृजिनान्) वर्जन करने योग्य पापाचारी को (सं पिपेष) विनाश कर देता है और (अभिभूत्योजाः) सर्वत्र सृष्टि उत्पन्न करने वाले या शत्रुनाशक वीर्य सामर्थ्य से युक्त वह (मायाभिः) अपनी मायाओं से, ज्ञानशक्तियों से (दस्यून्) दुष्ट पुरुषों को भी (सं पिपेष) चूर्ण कर डालता है। राजा के पक्ष में—लोग इस समृद्ध राजा के बहुतसे पुण्य कर्मों की स्तुति करते हैं। वह पाप निवारक बल से पापाचारी पुरुषों को और (मायाभिः) ज्ञान कौशल से युक्त अद्भुत शक्तियों से दस्युओं को (संपिषेप) नाश करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Many great and good acts of this mighty Indra, ruler and warrior, are worthy of admiration. Lord of might and splendour, hero of victory, he crushes the guiles and evils of the wicked with his strength, and eliminates the thieves and robbers of society by the force of his tactics and intelligence.

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    Translation

    The learned men lands many glorious functions of this mighty fire. This fire possessing surpassing forces crushes malignancies with its- malignant force and the clouds with natural tricks.

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    Translation

    The learned men lands many glorious functions of this mighty fire. This fire possessing surpassing forces crushes malignancies with its malignant force and the clouds with natural tricks.

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    Translation

    The learned persons praise the great, good deeds of this Almighty Creator, Who possessing overpowering valour grinds to dust all the wicked people by His evil-destroying powers and thoroughly crushes the mischief-mongers by His dextrous acts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(महः) मह पूजायाम्-क्विप्। महान्तः पुरुषाः (महानि) मह पूजायाम्-अप्। महान्ति (पनयन्ति) छान्दसो ह्रस्वः। पनायन्ति। स्तुवन्ति (अस्य) प्रसिद्धस्य (इन्द्रस्य) महातेजस्विनः पुरुषस्य (कर्म) कर्माणि (सुकृता) धर्मेण सम्पादितानि (पुरूणि) बहूनि (वृजनेन) कॄपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। वृजी वर्जने-क्यु। बलेन-निघ० २।९ (वृजिनान्) वृजेः किच्च। उ० २।४७। वृजी वर्जने-इनच्। वृजिन-अर्शआद्यच्। वृजनं पापं तद्वतः। पापिनः पुरुषान् (सं पिपेष) पिष्लृ संचूर्णने-लिट्। सम्यक् चूर्णीचकार (मायाभिः) प्रज्ञाभिः-निघ० ३।९। (दस्यून्) साहसिकान्। उत्कोचकान्। चोरान् (अभिभूत्योजाः) अभिभूतिं पराजयकरमोजा बलं यस्य सः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মহঃ) মহান ব্যক্তিগণ (অস্য) এই (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্রের [মহাপ্রতাপী রাজার] (সুকৃতা) ধর্মপূর্বক কৃত/সম্পাদিত (পুরূণি) বহু (মহানি) মহান [পূজনীয়] (কর্ম) কর্মের (পনয়ন্তি) প্রশংসা করে। (অভিভূত্যোজাঃ) পরাজিতকারীবলসম্পন্ন [বীর] (বৃজিনান্) পাপী (দস্যূন্) সাহসী চোরদের (বৃজনেন) শক্তি সহিত/বলপূর্বক (মায়াভিঃ) বুদ্ধি দ্বারা (সং পিপেষ) পিষ্ট করেছে॥৬॥

    भावार्थ

    যে প্রতাপী ধর্মাত্মা রাজার কীর্তির গুণগান, মহান ব্যক্তিগণ করে, সেই রাজা নিজ কীর্তি স্থির রাখার জন্য দুরাচারীদের নাশ করে প্রজাদের সুখী রাখে/রাখুক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    উপাসকরা (অস্য) এই (ইন্দ্রস্য) পরমেশ্বরের (মহঃ মহানি) মহানের মহান্ (পুরূণি) নানাবিধ (সুকৃতা কর্ম) সৎকর্মের (পনয়ন্তি) স্তবন করে। (অভিভূত্যোজাঃ) পরাভবকারী ওজ/তেজ সম্পন্ন পরমেশ্বর (বৃজনেন) নিজ স্বাভাবিক বল দ্বারা (মায়াভিঃ) ছলকপট যুক্ত (বৃজিনান্) পাপরূপ (দস্যূন্) ক্ষয়কারী দুর্ভাব এবং দুষ্কর্মকে (সং পিপেষ) সম্যকরূপে পিষ্ট করে দিয়েছেন।

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