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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 11
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    33

    नवै॒व ता न॑व॒तयो॒ या भूमि॒र्व्य॑धूनुत। प्र॒जां हिं॑सि॒त्वा ब्राह्म॑णीमसंभ॒व्यं परा॑भवन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ । ए॒व । ता: । न॒व॒तय॑: । या: । भूमि॑: । विऽअ॑धूनुत । प्र॒ऽजाम् । हिं॒सि॒त्वा। ब्राह्म॑णीम् । अ॒स॒म्ऽभ॒व्यम् । परा॑ । अ॒भ॒व॒न् ॥१९.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नवैव ता नवतयो या भूमिर्व्यधूनुत। प्रजां हिंसित्वा ब्राह्मणीमसंभव्यं पराभवन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नव । एव । ता: । नवतय: । या: । भूमि: । विऽअधूनुत । प्रऽजाम् । हिंसित्वा। ब्राह्मणीम् । असम्ऽभव्यम् । परा । अभवन् ॥१९.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नास्तिक के तिरस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (ताः) वे लोग (नव नवतयः) नव बार नब्बे [९*९० वा ८१०] (अपि) भी [थे] (याः) जिन को (भूमिः) भूमि ने (व्यधूनुन) हिला दिया है, और जो (ब्राह्मणीम्) ब्राह्मणसंबन्धिनी (प्रजाम्) प्रजा को (हिंसित्वा) सताकर (असंभव्यम्) संभावना [शक्यता] के बिना (पराभवन्) हार गये हैं ॥११॥

    भावार्थ

    असंख्यात होने पर भी नास्तिक पराजित होते हैं [अ० ५। १८।१२। का मिलान करो] ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(नव नवतयः) नवगुणिता नवतयः। ९*९०=८१०। असङ्ख्याते इत्यर्थः (एव) अपि (ताः) जनताः। अन्यद् यथा−अ० ५।१८।१२ ॥

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    विषय

    ब्राह्मणी प्रजा पर अत्याचार का परिणाम

    पदार्थ

    १. (ता:) = वे (नव नवतयः) = निन्यानवे लोग (याः भूमि: व्यधूनुत) = जिन्हें इस पृथिवी ने कम्पित कर दिया (ब्राह्मणीम्) = ज्ञानी ब्राह्मण से उपदिष्ट मार्ग पर चलनेवाली (प्रजाम्) = प्रजा को (हिंसित्वा) = हिंसित करके (असंभव्यम् एव पराभवन्) = अत्याचारी राजा इसप्रकार नष्ट हो गये जिसकी कोई कल्पना भी नहीं थी। २. राजा कई बार शक्ति के घमण्ड में धार्मिक प्रजा पर अत्याचार करने लगता है, परन्तु अन्ततः इसका असम्भव-से प्रतीत होनेवाले ढंग से विनाश हो जाता है।

    भावार्थ

    सैकड़ों राजा धार्मिक प्रजाओं पर अत्याचार करके अन्ततः विनष्ट हो जाते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (ता:) वे (नव एवं नवतयः) ९×९० ही जनताएं थीं (या:) जिन्हें (भूमिः व्यधूनुत) भूमि ने कॅपा दिया, वे (ब्राह्मणीम् ) ब्रह्मज्ञा और वेदज्ञारूपी (प्रजाम्) प्रजाओं की (हिंसित्वा) हिंसा करके (असम्भव्यम् ) असम्भावनीय (पराभवन् ) पराजय को प्राप्त हुई।

    टिप्पणी

    [देखो अथर्व ० (५।१८।१२) इसमें १०१ संख्या का कथन हुआ है और (व्याख्येय मन्त्र ११) में ९×९० अर्थात् ८१० का। उभयत्र संख्याएँ रहस्यमयी हैं।]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (नव नंवतयः) अनगिनत वे पापी पुरुष हैं (याः) जिन को (भूमिः) भूमि स्वयं (वि-अधूनुत) विनाश कर डालती है। वे सब (ब्राह्मणीम्) ब्राह्मण की (प्रजां) प्रजा को (हिंसित्वा) विनाश करके (असम्-भव्यं) बुरी तरह से (परा अभवन्) पराजित होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयाभूर्ऋषिः। ब्रह्मगवी देवता। २ विराट् पुरस्ताद् बृहती। ७ उपरिष्टाद् बृहती। १-३-६, ७-१५ अनुष्टुभः। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Gavi

    Meaning

    Let them be nine and ninety so powerful that they can shake the globe. Yet, having violated the wishes and interests of the holy Brahmanic people, they would face defeat and fall beyond all possible recovery.

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    Translation

    Verily they were nine ninety, whom the earth shook off. Having violated their intellectual subjects, they suffered defeat inconceivably.

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    Translation

    Be they ninety-nine or more whom the land of nation rolls in its lap but inflicting injury to the class of learned people meet the destruction unexpectedly.

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    Translation

    Innumerable are the sinners whom Earth destroys. When they wrong the progeny of a Vedic scholar, they are ruined inconceivably.

    Footnote

    नवनवंतिः (9+90) or (9+90) i.e., innumerable.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(नव नवतयः) नवगुणिता नवतयः। ९*९०=८१०। असङ्ख्याते इत्यर्थः (एव) अपि (ताः) जनताः। अन्यद् यथा−अ० ५।१८।१२ ॥

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