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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 15
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१
    36

    वसो॒रिन्द्रं॒ वसु॑पतिं गी॒र्भिर्गृ॒णन्त॑ ऋ॒ग्मिय॑म्। होम॒ गन्ता॑रमू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वसो॑: । इन्द्र॑म् । वसु॑ऽपतिम् । गी॒ऽभि: । गृ॒णन्त॑: । ऋ॒ग्मिय॑म् ॥ होम॑ । गन्ता॑रम् । ऊ॒तये॑ ॥७१.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसोरिन्द्रं वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम्। होम गन्तारमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वसो: । इन्द्रम् । वसुऽपतिम् । गीऽभि: । गृणन्त: । ऋग्मियम् ॥ होम । गन्तारम् । ऊतये ॥७१.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गीर्भिः) वेदवाणियों से (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम (वसुपतिम्) वसुओं [अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य वा सूर्यलोक, द्यौ वा आकाश, चन्द्रलोक और तारागणों] के स्वामी, (ऋग्मियम्) स्तुतियोग्य, (गन्तारम्) ज्ञानवाले (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] को (वसोः) श्रेष्ठगुण की (ऊतये) रक्षा के लिये (होम) बुलाते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य सब ऐश्वर्य के दाता और न्यायकारी परमात्मा की प्रार्थना और उत्तम गुणों की धारणा से राज्य लक्ष्मी को प्राप्त होकर उन्नति करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(वसोः) श्रेष्ठगुणस्य (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमेश्वरम् (वसुपतिम्) अष्टवसूनामग्निपृथिव्यादीनां स्वामिनम्। अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्च चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि चैते वसवः-दयानन्दभाष्ये, ऋक्० १।९।९। (गीर्भिः) वेदवाणीभिः (गृणन्तः) स्तुवन्तः (ऋग्मियम्) अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। ऋच स्तुतौ-मक्, कुत्वं जश्त्वं च, ऋग्म, स्तुतिः, तदर्हति ऋग्मियः। पात्राद्घंश्च। पा० ।१।६८। अर्हार्थे-घन्, यद्वा बाहुलकात् घच्। ऋग्मियमृग्मन्तमिति वार्चनीयमिति वा पूजनीयमिति वा-निरु० ७।२६। स्तुतियोग्यम् (होम) ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च-लङ्। बहुलं छन्दसि। पा० २।४।७३। शपो लुक्। छन्दस्युभयथा। ३।४।११७। उभयसंज्ञात्वे गुणसम्प्रसारणे, सकारलोपश्छान्दसः। आह्वयामः (गन्तारम्) गच्छतेः-तृन्। ज्ञातारम् (ऊतये) रक्षायै ॥

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    विषय

    वसुपर्ति-ऋग्मियम्

    पदार्थ

    १. हम (गीर्भिः गृणन्त:) = यज्ञरूप वाणियों से प्रभु का स्तवन करते हुए वसोः ऊतये-धनों से आवश्यकताओं की पूर्ति के द्वारा आभरण के लिए उन (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (होम) = पुकारते हैं, जो (वसुपतिम्) = सब धनों के स्वामी हैं तथा (ऋग्मियम्) = विज्ञानात्मक ऋचाओं का निर्माण करनेवाले हैं [ऋचौ मिमीते-सा०]। वस्तुत: ऋचाओं द्वारा विज्ञान को प्राप्त करके ये वैज्ञानिक सब पदार्थों में प्रभु की महिमा को देखते हुए प्रभु का स्तवन करते हैं। २. हम उन प्रभु को [ऊतये] अपने रक्षण के लिए पुकराते हैं जो (गन्तारम्) = स्तोता को अवश्य प्राप्त होते ही हैं|

    भावार्थ

    प्रभु सब धनों के स्वामी व ऋचाओं द्वारा ज्ञान देनेवाले हैं। हम प्रभु का स्तवन करते हैं। हम प्रभु को पुकराते हैं, प्रभु हमें धन व ज्ञान प्रास कराके हमारा रक्षण करते हैं।

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    भाषार्थ

    (वसोः) मोक्षधन के (इन्द्रम्) अधीश्वर, तथा (वसुपतिम्) आठ वसुओं के पति, (ऋग्मियम्) ऋचाओं के स्वामी तथा अर्चनीय, (गन्तारम्) सर्वगत परमेश्वर की (गीर्भिः गृणन्तः) वेदवाणियों द्वारा स्तुतियाँ करते हुए, (ऊतये) आत्मरक्षार्थ (होम) उसका आह्वान करते हैं।

