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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 21/ मन्त्र 3
    सूक्त - सव्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-२१

    शची॑व इन्द्र पुरुकृद्द्युमत्तम॒ तवेदि॒दम॒भित॑श्चेकिते॒ वसु॑। अतः॑ सं॒गृभ्या॑भिभूत॒ आ भ॑र॒ मा त्वा॑य॒तो ज॑रि॒तुः काम॑मूनयीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शची॑ऽव: । इ॒न्द्र॒: । पु॒रु॒ऽकृ॒त् । द्यु॒म॒त्ऽत॒म॒ । तव॑ । इत् । इ॒दम् । अ॒भित॑: । चे॒कि॒ते॒ । वसु॑ ॥ स॒म्ऽगृभ्य॑ । अ॒भि॒ऽभू॒ते॒ । आ । भ॒र॒ । मा । त्वा॒ऽय॒त: । ज॒रि॒तु: । काम॑म् । ऊ॒न॒यी॒: ॥२१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शचीव इन्द्र पुरुकृद्द्युमत्तम तवेदिदमभितश्चेकिते वसु। अतः संगृभ्याभिभूत आ भर मा त्वायतो जरितुः काममूनयीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शचीऽव: । इन्द्र: । पुरुऽकृत् । द्युमत्ऽतम । तव । इत् । इदम् । अभित: । चेकिते । वसु ॥ सम्ऽगृभ्य । अभिऽभूते । आ । भर । मा । त्वाऽयत: । जरितु: । कामम् । ऊनयी: ॥२१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 21; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (शचीवः) हे उत्तम बुद्धिवाले (पुरुकृत्) बहुत कर्मोंवाले (द्युमत्तम) अत्यन्त प्रकाशवाले (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (तव इत्) तेरा ही (इदम्) यह (वसु) धन (अभितः) सब ओर से (चेकिते) जाना गया है। (अतः) इस कारण से, (अभिभूते) हे विजयी ! (संगृभ्य) संग्रह करके (आ भर) तू लाकर भर, (त्वायतः) तेरी चाह करते हुए (जरितुः) स्तुति करनेवाले की (कामम्) आशा को (मा ऊनयीः) मत घटा ॥३॥

    भावार्थ - जो राजा राज्य के सब पदार्थों पर दृष्टि रखकर और उनका सुप्रयोग करके प्रजा की इष्टसिद्धि करता है, वही प्रशंसनीय होता है ॥३॥

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