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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 19/ मन्त्र 14
    सूक्त - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    येन॑ मृ॒तं स्न॒पय॑न्ति॒ श्मश्रू॑णि॒ येनो॒न्दते॑। तं वै ब्र॑ह्मज्य ते दे॒वा अ॒पां भा॒गम॑धारयन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । मृ॒तम् । स्न॒पय॑न्ति । श्मश्रू॑णि । येन॑ । उ॒न्दते॑ । तम् । वै । ब्र॒ह्म॒ऽज्य॒ । ते॒ । दे॒वा: । अ॒पाम् । भा॒गम् । अ॒धा॒र॒य॒न् ॥१९.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन मृतं स्नपयन्ति श्मश्रूणि येनोन्दते। तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भागमधारयन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । मृतम् । स्नपयन्ति । श्मश्रूणि । येन । उन्दते । तम् । वै । ब्रह्मऽज्य । ते । देवा: । अपाम् । भागम् । अधारयन् ॥१९.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (येन) जिस [जल] से (मृतम्) मृतक को (स्नपयन्ति) स्नान कराते हैं और (येन) जिससे (श्मश्रूणि) अपने शरीर में आश्रित केश वा अङ्गों को (उन्दते) सींचते हैं। (ब्रह्मज्य) हे ब्राह्मण को हानि पहुँचानेवाले ! (देवाः) महात्माओं ने (ते) तेरे लिये (अपाम्) जलका (तम् वै) वही (भागम्) भाग (अधारयन्) ठहराया है ॥१४॥

    भावार्थ - ईश्वर की आज्ञा न पालनेवाले पुरुष अन्त में हारकर अपने मृतक बान्धवों के शोक में पड़े रहते हैं ॥१४॥

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