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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    59

    उ॒ग्रो राजा॒ मन्य॑मानो ब्राह्म॒णं यो जिघ॑त्सति। परा॒ तत्सि॑च्यते रा॒ष्ट्रं ब्रा॑ह्म॒णो यत्र॑ जी॒यते॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒ग्र: । राजा॑ । मन्य॑मान:। ब्रा॒ह्म॒णम् । य: । जिघ॑त्सति । परा॑ । तत् । सि॒च्य॒ते॒ । रा॒ष्ट्रम् । ब्रा॒ह्म॒ण: । यत्र॑ । जी॒यते॑ ॥१९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उग्रो राजा मन्यमानो ब्राह्मणं यो जिघत्सति। परा तत्सिच्यते राष्ट्रं ब्राह्मणो यत्र जीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उग्र: । राजा । मन्यमान:। ब्राह्मणम् । य: । जिघत्सति । परा । तत् । सिच्यते । राष्ट्रम् । ब्राह्मण: । यत्र । जीयते ॥१९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो (उग्रः) प्रचण्ड (राजा) राजा (मन्यमानः) गर्व करता हुआ (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण को (जिघत्सति) नष्ट करना चाहता है। (तत्) वह (राष्ट्रम्) राज्य (परा सिच्यते) बह जाता है, (यत्र) जहाँ (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (जीयते) दबाया जाता है ॥६॥

    भावार्थ

    वेदवेत्ताओं के सतानेवाले राजा का राज्य सर्वथा नष्ट हो जाता है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(उग्रः) प्रचण्डः (राजा) शासकः (मन्यमानः) गर्वं कुर्वाणः (ब्राह्मणम्) वेदवेत्तारम् (यः) (जिघत्सति) अत्तुं नाशयितुमिच्छति (परा) पराभवेन (तत्) (सिच्यते) उद्यते (राष्ट्रम्) राज्यम् (ब्राह्मणः) (यत्र) यस्मिन् राज्ये (जीयते) अभिभूयते ॥

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    विषय

    ब्राह्मण-निरादर व राष्ट्रीय दरिद्रता

    पदार्थ

    १. (यः) = राजा-जो राजा (मन्यमान:) = अपने बल का अभिमान करता हुआ (उग्र:) = क्रूर-स्वभाव का बनता है और (बाह्मणम्) = ज्ञान का प्रसार करनेवाले ज्ञानी पुरुष को (जिघत्सति) = खा जाना चाहता है और परिणामतः (यत्र) = जिस राष्ट्र में (ब्राह्मण: जीयते) = यह ब्राह्मण तंग किया जाता है [to be oppressed], अत्याचारित होता है (त्तत् राष्ट्रम्) = वह राष्ट्र (परासिच्यते) = शत्रु द्वारा निर्धन कर दिया जाता है-रिक्त कोशवाला हो जाता है।

    भावार्थ

    जिस राष्ट्र में राजा शक्ति के अभिमान में ब्राह्मणों पर क्रूरवृतिवाला होता है, वह राष्ट्र शीघ्र दरिद्र हो जाता है।

     

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    भाषार्थ

    (यः) जो (उग्रः राजा) उग्र राजा (मन्यमानः) अभिमानी होकर (ब्राह्मणम्) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ को (जिघत्सति) खाना चाहता है, (तत् राष्ट्रम्) वह राष्ट्र (परासिच्यते) कष्टों की नदी में प्रवाहित हो जाता है (यत्र) जिस राष्ट्र में कि (ब्राह्मणः) ब्राह्मण (जीयते) वयोहानि पहुँचाया जाता है।

    टिप्पणी

    [जीयते= ज्या वयोहानो (क्र्यादिः)। जिघत्सति= घस्लृ अदने।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (यः) जो (उग्रः राजा) बलशाली राजा (मन्यमानः) अभिमानी होकर (ब्राह्मणं) वेदवित्, ब्राह्मण को (जिघत्सति) खा जाना चाहता है, हड़प जाना चाहता है (तत्) उसका राष्ट्र (परा सिच्यते) सम्पत्ति से शून्य हो जाता है, इसी प्रकार (यत्र) जहां (ब्राह्मणः जीयते) ब्राह्मण कष्ट को प्राप्त होता है वह राष्ट्र भी (परा सिच्यते) शत्रु से पराजित होता और निर्धन हो जाता है॥ उसको शत्रु गण लूट लेते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    A mighty ruler, arrogant and proud of himself who violates and tries to suppress the Brahmana asks for ruin. Drained of its vitality and power is that Rashtra where the Brahmana is suppressed and over-ruled.

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    Translation

    An arrogant tormidable king, who wants to devour an intellectual, and the country, where an intellectual suffers defeat, is completely drained out.

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    Translation

    That Kingdom where in King thinking him mighty desires to destroy the Brahmana, the learned and wherein the learned man is crushed, is disrupted.

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    Translation

    Rent and disrupted is that realm, where a king deeming himself mighty wants to harm a Vedic scholar or where a knower of the Vedas is suppressed.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(उग्रः) प्रचण्डः (राजा) शासकः (मन्यमानः) गर्वं कुर्वाणः (ब्राह्मणम्) वेदवेत्तारम् (यः) (जिघत्सति) अत्तुं नाशयितुमिच्छति (परा) पराभवेन (तत्) (सिच्यते) उद्यते (राष्ट्रम्) राज्यम् (ब्राह्मणः) (यत्र) यस्मिन् राज्ये (जीयते) अभिभूयते ॥

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