    टिप्पणी

    [वसुपतिम्—८ वसु=अग्नि, पृथिवी; वायु, अन्तरिक्ष; चन्द्र, नक्षत्र; आदित्य, द्युलोक। होम=ह्वेञ्।]

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    विषय

    परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! हम लोग (वसोः) पृथ्वी पर और राष्ट्र में और देह में बसने वाले जीवों के (उतये) रक्षा के लिये (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् बाधक शत्रुओं के नाशक (वसुपतिम्) समस्त लोकों और प्राणियों के पालक (ऋग्मियम्) ऋचाओं, वेद मन्त्रों द्वारा जानने योग्य और ऋचाओं, वेद मन्त्रों के कर्त्ता (गन्तारम्) सर्वज्ञ और सर्व व्यापक के (गीर्भिः) वाणियों द्वारा (गृणन्तः) गुण वर्णन करते हुए हम (होम) उस का स्मरण करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    For our defence, protection and advancement, we invoke and celebrate in song with homage, Indra, lord protector of wealth, ruler of the earth, fire, breath and other sustainers of life, self-revealed and honoured in Rks, and the immanent ruler and mover of everything.

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    Translation

    For protection of this world, the grand abode of all (Vasoh) we praying Him with Vedic verses call Almighty God who is the Lord of riches and all the (Vasus), who is praiseworthy and All-moving and All-knowledge.

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    Translation

    For protection of this world, the grand abode of all (Vasoh) we praying Him with Vedic verses call Almighty God who is the Lord of riches and all the (Vasus), who is praiseworthy and All-moving and. All-knowledge.

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    Translation

    O learned persons, we invoke the Mighty God, the Protector of all the worlds and the people living therein, the source of the Vedic verses, the Omnipresent and the Omniscient, for the protection of the people.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(वसोः) श्रेष्ठगुणस्य (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमेश्वरम् (वसुपतिम्) अष्टवसूनामग्निपृथिव्यादीनां स्वामिनम्। अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्च चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि चैते वसवः-दयानन्दभाष्ये, ऋक्० १।९।९। (गीर्भिः) वेदवाणीभिः (गृणन्तः) स्तुवन्तः (ऋग्मियम्) अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। ऋच स्तुतौ-मक्, कुत्वं जश्त्वं च, ऋग्म, स्तुतिः, तदर्हति ऋग्मियः। पात्राद्घंश्च। पा० ।१।६८। अर्हार्थे-घन्, यद्वा बाहुलकात् घच्। ऋग्मियमृग्मन्तमिति वार्चनीयमिति वा पूजनीयमिति वा-निरु० ७।२६। स्तुतियोग्यम् (होम) ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च-लङ्। बहुलं छन्दसि। पा० २।४।७३। शपो लुक्। छन्दस्युभयथा। ३।४।११७। उभयसंज्ञात्वे गुणसम्प्रसारणे, सकारलोपश्छान्दसः। आह्वयामः (गन्तारम्) गच्छतेः-तृन्। ज्ञातारम् (ऊतये) रक्षायै ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গীর্ভিঃ) বেদবাণী দ্বারা (গৃণন্তঃ) স্তুতিপূর্বক আমরা (বসুপতিম্) বসুগণের [অগ্নি, পৃথিবী, বায়ু, অন্তরিক্ষ, আদিত্য বা সূর্যলোক, দ্যৌ বা আকাশ, চন্দ্রলোক এবং তারকারাজির] স্বামী, (ঋগ্মিয়ম্) স্তুতিযোগ্য, (গন্তারম্) জ্ঞানবান্ (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রকে [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত পরমেশ্বরকে] (বসোঃ) শ্রেষ্ঠগুণসমূহের (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য (হোম) আহ্বান করি ॥১৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য সর্ব ঐশ্বর্যদাতা, ন্যায়কারী পরমাত্মার প্রার্থনা এবং উত্তম গুণের ধারণা দ্বারা রাজ্য লক্ষ্মী প্রাপ্ত হয়ে উন্নতি করুক ॥১৫॥

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    भाषार्थ

    (বসোঃ) মোক্ষধনের (ইন্দ্রম্) অধীশ্বর, তথা (বসুপতিম্) আট বসুর পতি, (ঋগ্মিয়ম্) ঋচা-সমূহের স্বামী তথা অর্চনীয়, (গন্তারম্) সর্বগত পরমেশ্বরের (গীর্ভিঃ গৃণন্তঃ) বেদবাণী দ্বারা স্তুতি করে, (ঊতয়ে) আত্মরক্ষার্থ (হোম) উনার আহ্বান করি।

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