अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 14
ऋषिः - मयोभूः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
41
येन॑ मृ॒तं स्न॒पय॑न्ति॒ श्मश्रू॑णि॒ येनो॒न्दते॑। तं वै ब्र॑ह्मज्य ते दे॒वा अ॒पां भा॒गम॑धारयन् ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । मृ॒तम् । स्न॒पय॑न्ति । श्मश्रू॑णि । येन॑ । उ॒न्दते॑ । तम् । वै । ब्र॒ह्म॒ऽज्य॒ । ते॒ । दे॒वा: । अ॒पाम् । भा॒गम् । अ॒धा॒र॒य॒न् ॥१९.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
येन मृतं स्नपयन्ति श्मश्रूणि येनोन्दते। तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भागमधारयन् ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । मृतम् । स्नपयन्ति । श्मश्रूणि । येन । उन्दते । तम् । वै । ब्रह्मऽज्य । ते । देवा: । अपाम् । भागम् । अधारयन् ॥१९.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(येन) जिस [जल] से (मृतम्) मृतक को (स्नपयन्ति) स्नान कराते हैं और (येन) जिससे (श्मश्रूणि) अपने शरीर में आश्रित केश वा अङ्गों को (उन्दते) सींचते हैं। (ब्रह्मज्य) हे ब्राह्मण को हानि पहुँचानेवाले ! (देवाः) महात्माओं ने (ते) तेरे लिये (अपाम्) जलका (तम् वै) वही (भागम्) भाग (अधारयन्) ठहराया है ॥१४॥
भावार्थ
ईश्वर की आज्ञा न पालनेवाले पुरुष अन्त में हारकर अपने मृतक बान्धवों के शोक में पड़े रहते हैं ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(येन) जलेन (मृतम्) मृतकम् (स्नपयन्ति) स्नानं कारयन्ति (श्मश्रूणि) शीङ् शयने−मनिन् स च डित्। इति श्म शरीरम्। श्मनि श्रयतेर्डुन्। उ० ५।२८। इति श्म+श्रिञ् सेवायां−डुन् रुट् च। श्म शरीरम्...श्मश्रु लोम श्मनि श्रितं भवति−निरु० ३।५। शरीरे श्रितानि लोमानि इन्द्रियाणि वा (येन) (उन्दते) क्लेदयन्ति। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥
विषय
अत्याचारी राजा को मृत्यु-दण्ड
पदार्थ
१. (येन) = जिस जल से (मृतं स्त्रपयन्ति) = मृतपुरुष को स्नान कराते हैं, (येन) = जिस जल से (श्मभूणि) = मुखस्थ बालों को (उन्दते) = गीला करते हैं, हे (ब्रह्मज्य) = ज्ञानक्षय के द्वारा प्रजापीड़क राजन्! (देवा:) = देवों ने (तम्) = उस (अपां भागम्) = जलों के भाग को (ते अधारयन्) = तेरे लिए धारित किया है।
भावार्थ
ब्राज्य राजा को मृत्युदण्ड देकर मलिन जल से उसके स्नान कराये जाने का दृश्य लोग देखें, ताकि वह सबके लिए प्रत्यादर्श बने ।
भाषार्थ
(येन) जिस [ जल ] द्वारा (मृतम् ) मरे हुए को (स्नपयन्ति) स्नान कराते हैं, (येन) जिस द्वारा (श्मश्रूणि) मूंछों के बालों [ रोमों ] को व्यक्ति (उन्दते) गीला करता है, (ब्रह्मज्य) ब्राह्मण का जीवन को हानि पहुँचाने-वाले हे राजन् ! (वै) निश्चय से ( तम्, अपां भागम् ) उस जल-भाग को ( ते ) तेरे लिए (देवाः) दिव्य न्यायाधीशों ने (अधारयन्) निर्धारित किया है।
टिप्पणी
[देवाः (मन्त्र १२ की व्याख्या देखो)। अभिप्राय यह कि हे राजन् ! तेरी मूंछ-दाढ़ी को छोड़कर, तुझे मृत्युदण्ड रूप में मारकर, मृत्यु-स्नान कराया जाएगा।]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(येन) जिससे (मृतं स्नपयन्ति) मरे मुर्दे को निहलाते हैं और (येन) जिससे मुर्दे की मोंछ दाडी के बाल (उन्दते) गीले किये जाते हैं। हे (ब्रह्मज्य) ब्रह्मघातिन् ! (देवाः) देव विद्वान् लोग (तं) उस (अपां भागं) जल भाग को (ते) तेरे लिये भी (अधारयन्) नियत करते हैं। अर्थात् ब्रह्मघाती को भी मृत्यु दण्ड देकर उसके मलिन जलसे निहलाने धुलाने का दृश्य लोगों को दिखलाया जाय।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Gavi
Meaning
O violator and oppressor of Brahmana, that water with which they give the funeral bath to the dead, with which they soak and soften the beard and moustache, that water, the Devas have ordained as your share of water in life.
Translation
Where-with they bathe the dead, and wherewith they moisten beards, that, O scather of intellectuals, is your share of water, that the bounties of Nature have fixed.
Translation
O oppressor of Brahmana! the learned person destines your share of water that water sherewith men wash the diad and wet its beard.
Translation
O Oppressor of the learned the share of water which the sages have destined to be thine, is that, wherewith men lave the corpse and wet his beard.
Footnote
An oppress0r deserves to be given for drinking the water, wherewith the corpse is bathed or his beard is washed.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(येन) जलेन (मृतम्) मृतकम् (स्नपयन्ति) स्नानं कारयन्ति (श्मश्रूणि) शीङ् शयने−मनिन् स च डित्। इति श्म शरीरम्। श्मनि श्रयतेर्डुन्। उ० ५।२८। इति श्म+श्रिञ् सेवायां−डुन् रुट् च। श्म शरीरम्...श्मश्रु लोम श्मनि श्रितं भवति−निरु० ३।५। शरीरे श्रितानि लोमानि इन्द्रियाणि वा (येन) (उन्दते) क्लेदयन्ति। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥
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