Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 10

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - यवमध्या त्रिपदा गायत्री सूक्तम् - आत्मा रक्षा सूक्त

    अ॒श्म॒व॒र्म मे॑ऽसि॒ यो मा॒ प्राच्या॑ दि॒शोऽघा॒युर॑भि॒दासा॑त्। ए॒तत् स ऋ॑च्छात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्म॒ऽव॒र्म । मे॒ । अ॒सि॒ । य: । मा॒ । प्राच्या॑: । दि॒श: । अ॒घ॒ऽयु: । अ॒भि॒ऽदासा॑त् । ए॒तत् । स: । ऋ॒च्छा॒त् ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्मवर्म मेऽसि यो मा प्राच्या दिशोऽघायुरभिदासात्। एतत् स ऋच्छात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्मऽवर्म । मे । असि । य: । मा । प्राच्या: । दिश: । अघऽयु: । अभिऽदासात् । एतत् । स: । ऋच्छात् ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 10; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [हे ब्रह्म !] (मे) मेरे लिये तू (अश्मवर्म) पत्थर के घर [के समान दृढ़] (असि) है। (यः) जो (अघायुः) बुरा चीतनेवाला मनुष्य (प्राच्याः) पूर्व वा सन्मुखवाली (दिशः) दिशा से (मा) मुझ पर (अभिदासात्) चढ़ाई करे, (सः) वह दुष्ट (एतत्) व्यापक दुःख (ऋच्छात्) पावे ॥१॥

    भावार्थ - सर्वव्यापक ब्रह्म प्रत्येक दिशा में दुष्टों को सर्वत्र दण्ड देकर शिष्टों की रक्षा करता है। इसी प्रकार आगे समझो ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top