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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 15
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१

    वसो॒रिन्द्रं॒ वसु॑पतिं गी॒र्भिर्गृ॒णन्त॑ ऋ॒ग्मिय॑म्। होम॒ गन्ता॑रमू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वसो॑: । इन्द्र॑म् । वसु॑ऽपतिम् । गी॒ऽभि: । गृ॒णन्त॑: । ऋ॒ग्मिय॑म् ॥ होम॑ । गन्ता॑रम् । ऊ॒तये॑ ॥७१.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसोरिन्द्रं वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम्। होम गन्तारमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वसो: । इन्द्रम् । वसुऽपतिम् । गीऽभि: । गृणन्त: । ऋग्मियम् ॥ होम । गन्तारम् । ऊतये ॥७१.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 15

    Meaning -
    For our defence, protection and advancement, we invoke and celebrate in song with homage, Indra, lord protector of wealth, ruler of the earth, fire, breath and other sustainers of life, self-revealed and honoured in Rks, and the immanent ruler and mover of everything.

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