अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 8
ऋषिः - मयोभूः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
41
तद्वै रा॒ष्ट्रमा स्र॑वति॒ नावं॑ भि॒न्नामि॑वोद॒कम्। ब्र॒ह्माणं॒ यत्र॒ हिंस॑न्ति॒ तद्रा॒ष्ट्रं ह॑न्ति दु॒च्छुना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । वै । रा॒ष्ट्रम् । आ । स्र॒व॒ति॒ । नाव॑म् । भि॒न्नाम्ऽइ॑व । उ॒द॒कम् । ब्र॒ह्माण॑म् । यत्र॑ । हिस॑न्ति । तत् । रा॒ष्ट्रम्। ह॒न्ति॒ । दु॒च्छुना॑ ॥१९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वै राष्ट्रमा स्रवति नावं भिन्नामिवोदकम्। ब्रह्माणं यत्र हिंसन्ति तद्राष्ट्रं हन्ति दुच्छुना ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । वै । राष्ट्रम् । आ । स्रवति । नावम् । भिन्नाम्ऽइव । उदकम् । ब्रह्माणम् । यत्र । हिसन्ति । तत् । राष्ट्रम्। हन्ति । दुच्छुना ॥१९.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(तत्) वह [दुष्ट कर्म] (वै) निश्चय करके (राष्ट्रम्) राज्य को (आ स्रवति) बहा देता है (उदकम् इव) जैसे जल (भिन्नाम्) टूटी (नावम्) नाव को। (यत्र) जहाँ (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण को (हिंसन्ति) वे सताते हैं, (दुच्छुना) दुर्गति वा दरिद्रता (तत् राष्ट्रम्) उस राज्य को (हन्ति) मिटा देती है ॥८॥
भावार्थ
जिस राज्य में नीतिकुशल वेदवेत्ताओं का अनादर होता है, वह राज्य छिन्न-भिन्न हो जाता है ॥८॥
टिप्पणी
८−(तत्) दुष्ट कर्म (वै) निश्चयेन (राष्ट्रम्) राज्यम् (आ) समन्तात् (स्रवति) स्रावयति प्लावयति (नावम्) अ० २।३६।५। नोद्यं पोतम् (भिन्नाम्) छिन्नाम् (इव) यथा (उदकम्) जलम् (ब्राह्मणम्) (यत्र) (हिंसन्ति) दुःखयन्ति (तत्) (राष्ट्रम्) राज्यम् (हन्ति) नाशयति (दुच्छुना) अ० १७।४। दुष्टा गतिः दरिद्रता ॥
विषय
दुच्छुना
पदार्थ
१. (यत्र) = जिस राष्ट्र में (ब्रह्माणं हिंसन्ति) = ज्ञानी ब्राह्मण को हिंसित करते हैं, (तत् राष्ट्रम्) = उस राष्ट्र को (दुच्छुना) = दुष्ट विपत्ति [आधि-व्याधि] हन्ति नष्ट कर डालती है। २. (वै) = निश्चय से (तत् राष्ट्रम्) = वह राष्ट्र (आस्त्रवति) = शत्रुओं के प्रवेश के द्वारा आस्तुत हो जाता है-खाली होकर नष्ट हो जाता है, (इव) = जैसेकि (भिन्नं नावम्) = फूटी नाव को (उदकम्) = पानी अन्दर प्रविष्ट होकर नष्ट कर देता है।
भावार्थ
ज्ञानी ब्राह्मण का हिंसन होने पर राष्ट्र पर दुष्ट विपत्तियों आपड़ती हैं। इस राष्ट्र में शत्रुओं का प्रवेश होकर दारिद्रय घर कर लेता है।
भाषार्थ
(तद् , वै, राष्ट्रम्) निश्चय से उस राष्ट्र में (दुच्छना) दुर्गति (आस्रवति) बह आती है, (इव) जैसे कि (भिन्नाम्) विदीर्ण हुई (नावम् ) नौका में (उदकम् ) उदक । (यत्र) जिस राष्ट्र में (ब्राह्मणम् ) चतुर्वद-वेत्ता की (हिंसन्ति) राष्ट्राधिकारी हिंसा करते हैं, (तद् राष्ट्रम् ) उस राष्ट्र का (हन्ति) हनन करती है, (दुच्छुना) दुर्गति।
टिप्पणी
[दुच्छना =दुःशुना; दुः + शुन गतौ (तुदादिः), दुर्गतिः।]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(यत्र) जिस राष्ट्र में (ब्राह्मणं) विद्वान्, ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण को (हिंसन्ति) विनाश करते हैं (तद् राष्ट्रं) उस राष्ट्र को (दुच्छुना) दुष्ट विपत्ति, आधि, व्याधि, (हन्ति) विनाश कर डालती है और (भिन्नाम् इव नावम्) जिस प्रकार टूटी फूटी नाव में (उदकम् आ स्त्रवति) पानी तह फोड़ कर भीतर आ जाता है उसी प्रकार (तद् राष्ट्रं) उस राष्ट्र को फोड़ कर शत्रु भी भीतर आ घुसता है और नाश कर डालता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Gavi
Meaning
As flood water rushes into a leaking boat and the boat sinks, so do evils and calamities creep in and destroy the Rashtra where arrogant, ruling powers violate the Brahmana and reject his vision and wisdom.
Translation
That verily springs a leak in the kingdom just as water in a broken boat. That smites with misfortune the kingdom, where they do harm to any intellectual.
Translation
Destruction overflows that nation like water which swamps or leaky boat. Misfortunes smile that nation wherein people oppress the Brahmana.
Translation
Misfortune smites the realm wherein a learned person suffers harm and dishonor. As water swamps a leaky boat so ruin overflows that realm.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(तत्) दुष्ट कर्म (वै) निश्चयेन (राष्ट्रम्) राज्यम् (आ) समन्तात् (स्रवति) स्रावयति प्लावयति (नावम्) अ० २।३६।५। नोद्यं पोतम् (भिन्नाम्) छिन्नाम् (इव) यथा (उदकम्) जलम् (ब्राह्मणम्) (यत्र) (हिंसन्ति) दुःखयन्ति (तत्) (राष्ट्रम्) राज्यम् (हन्ति) नाशयति (दुच्छुना) अ० १७।४। दुष्टा गतिः दरिद्रता ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal