Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 47/ मन्त्र 8
    सूक्त - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७

    आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑। उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑ । हरी॒ इति॑ । वह॑ताम् । इ॒न्द्र॑ । के॒शिना॑ ॥ उप0951ग । ब्रह्मा॑णि । न॒: । शृ॒णु॒ ॥४७.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा ब्रह्मयुजा हरी वहतामिन्द्र केशिना। उप ब्रह्माणि नः शृणु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । ब्रह्मऽयुजा । हरी इति । वहताम् । इन्द्र । केशिना ॥ उप0951ग । ब्रह्माणि । न: । शृणु ॥४७.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ब्रह्मयुजा) धन के लिये जोड़े गये, (केशिना) सुन्दर केशों [कन्धे आदि के बालों] वाले (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़ों [के समान बल और पराक्रम] (त्वा) तुझको (आ) सब ओर (वहताम्) ले चलें। (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों को (उप) आदर से (शृणु) तू सुन ॥८॥

    भावार्थ - जैसे उत्तम बलवान् घोड़े रथ को ठिकाने पर पहुँचाते हैं, वैसे ही राजा वेदोक्त मार्ग पर चलकर अपने बल और पराक्रम से राज्यभार उठाकर प्रजापालन करे ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top