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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्साह॑व॒नीये॒ न्यक्रामत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । आ॒ऽह॒व॒नीये॑ । नि । अ॒क्रा॒म॒त् ॥१०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्साहवनीये न्यक्रामत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । उत् । अक्रामत् । सा । आऽहवनीये । नि । अक्रामत् ॥१०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (सा) वह [विराट्] (उत् अक्रामत्) ऊपर चढ़ी, (सा) (आहवनीये) यज्ञयोग्य व्यवहार में (नि अक्रामत्) नीचे उतरी ॥४॥

    भावार्थ - उस विराट् की महिमा प्रत्येक उत्तम कर्म में प्रकट होती है ॥४॥

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