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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 15/ मन्त्र 12
    सूक्त - अथर्वा देवता - वरुणः छन्दः - पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - वृष्टि सूक्त

    अ॒पो नि॑षि॒ञ्चन्नसु॑रः पि॒ता नः॒ श्वस॑न्तु॒ गर्ग॑रा अ॒पां व॑रु॒णाव॒ नीची॑र॒पः सृ॑ज। वद॑न्तु॒ पृश्नि॑बाहवो म॒ण्डूका॒ इरि॒णानु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प: । नि॒ऽसि॒ञ्चन् । असु॑र: । पि॒ता । न॒: । श्वस॑न्तु । गर्ग॑रा: । अ॒पाम् । व॒रु॒ण॒ । अव॑ । नीची॑: । अ॒प: । सृ॒ज॒ । वद॑न्तु । पृश्नि॑ऽबाहव: । म॒ण्डूका॑: । इरि॑णा । अनु॑ ॥१५.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपो निषिञ्चन्नसुरः पिता नः श्वसन्तु गर्गरा अपां वरुणाव नीचीरपः सृज। वदन्तु पृश्निबाहवो मण्डूका इरिणानु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप: । निऽसिञ्चन् । असुर: । पिता । न: । श्वसन्तु । गर्गरा: । अपाम् । वरुण । अव । नीची: । अप: । सृज । वदन्तु । पृश्निऽबाहव: । मण्डूका: । इरिणा । अनु ॥१५.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 15; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    (नः) हमारा (पिता) पालन करनेवाला (असुरः) प्राणदाता मेघ (अपः) जलधाराएँ (निषिञ्चन्) उंडेलता हुआ [वर्तमान हो]। (अपाम्) जलके (गर्गराः) गड़गड़ाते हुए गगरे (श्वसन्तु) श्वास लेवें। (वरुण) हे वरणीय मेघ ! (अपः) जलधाराओं को (नीचीः) नीचे की ओर (अव सृज) छोड़दे। (पृश्निबाहवः) छोटी छोटी भुजावाले (मण्डूकाः) शोभा बढ़ानेवाले वा डुबकी लगानेवाले मेंडके (इरिणा= इरिणानि) ऊसर भूमियों को (अनु= अनुहाय) छोड़कर (वदन्तु) ध्वनि करें ॥१२॥

    भावार्थ - बरसा होने पर जैसे मेंडकों में फिर प्राण आजाते हैं, इसी प्रकार अनेक पदार्थ उगकर आनन्ददायक होते हैं ॥१२॥ इस मन्त्र का पहिला पाद (अपो....नः) ऋ० ५।८३।६। का चौथा पाद है ॥

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